सांप्रदायिक सौहाद्र को चुनौती – अयोध्या पर पुनर्विचार याचिका

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हो जाये ग़र शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सजदा न करूं हिन्द की नापाक ज़मीं पर।

अल्लामा इकबाल की ये पंक्तियां और यह समय जबकि मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तय किया है कि वह जन्मभूमि अयोध्या पर सर्वोच्च निर्णय के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका लगाएगी; ये दो सर्वाधिक, सटीक विषय हैं “गंगा जमुनी तहजीब” पर बात करने के। यदि भारत के पिछले पांच सौ वर्षों मे सबसे बड़ा सामाजिक छ्लावे का कोई शब्द गढ़ा गया है तो वह है “गंगा जमुनी तहजीब”!! मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब ने हिंदी, हिंदू, हिंदूस्थान पर सर्वाधिक पाशविक अत्याचार किए। यही औरंगजेब इस कथित “गंगा जमुनी तहजीब” जैसे छलावे वाले शब्द का भी प्रवर्तक था। यह उनके लिए कर्म व चिंतन का  समय है जो इस देश मे गंगा जमुनी तहजीब की

लकीर को अब भी पीटते रहते हैं। इस कथित तहजीब के हिसाब किताब का कोई सटीक समय यदि कोई है तो वह अभी है।  अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड (AIMPLB) ने अनुचित बताते हुए नामंजूर कर दिया है, और इसके विरुद्ध पुनर्विचार याचिका लगाने का निर्णय लिया है। लखनऊ में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की जिस बैठक मे यह निर्णय लिया गया उसमें कांग्रेस के निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी सम्मिलित थे। इस बोर्ड ने पांच एकड़ भूमि अन्यत्र स्थान पर लेने से भी इंकार कर दिया है। बोर्ड ने यह भी कहा है की इस्लामी शरियत हमें इजाजत नहीं देती कि हम मस्जिद के बदले में जमीन या कुछ और लें।

      देश का सामान्य मुस्लिम जहां इस विवाद से मुक्ति पाना चाहता है और देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलना चाहता है वहीं देश के चंद औवेसि जैसे नेता किसी भी प्रकार से इस विवाद को जिंदा रखकर अपनी बोगस नेतागिरी की दुकान चलाते रहना चाहते हैं। कांग्रेस भी इस विषय मे औवेसि से अलग नहीं है। कांग्रेस ने 1994 मे स्पष्ट अधिकृत वक्तव्य दिया था कि यदि पुरातात्विक साक्ष्य मंदिर के पक्ष मे निकलते हैं तो वह जन्मभूमि वाले मामले मे हिंदुओं के पक्ष मे खड़ी हो जाएगी किंतु वह अपनी सदा की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के चलते अपने वचन पर अडिग नहीं रह पाई। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के बहुत से सदस्य भी पुनर्विचार याचिका लगाए जाने के विरोध मे हैं। बोर्ड के सदस्य वसीम रिजवी का कहना है कि  “अल बगदादी और असदुद्दीन औवेसि मे कोई अंतर नहीं है। उत्तरप्रदेश के प्रमुख मुस्लिम नेता मोहसिन रजा ने भी पुनर्विचार याचिका पर मंथन के लिए लखनऊ में आयोजित ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक पर सवाल उठाए हैं। मोहसिन रजा ने कहा कि यह संस्था देश का माहौल बिगाडऩे की कोशिश कर रही है और  जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम समाज मंजूर कर चुका है तो इस प्रकार की मीटिंग का औचित्य क्या है। मोहसिन रजा ने यह भी आरोप लगाया है कि इतने संवेदनशील समय मे इस मीटिंग को उत्तरप्रदेश मे न रखकर दिल्ली या हैदराबाद मे भी किया जा सकता था। उत्तरप्रदेश मे इस मीटिंग को जानबूझकर माहौल बिगाड़ने के प्रयत्न किए जा रहे हैं।  

आज जब मुस्लिम समाज यह बात समझ चुका है कि पुरातात्विक खुदाई से इस स्थान पर विशाल मंदिर के होने व मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद निर्माण के स्पष्ट प्रमाण मिल गए हैं। पुरातात्विक खुदाई में इस स्थान में ॐ के प्रतीक चिन्ह, स्वस्तिक, कलश, मयूर सहित कई ऐसे निर्माण व चिन्ह मिले हैं जिससे इस स्थान के हिन्दू मंदिर होने की धारणा पुष्ट ही नहीं बल्कि प्रमाणित हो गई है। यह भी एक आश्चर्य जनक तथ्य है कि यहां से मुस्लिमों की घृणा के प्रतीक सूंवर/डुक्कर की मूर्ति (जिसे हिन्दू धर्म साहित्य में श्रद्धा पूर्वक वराह कहा जाता है) भी पुरातात्विक खुदाई में यहां मिली है। सूंवर/वराह की मूर्ति मिलने के बाद तो मुस्लिमों को इस स्थान से विमुख ही हो जाना चाहिए था। सच्चे मुस्लिम धर्मगुरु व अमनपसंद आम मुसलमान इस तथ्य को जानने के पश्चात जन्मभूमि पर दावे से हट भी जाना चाहते थे  किन्तु कट्टरपंथी मुसलमान व वोट बैंक की राजनीति कर रहे चंद मुस्लिम नेता अपनी राजनैतिक दूकान चलाने की फिराक में इस मुद्दे को अब भी छोड़ना नहीं चाहते हैं। इस विषय में हमें एक बार गुजरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण व उसमें देश के प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल की भूमिका का पुनर्स्मरण करना होगा. यह ध्यान करना होगा कि वल्लभभाई की दृष्टि में वे एक मंदिर मात्र का पुनर्निर्माण नहीं कर रहे थे बल्कि एक विदेशी आक्रान्ता द्वारा देश के एक महत्वपूर्ण मानबिंदु के अपमान का व विदेशी शक्ति का प्रतिकार कर रहे थे। सोमनाथ का एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा पुनर्निर्माण कराया जाना वस्तुतः भारतीय स्वाभिमान को पुनर्स्थापित करने का एक बहुआयामी प्रयास था। इसी दृष्टि से अब हमें अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि के विषय को भी देखना चाहिए।
सामान्य कामकाजी भारतीय मुस्लिम  यह बात समझ चुका है कि बाबर (जिसके नाम पर वह बदनुमा दाग रुपी बाबरी मस्जिद थी) महज एक विदेशी आक्रमणकारी व लूटेरा था। भारतीय मुस्लिमों की रगों में बाबर का खून नहीं बल्कि उनके भारतीय पुरखों का रक्त बहता है। भारतीय मुसलमान उस समाज से हैं जिनके पुरखों ने कभी बलात होकर, कभी मजबूर होकर, कभी भयभीत होकर तो कभी बेटी बहु व सम्पत्ति की रक्षा करनें के उद्देश्य से जबरिया बाबर और औरंगजेब का इस्लाम ग्रहण किया था। जब हमारें पुरखे एक हैं तो आज हमें हमारा भविष्य भी एक ही बनाना चाहिए। गत वर्ष जब सर्वोच्च न्यायालय ने परस्पर चर्चा व मध्यस्थता से इस विवाद को हल करने हेतु आव्हान किया था तब भी सामान्य मुस्लिम इस विवाद को हल करने का इक्छूक था व जन्मभूमि को नजराने के तौर पर तश्तरी मे रखकर हिंदू समाज को भेंट करना चाहता था किंतु विघ्नसंतोषी व राजनीति की दुकान वाले चंद मुस्लिम नेताओं ने यह नहीं होने दिया था।   बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने तब भी सुप्रीम कोर्ट के चर्चा व मध्यस्थता वाले प्रस्ताव को नकार ही दिया था  और हर जगह दूध में दही डालने वाले मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवेसी ने भी न्यायालय की पहल को सुनने से ही इंकार कर दिया था। आज भी यह दोनों और इने जैसे कुछ अन्य मुस्लिम नेता सामान्य मुस्लिम वर्ग की भावनाओं की उपेक्षा कर इस विषय को पुनर्विचार याचिका की ओर धकेल रहें हैं। यदि इन जैसे कट्टर और सियासत के भूखे चंद मुस्लिम  नेताओ ने यदि अड़ंगे न डाले होते तो अमनपसंद आम मुसलमान कभी का इस मुद्दे पर हिन्दू समाज के साथ एक पंगत एक संगत में बैठ चुका होता। आशा है परस्पर संवाद के इस दौर में भारतीय मुस्लिम एक प्रगतिशील रूख अपनाकर इस विषय में अपनी सोच को चंद कट्टर मुस्लिम नेताओं की सोच से ऊपर आकर व्यक्त भी करेगा और सिद्ध भी करेगा और सर्वोच्च न्यायालय मे पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का प्रबल विरोध करेगा।

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