अमित शाह की चुनौतियां

-वीरेन्द्र सिंह परिहार-
amit shah

भाजपा के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने कौन सी चुनौतियां है, यह विचार योग्य है। निःसन्देह जब नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हो तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की आपसी समझदारी और पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए सत्ता और संगठन के बीच तालमेल में कोई समस्या आएंगी, ऐसा सोचना ही उचित नहीं होगा। बावजूद इसके मेरी समझ में अमित शाह के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है-भाजपा को सचमुच एक कैडर-आधारित विचारधारा केन्द्रित दल बनाना। यद्यपि यह भी सच है कि कांग्रेस समेत अन्य परिवारवादी एवं व्यक्तिवादी दलों की तुलना में भाजपा कार्यकर्ता-आधारित एवं विचारधारा केन्द्रित पार्टी है। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि ‘खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।’ कुछ उसी तर्ज पर भाजपा में भी कांग्रेस संस्कृति के संक्रमण का प्रभाव पड़ा है, और भाजपा में भी व्यक्तिवादी और अवसरवादी तत्वों को प्रभाव देखने को मिलता है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने सासंदों को कहना पड़ता है वह चापलूसी, चरण-वंदना की संस्कृति से दूर रहें। समस्या यह है कि भाजपा में दूसरे दलों जैसे न सही, पर-ऊपर से नीचे तक पर्याप्त चापलूसी, चरण-वंदना की प्रवृत्ति, पदलोलुपता एवं स्वार्थप्रियता देखने को मिलती है। इसलिए अमित शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि पार्टी में जहां एक ओर भ्रष्ट एवं अवसरवादी तत्वों को किनारे किया जाए, वहीं चापलूसी एवं चरण-वंदना, व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी प्रवृत्तियों पर पूरी तरह विराम लग सके। इसके लिए चाहे जितने सख्त कदम उठाना पड़े, वह उठाए जाएं। ताकि भाजपा जिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का भारत बनाने की बात करती है, उस तरफ सार्थक कदम उठाया जा सके।

अमित शाह के पास एक और बड़ी चुनौती यह होगी कि वह कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा को विजयी बना सके। इसमें महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्य है। जैसा कि माना जाता है कि लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भाजपा को 80 में 73 सीटें मिलना अमित शाह की योजना, मेहनत और बुद्धिमत्ता का परिणाम है। महाराष्ट्र जैसे राज्य में एक बड़ी समस्या जहां यह आने वाली है कि मुख्यमत्री किसका हो, भाजपा का या शिवसेना का? क्योंकि शिवसेना मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा आसानी से छोड़ने वाली नहीं। जबकि नरेन्द्र मोदी की व्यापक लोकप्रियता और बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद शिवसेना के इस दावें में बहुत औचित्य है नहीं? पर दूसरी तरफ शिवसेना के 18 सांसद लोकसभा में भी है। ऐसे स्थिति में भाजपा का मुख्यमंत्री महाराष्ट्र में कैसे बनाया जाए? यह एक अहम चुनौती अमित शाह के समक्ष है। वैसे भाजपा को शिवसेना से गठबंधन तोड़कर नए विकल्पों पर भी विचार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि कई बार शिवसेना अपना ही चलाने की कोशिश करती है। विदर्भ को राज्य बनाने के मामले में दोनों दलों में बुनियादी मतभेद है।

अमित शाह के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी होगी कि जहां सहयोगी दलों को अपने साथ रख सके, वहीं राज्यसभा में भाजपा अथवा एनडीए का कमजोर स्थिति को देखते हुए नए सहयोगियों को भी अपने साथ जोड़ सके। पर इसके साथ यह भी ध्यान रहे कि सहयोगी एवं दूसरे दलों की अनुचित मांगों एवं कृत्यों को कतई तरजीह न मिले। इसके साथ बड़ी बात यह कि भाजपा अपने मूलभूत सिद्धांतों को लेकर कैसे आगे बढ़ें ? खास तौर पर जब भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में कामन सिविल कोड लागू करने, बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से निकालने, जम्मू काश्मीर में धारा 370 को लेकर सार्थक बहस करने और अयोध्या में राम जन्मभूमि में वेैधानिक और संवैधानिक तरीके से राममंदिर बनाने की बातें कह चुकी हैै। इस दिशा में कैसे रणनीति बनायी जाए कि इन लक्ष्यों को आने वाले वर्षो में प्राप्त किया जा सके? क्योकि दूसरे बहुत से धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले दलों के लिए जहां यह साम्प्रदायिक मुद्दे हैं वही भाजपा के लिए ये मुद्दे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे है। जिसके तहत संपूर्ण भारत एक है, और उसमें निवास करने वाले सभी नागरिक एक है। उनके बीच और चाहे जितने विभेद हो, पर उनकी संस्कृति एक है, उनके पूर्वज एक है, उनका इतिहास है, इसीलिए उनके सुख-दुःख भी एक हैं, जिसे पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ‘अनेकता में एकता’ कहते थे। वस्तुतः कांग्रेस ने अपनी वोट बैंक की राजनीति के तहत जिस ढ़ंग से समाज को बांटा है, उसकी जगह समाज में वास्तविक एका लाने की चुनौती है। ऐसा माना जाना चाहिए कि अमित शाह इन चुनौतियों को बाखूबी मुकाबला करेंगे और अपेक्षा के अनुसार नरेन्द्र मोदी के सपने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण में एक बेहतर सहयोगी की भूमिका निभा सकेंगे।

1 COMMENT

  1. नेताओं के अच्छे काम उनके कुछ पुराने अफसरों से लगाव के कारण नष्ट हो जाते हैं। श्री लालू यादव और श्री जगन्नाथ मिश्र भी कुछ अफसरों के मोह में फंसे थे और उनकी हर बात मानते थे जिनके कारण उनको जेल जाना पड़ा। यदि भ्रष्ट अफसर चाहते तो और भी कई मिल सकते थे। मोदी जी ने बहुत सुन्दर नियम बनाया था कि कोई भी मन्त्री अपने सम्बन्धियों को अपने स्टाफ में नहीं रखेगा। पर अपने बारे में चूक गये। उन्होंने पुराने सचिव पी के मिश्र को रिटायरमेण्ट के बाद पुनः प्रधानमन्त्री कार्यालय में रख लिया है। मिश्र जी ही मुख्य मन्त्री कार्यालय की छोटी से छॊटी बातें सीबी आई को बताते रहते थे जिससे अमित शाह और मोदी जी हत्या केसों में फंसाये जा सकें। उनके अतिरिक्त ये और किसी को मालूम नहीं हो सकता था। प्रधानमन्त्री कार्यालय में आते ही उन्होंने नृपेन्द्र मिश्र के विरुद्ध कांग्रेस से मिलकर हंगामा करवा दिया जिस पर अभी तक उनका ध्यान नहीं गया था। अपने ४ सम्बन्धियों को केन्द्र सरकार में १ हफ्ते में सचिव स्तर पर पदस्थापित करवा दिया-ओड़िशा के जुगल किशोर महापात्र, त्रिपुरा के संजय पण्डा, गुजरात के हृषीकेश दास सचिव के रूप में और ओड़िशा के प्रकाश मिश्र विशेष गृह सचिव जहां से २ महीने में सीबीआई के मुख्य हो जायेंगे। बहुत शीघ्र गुजरात की तरह केन्द्र में भी वे मोदी जी की जड़ काटना शुरु करेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here