भारत डोगरा
भारत में सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़े एक भयानक सच्चाई की तरफ इशारा करते हैं। इसमें जान और माल दोनों की क्षति उठानी पड़ती है। सदी के पहले 15 वर्षों के दौरान विश्व स्तर पर इसमें कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई थी। लेकिन रोज़-ब-रोज़ आधुनिक तकनीक वाली मशीनों के ईजाद ने सड़कों पर जहाँ गाड़ियों की संख्या को बढ़ाया है वहीँ सड़क हादसों की संख्या में भी तेज़ी आई है। भारत में 2001 से 2015 के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में 75 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतें और चोट पर काबू पाना परोक्ष रूप से सतत विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में एक चुनौती बन गया है। यह मुश्किल ज़रूर है लेकिन नामुमकिन नहीं है। सड़क हादसों को रोकने या कम करने की कई संभावनाएं हैं। विशेष रूप से यदि इस कार्य को एक अभियान के रूप में लिया जाये और अधिक से अधिक लोगों को सड़क के नियमों के प्रति जागरूक किया जाये तो न केवल इसके बहुत सकरात्मक परिणाम आएंगे बल्कि आने वाले दशकों में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और चोटों पर भी काबू पाया जा सकता है। इसके लिए हमें बुनियादी आंकड़ों की ज़रूरत पड़ेगी ताकि आंकड़ों और वास्तविक तथ्यों के बीच के अंतर को पहचाना जा सके। इसी प्रकार दुर्घटना में चोट खाये अथवा घायल होने वालों का आंकड़ा बहुत कम मिलता है। इसीलिए लक्ष्यों और उपलब्धियों पर बोलने से पहले हमें इन आंकड़ों को सटीक और विश्वसनीय बनाने की आवश्यकता है।
वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011-2020 को सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई दशक के रूप में अपनाया है और सड़क दुर्घटनाओं से वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की पहचान करने के साथ-साथ इस अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य ‘एसडीजी 3’ के अंतर्गत एक तरफ जहां सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व सुविधाओं को सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है वहीँ इसके उपबंध 3.6 में वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और चोटों को ख़त्म करने की बात कही गई है।
सड़क सुरक्षा पर वैश्विक स्थिति रिपोर्ट अर्थात “ग्लोबल स्टेट्स रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी” (जीएसआरआरएस) के अनुसार इस दशक की शुरूआत के पहले तीन वर्षों में दुनिया के लगभग 88 देशों में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में कमी दर्ज की गई है जबकि इसके विपरीत लगभग 87 देशों में सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि दर्ज की गई है। भारत उन उदाहरणों में से एक है, जहां स्थिति चिंताजनक है। 2001 में 80,900 की अपेक्षा 2014 में 1,41,526 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई है। दुर्घटना और मृत्यु दर के विश्लेषण से पता चलता है कि राजमार्गों और मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है। जिसमें बचने की संभावनाएं कम होती हैं।
जीएसआरआरएस ने सड़क सुरक्षा से संबंधित पांच कारकों की पहचान की है जिनमें तेज़ रफ़्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, दो पहिया वाहनों पर हेलमेट का प्रयोग नहीं करना, सीट बेल्ट का न बांधना और सुरक्षा उपायों के बिना बच्चों के साथ यात्रा करना इत्यादि शामिल है। बहुत कम ऐसे देश हैं जहां उपर्युक्त सुरक्षा नियमों का सख़्ती से पालन किया जाता है। भारत भी दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां न केवल कानून का उल्लंघन किया जाता है बल्कि इसका पालन करवाने में भी उदासीनता बरती जाती है।
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के लिए नशे में ड्राइविंग की भूमिका सबसे अधिक होती है। सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित दिल्ली के अस्पतालों में किये गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 29 प्रतिशत दुर्घटनाएं वाहन चालक द्वारा नशे में गाड़ी चलाने से हुई है। इसी प्रकार बंगलुरु में किये गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि रात में होने वाली अधिकतर सड़क दुर्घटनाओं में वाहन चालक का नशे में होना है जबकि 35 प्रतिशत वाहन चालक चेकिंग के दौरान नशे में गाड़ी चलाते हुए पकड़े गए थे अर्थात यदि चालक गाड़ी चलाते समय अल्कोहल का सेवन न करें तो सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
इसी प्रकार देश के बड़े शहरों में गाड़ी चलाते समय सीट बेल्ट बांधने और दुपहिया वाहनों पर हेलमेट की अनिवार्यता ने जहां सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई है वहीं छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इसे गंभीरता से नहीं लेने के दुष्परिणाम सामने आते रहते हैं। इस संबंध में बेहतर कार्यान्वयन के अलावा पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के लिए भी सड़कों को सुरक्षित बनाने की ज़रूरत है। इसके अतिरिक्त रिक्शा और हाथ से खींचे जाने वाले ठेले भारतीय सड़कों की एक प्रमुख पहचान है। जीएसआरआर ने इस बात की ओर इशारा किया है कि भारत में अधिकतर सड़कें मोटर चालकों की सुविधानुसार बनाये जाते हैं लेकिन इसका प्रयोग सभी प्रकार के वाहनों के साथ साथ पैदल यात्री भी करते हैं। इस अयोजनाकार निर्माण का खामियाज़ा सड़क दुर्घटना के रूप में सामने आता है। सर्वेक्षण के अनुसार 49 प्रतिशत मौतें पैदल यात्रियों, साईकिल चालकों और दुपहिया वाहन चलाने वालों की होती है जो बड़े और भारी वाहनों की चपेट में आ जाते हैं।
यही समय है जब हम वाहन सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन करवाएं। यह सर्विदित है कि भारत समेत अनेक विकाशील देश असुरक्षित मानकों से तैयार कारों को खपाने का सबसे बड़ा बाज़ार बन चुका है। इसी तरह कई अन्य प्रकार के वाहनों के संदर्भ में भी सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जाता रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार गति में मामूली कमी कर दुर्घटनाओं की संख्या और इसकी गंभीरता को कम किया जा सकता है।
वाहन चलाते समय चालक को नींद आ जाना भी सड़क दुर्घटनाओं के अनेक कारकों में एक प्रमुख कारण है। दरअसल इसकी वजह ड्राइवरों पर पड़ने वाला काम का अत्याधिक बोझ है, जिससे उन्हें पर्याप्त नींद नहीं मिल पाता है। सबसे अधिक इस स्थिति का सामना महानगरों में कार्यरत कैब चालकों को करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त राजमार्गों पर बड़े वाहन चलाने वाले चालकों को भी ऐसी ही विकट स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह एक गंभीर चुनौती है जो सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और चोटों के लिए ज़िम्मेदार है। वहीँ दूसरी ओर ड्राइविंग करते समय मोबाइल फोन के उपयोग की बढ़ती गलत प्रवृति ने भी सड़क सुरक्षा को बहुत तेजी से खतरे में डाला है। जिसपर सख्त कार्रवाई करना महत्वपूर्ण हो गया है।
भारत में सड़क दुर्घटना का असली जड़ भ्रष्टाचार से शुरू होता है जो चालकों को लाइसेंस जारी करने के दौरान किया जाता है। अनियमितताएं और घूस के माध्यम से अप्रशिक्षित चालकों को भी लाइसेंस जारी कर दिए जाते हैं जो भविष्य में सड़क हादसों का कारण बनते हैं।