छत्रपति महाराज शिवाजी

shivajiमम्मी मम्मी,मैडम ने कहा है कि कल हम सभी बच्चों को देश के किसी महापुरुष की वेशभूषा में जाना है और उनके बारे में बोलना है”मेरा 11वर्षीय बेटा करन स्कूल से आते ही मेरे गले से लिपटकर बोला ।
यह सुनकर मेरे ह्रदय में एक उत्साह की किरण दौड़ गई कि यह तो बहुत ही अच्छा तरीका है हमारे बच्चों में अपने देश की मिट्टी की खुशबू भरने की! मैं विचारों में ही खोई थी कि करन बेचैन हो कर बोला”मम्मी बोलो न मैं क्या बनकर जाऊँगा?”
मैंने उसकी तरफ मुस्कुरा कर कहा,”तू शेर बनकर जायेगा, भारत का शेर जिसकी दहाड़ आज तक भारत माता के कानों में गूँज रही है।”
करन आश्चर्य से मेरी ओर देख रहा था,मैंने कहा,”तू वो बनकर जायेगा जो हर माँ का सपना होता है कि उसका बेटा वैसा ही बने –छत्रपति महाराज शिवाजी”।
करन,”वो कौन थे माँ,मुझे उनकी कहानी सुनाओ ना!”
मैं उसे गोद में लेकर बैठ गई और उत्साह से बोलने लगी —-
बेटा, आज से386 वर्ष पूर्व ,आज ही के दिन 19फरवरी1630 को शाहजी भोंसले एवं जीजाबाई के घर जिस वीर बालक ने जन्म लिया,वो और कोई नहीं छत्रपति शिवाजी राव भोंसले थे! उनकी जीवन यात्रा का एक एक दिन इतिहास के पन्नों पर आज भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
बेटा उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था,क्योंकि इनके पिताजी शाहजी ने शिवाजी के जन्म के उपरांत अपनी पत्नी जीजाबाई को त्याग दिया था।किन्तु इनकी माँ जीजाबाई उच्चकुल में उत्पन्न अत्यंत प्रतिभाशाली एवं साहसी महिला थीं।उन्होंने शिवाजी का लालन पोषण दादाजी कोणदेव तथा अपने गुरु समर्थ रामदास के संरक्षण में कराया।बचपन से ही देश,समाज,महिला,ब्राह्मण तथा गौ के लिए आदर और सम्मान की घुट्टी दे दी गई थी।
यह उनके संस्कारों एवं व्यक्तित्व का प्रभाव था कि 19 वर्ष के होते होते वे स्थानीय लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हो गए कि उनकी खुद की एक छोटी सी स्वामीभक्त लोगों से युक्त सेना स्थापित हो चुकी थी।
उस समय भारत में मुसलमानों का शासन था और शिवाजी की रगों में देश प्रेम और स्वाधीनता की लौ ने अग्नि का रूप ले लिया था।भारतीय समुदाय के लोगों पर मुसलमानों के अत्याचारों ने शिवाजी को इतना व्यथित किया,कि उन्होंने स्वाधीन हिन्दू राष्ट्र का अपना स्वप्न पूर्ण करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगाने का निश्चय कर लिया।
उनके व्यक्तित्व की विशालता इसी से समझी जा सकती है कि पुर्तगाल के वायस राय काल डे सेंट विंसेंट ने 20 सितंबर 1668के पत्र में लिखा है -“धूर्तता, साहस , संचालन और सैन्य सूझबूझ में शिवाजी की तुलना सीजर एवं अलेक्जेन्डर से की जा सकती है।” मैंने करन को बताया कि ये दोनों भी दुनिया के वीर पुरुषों में से हैं।
छत्रपति शिवाजी भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे।वो भ्रष्टाचार को एक तरह की विषकन्या मानते थे जिसका उपयोग विरोधी अपने हित साधने के लिए करते थे।उनकी नज़र में भ्रष्टाचार के तीन रूप थे –आर्थिक,चारित्रिक और प्रशासनिक।उन्होंने अपने व्यक्तित्व की रचना स्वयं की थी और अशिक्षित होने के पश्चात् भी शक्ति,सामर्थ्य और विद्यवता का इतिहास रचा!
दिल्ली के मुस्लिम बादशाह औरंगजेब की तो नाक में दम कर के रखी थी इन्होंने!
वे एक समर्पित हिन्दू होने के बावजूद धार्मिक सहिष्णुता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे! उनके कार्यकाल में मन्दिरों और मसजिदों दोनों को ही बराबर का सम्मान दिया जाता था,इसका सबसे जीवंत प्रमाण उनकी सेना थी जिसमें स्वामीभक्त मुसलमानों की संख्या बहुतायत में थी।
नारी का सम्मान करना तो उनको उनकी माता द्वारा विरासत में दिया गया वो बीज था जो उन्होंने अपने सैनिकों में भी बोने की यथासंभव कोशिश की।इसी संदर्भ में एक घटना याद आती है जब एक विजय प्राप्त मुस्लिम राज्य की बहु को उनके सैनिक लूट के समान के साथ ले आए, तो शिवाजी ने उस महिला से न सिर्फ माफी मांगी अपितु अपनी माता का दर्जा दे कर ससम्मान उनके महल में वापस भिजवाया।
तो ऐसे थे हमारे शिवाजी महाराज जो एक उपेक्षित पुत्र से अपने पुरूषार्थ द्वारा एक स्वाधीन राज्य के कुशल शासक बने! जिस स्वतंत्रता की अलख उनके ह्रदय में जल रही थी, उसकी लौ अपने देशवासियों के ह्रदय में जगा गए।
“मम्मी मैं प्रतियोगिता ही नहीं,सचमुच में भी आपको शिवाजी जैसा बन कर दिखाऊँगा ! ” करन चिल्लाते हुए बोला।
मेरी आँखों में गर्व के आँसू थे और खुशी थी कि अनजाने में करन ने जो आज देश के इस महानायक के बारे में जान लिया है,अगर उनकी कुछ बातें भी जीवन में उतार पाए , तो इस देश का एक बेहतरीन नागरिक बन जाएगा।
डॅा नीलम महेंद्र

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here