शब्दों के बदलते अर्थ

–विनय कुमार विनायक
युग-युग से शब्दों के अर्थ
बदलते/उलटते/पलटते रहे हैं
प्रजातंत्र के युग में
याचक का अर्थ दानी होता
और दानी का अर्थ याचक
आज याचक प्रजा एकमुश्त
सर्वाधिकार/मताधिकार दानकर
किस्त-दर-किस्त कुछ पाने की
चाह में टकटकी लगाए रहती!
दानी सर्वस्व पाकर आंखें मूंद लेता!
आवर्ती दर पर आंखें खोलकर
पुनः टकटकी लगाता सर्वाधिकार पाने,
पुनः-पुनः अपना भाग्य आजमाने
एक की टकटकी लगी की लगी रह जाती
दूसरे की टकटकी टके में बदल जाती!
—विनय कुमार विनायक

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