चिदंबरम की फालतू सफाई!

1
200
चिदंबरम
चिदंबरम
चिदंबरम

कल कांग्रेस के चार दिग्गज मल्लिकार्जुन खडगे, आनंद शर्मा, अभिषेक सिंघवी और कपिल सिब्बल ने प्रेस कांफ्रेस की। सोमवारको पी चिदंबरम ने मौन तोड़ा। जाहिर है कांग्रेस में घबराहट है। हिंदुओं के खिलाफ ‘भगवा आंतक’ की कांग्रेस प्रायोजित बदनामी का हल्ला पार्टी को भारी पड़ रहा है। कांग्रेस ने जवाब में इसरत जहां केस पर फोकस किया है। कांग्रेस के अनुसार भाजपा ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बचाने के लिए गलत सूचनाओं की सुनामी बनाई है। सुनामी का मतलब नुकसान! किसकों? कांग्रेस को। तभी चिदंबरम ने ध्यान बंटाते हुए कहा है कि हलफनामा मुद्दा नहीं है बल्कि मुद्दा इशरत जहां को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया या नहीं?

क्या यह मुद्दा हैं? नहीं, अभी कतई नहीं। अभी तो मुद्दा यह है कि भारत की सरकार, भारत का गृह मंत्री क्या अपनी ही खुफिया एजेंसियों, जांच-पुलिस एजेंसियों की सूचनाओं, उसकी करनी पर पानी फेर सकता हैं? आंतकवाद और आंतकी से बड़ा क्या खतरा है? यदि उसमें ही खुद गृहमंत्री के स्तर पर, सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के स्तर पर गोलमाल हो, काले को सफेद और सफेद को काला करार दिया जाए तो क्या उसकी अनदेखी होनी चाहिए? तब चिदंबरम, कांग्रेस सरकार की जो एप्रोच थी क्या वह मुस्लिम आंतकी पर लीपापोती और जबरदस्ती भगवा आंतकी पैदा करने वाली जाहिर नहीं है?

इशरत जहां सच्ची या फर्जी मुठभेड़ में मारी गई, इसका फैसला अदालत करेगी। इस मामले की सीबीआई ने चार्जशीट 2013 में अदालत में पेश की है। वह अदालत का विचारणीय मुद्दा है। पर जो सार्वजनिक नहीं था, जो गोपनीयता में दबा हुआ था वह क्या भारत के गृह मंत्री का बाले-बाले हलफनामा बदलवाने का मुद्दा नहीं है? दूसरा मुद्दा है कि कांग्रेस और मनमोहन सरकार ने बिना ठोस सबूत के हिंदुओं को बदनाम करने के लिए क्या ‘भगवा आंतक’ का झूठा जुमला नहीं चलाया? कांग्रेस, मनमोहन सरकार और पी चिदंबरम ने क्या आंतकी को अआंतकी बताने, और अआंतकी हिंदुओं को आंतकी के नाते देश-दुनिया में बदनाम करने की क्या मुहिम नहीं चलाई?

इस सवाल पर गलत सूचनाओं की सुनामी और नरेंद्र मोदी या अमित शाह को बचाने का कांग्रेसी तर्क फालतू है। मुठभेड़ मामले पर तो कांग्रेस के ही राज में सीबीआई ने चार्जशीट दायर की हुई है। कांग्रेस नेताओं ने रविवार को गुजरात के पुलिस अफसर गोस्वामी के मजिस्ट्रेट के सामने दिए चार पेज के बयान की कॉपी रीलिज की। इसमें गोस्वामी ने पुलिस अफसर डीजी वंजारा को यह कहते बताया कि मुठभेड़ के लिए सफेद और काली दाढ़ी से ग्रीन सिग्नल लिया हुआ है। यह बात भी नई नहीं है। कांग्रेस ने अपने राज में यह सब प्रचारित कर दिया था। बयान और चार्जशीट बनवा दी थी। मनमोहन सरकार में सीबीआई और खुद बतौर गृहमंत्री पी चिदंबरम ने वह सब किया धऱा है, यह बात क्या इस अकल्पनीय खुलासे से जाहिर नहीं है कि इसरत जहां को आंतकी न करार देने का हलफनामा सीधे गृहमंत्री के स्तर पर बना।

सोचे, चिदंबरम ने पहला हलफनामा क्यों बदलवाया? क्या इसलिए नहीं कि यह आरोप पुख्ता तौर पर चस्पा जाएं कि बेकसूर को मारा गया!

ध्यान रहे अमदाबाद के बाहर चार व्यक्तियों सहित इशरत जहां की पुलिस मुठभेड की घटना जून 2004 की है। तब खबर थी कि लश्करे तैयबा के नरेंद्र मोदी को मरवाने के मॉडयूल की इशरत जहां एक पार्ट थी। इसका आधार केंद्र और राज्य की खुफिया-पुलिस याकि इंटलिजैंस इनपुट था। 2004 से ले कर 2013 के बीच पुलिस मुठभेड का वह मामला जिस तरह पका उस सबमें कांग्रेस, सेकुलर मीडिया, मनमोहन सरकार सबके अपने तर्क है और उन्हे यदि एकदम खारिज न करें तब भी इस बुनियादी सवाल का क्या जवाब है कि तत्कालीन गृह मंत्री ने इसमें हलफनामा बदलवा कर अपना तडका मारा! इससे तब की सरकार की नियत और मंशा का जो पहलू सामने है उसका जवाब क्या होगा?

चिदंबरम कहते है उन्हे ध्यान नहीं कि उन्होने हलफनामे पर दस्तखत किए या नहीं? वैसे भी शपथपत्र पर उपसचिव के दस्तखत होते है? यदि वे सच्चे थे तो कहते कि हां, उन्हे अपनी इंटलिजैंस एजेंसियों, सूचनाओं पर भरोसा नहीं था इसलिए उन्होने इसरत जहां को आंतकी न माने जाने का राजनैतिक स्तर पर फैसला लिया। इशरत को लश्करे तैयबा से जुड़ी आंतकी बताने के पहले हलफनामे बनाम दूसरे हलफनामे के अंतर को चिदंबरम ने यह कह कर खारिज किया है कि असली मुद्दा मुठभेड़ फर्जी होने या न होने का है।

पर इस मुद्दे में भी आंतकी होने या नहीं होने का फर्क भारी मतलब रखता है। चिदंबरम और मनमोहन सरकार ने कोशिश की कि इशरत जहां को निर्दोष व बिना किसी आंतकी लिंक के अदालत के आगे रखा जाए। ठिक विपरित तत्कालिन गुजरात सरकार याकि नरेंद्र मोदी, अमित शाह और पुलिस ने आंतकी लिंक को मुठभेड़ का आधार बताया। सो पहला कोर इश्यू यह है कि आंतकी लिंक था या नहीं, इस पर कौन सच्चा है? और इसके सच को छुपाने के लिए ही क्या चिदंबरम के स्तर पर गोलमाल नहीं हुआ? सच को झूठ और झूठ को सच बताने की कारस्तानी क्या नहीं हुई?

यह सवाल भगवा आंतक के नाम पर हिंदुओं को बदनाम करने के सिलसिले में अधिक गंभीर है। आज एक और नया खुलासा हुआ कि मालेगांव बम विस्फोट में जिस कर्नल पुरोहित को एनआईए ने भगवा आंतक का चेहरा बनाया,उसने 2008 में खुद दक्षिणपंथी आंतक की चेतावनी दी। तब उसे ही कैसे मनमोहन सरकार ने भगवा आंतक का चेहरा बना डाला?

सो क्या वक्त नहीं आ गया कि एनआईए और मनमोहन सरकार के आंतक के मामले में सचे-झूठे साजिशी एंगल की जांच के लिए कोई जांच आयोग बने?

1 COMMENT

  1. समझ में ही नहीं आया कि आप कहना क्या चाहते हैं. भगवा आर्तंक माने हिंदू आतंकवादी??? यदि हाँ तो मालेगाँव केस के अधिवक्ता ने खास तौर पर वक्तव्य दिया है कि उन्हें केस में नरमी बरतने के लिए दबाव बनाया गया है और न मानने पर उन्हे हटा भी दिया गया है…. जब मामला कोर्ट में है तो आप अपनी जबान खराब क्यों करते हैं. इंतजार कीजिए फैसला आ जाएगा. केवल भक्त बनने से कोई फायदा होने वाला नहीं है. देखिए बेचारे खेर साहब का नाम लगता है रुका रह गया .. कि जनता ना भ़के.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here