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चर अचर कबहु चिन्मय संग ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
चर अचर कबहु चिन्मय संग, रागन डोली; खेलन चहत हैं होली, हिया वरवश खोली ! खिल जात कला पात, अखिल अपने पुकारे; पुचकार भुवन देत रहत, हियहिं विचारे ! आवाज़ वे ही देत, वे ही याद करावत; सुनि जात नेह करत, वे ही भाव जगावत! भव की तमाम वादियन में,…