मुख्यमंत्री शिवराज के ग्यारह साल

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shivraj-singhजावेद अनीस

बीते 29 नवंबर को शिवराज सिंह चौहान @ChouhanShivraj ने बतौर मुख्यमंत्री 11 साल पूरे कर लिए हैं. मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐसा करने वाले वे इकलौते राजनेता हैं आने वाले समय में किसी दूसरे मुख्यमंत्री के लिए इसे दोहरा पाना आसान नहीं होगा. भारतीय राजनीति के इतिहास में अभी तक केवल आठ राजनेता ही ऐसे हुए हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल है .अभी वे पद पर बने रहकर अगली जीत की तैयारी में लगे हुए हैं . अक्टूबर महीने में इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट  में वे एलान कर ही चुके हैं कि 2019 में आयोजित होने वाले इंवेस्टर्स समिट में वे एक बार फिर बतौर मुख्यमंत्री मौजूद रहेंगें. अगर वे 2018 में होने वाला विधानसभा चुनाव जीत लेते हैं तो इसकी धमक राष्ट्रीय राजनीति में भी सुनाई पड़ेगी. व्यापम और झाबुआ के हार की परछाई पीछे छूट चुकी है और शिवराज सिंह अपना आत्मविश्वास दोबारा हासिल कर चुके हैं. शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत ने दोहरे जश्न का मौका दिया है. भाजपा उनके इन ग्यारह सालों को विकास काल के रूप में प्रचारित कर रही है जबकि विपक्ष इसे घोटालों का काल बता रहा है.

 

राष्ट्रीय राजनीति में संगठन की जिम्मेदारी संभाल रहे शिवराजसिंह चौहान को 2005 में जब भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री बनाकर मध्यप्रदेश भेजा था तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि चौहान इतनी लंबी पारी खेलेंगे, 11 साल बीत जाने के बाद भी वे अभी तक अपनी जगह पर जमे हुए हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवराज बुदनी से उपचुनाव लड़ रहे थे तो उस वक्त दिग्विजय सिंह ने कहा था अगर शिवराज सिंह बुदनी से चुनाव जीत लें तो हम समझेंगें कि पप्पू पास हो गया. जिसे दिग्विजय सिंह ने पप्पू कहा था उसने ना केवल बुदनी का चुनाव जीता बल्कि अपनी पार्टी को दो बार विधान सभा चुनाव भी जीता चूका है और अब तीसरी जीत की तैयारी कर रहा है. इस दौरान उन्होंने सूबे में कांग्रेस पार्टी को लगभग अप्रासंगिक बना दिया है और पार्टी के अंदर से मिलने वाली चुनौती को पीछे छोड़ने में कामयाब रहे हैं.

 

शिवराज के राजनीति की शैली टकराव की नहीं बल्कि लोप्रोफाईल,समन्वयकारी और मिलनसार रही है. वे एक ऐसे नेता है जो अपना काम बहुत नरमी और शांतिभाव से करते हैं लेकिन नियंत्रण ढीला नहीं होने देते. आज मध्यप्रदेश की सरकार और संगठन दोनों में उन्हीं का दबदबा है. पिछले ग्यारह सालों में उन्हें केवल बाहर से ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर से भी घेरने की कोशिश की गयी है लेकिन वे हर चुनौती से पार पाने में कामयाब रहे हैं. मौजूदा दौर में मध्यप्रदेश में विपक्ष के पास भी ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो शिवराज सिंह का विकल्प बनता हुआ दिखाई पड़े. अगर मध्यप्रदेश में भाजपा और शिवराज लगातार मजबूत होते गये हैं तो इसमें कांग्रेस का भी कम योगदान नहीं है. पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है और उसके क्षत्रप अपने इलाकों तक सीमित होकर रह गए हैं उनकी दिलचस्पी कांग्रेस को मजबूत बनाने से ज्यादा अपना हित साधने में है. इसी वजह से कांग्रेस जनता के सामने खुद को भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करने में  बुरी तरह नाकाम रही है पिछले 11 सालों से मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराजसिंह को कांग्रेस के रूप में एक प्रभावविहीन विपक्ष मिली है. शिवराज काल में कांग्रेसी कभी भी एकजुट होकर आक्रामक मुद्रा में नजर नहीं आयी है.

2014 लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी और शिवराज के बीच टक्कर भी देखने को मिली थी. इससे पहले लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी शिवराज के विकास के माडल मोदी के गुजरात के विकास के माडल से बेहतर बता चुके थे. लेकिन 2014 में दिल्ली में मोदी की सरकार बनने के बाद आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  को ईश्वर की भारत को दी गई भेंट बताने लगे. दरअसल शिवराज की यही सबसे बड़ी ताकत है कि वे बदलते वक्त के हिसाब से अपने आप को ढाल लेते हैं .

 

इन ग्यारह सालों में कई ऐसे मौके आये जब शिवराजसिंह चौहान पर सवाल उठे, डंपर से लेकर व्यापम तक की मामलों की एक पूरी श्रंखला है जिसके घेरे में वे सीधे तौर पर रहे हैं. कांग्रेस ने उनके 11 वर्ष के कार्यकाल को 132 घोटालों का काल बता रही है. जबकि आम आदमी पार्टी ने एक  लिस्ट जारी की है जिसमें दुष्कर्म के मामलों में मध्यप्रदेश के अव्वल होने, भ्रष्टाचार में देश में दूसरे नंबर पर होने, युवाओं व विद्यार्थियों का सबसे बड़ा घोटाला व्यापमं घोटाला होने, राज्य के 45 प्रतिशत बच्चों का कुपोषित होना, राज्य पर एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये का कर्ज होने जैसे आरोप लगाये गये हैं.

 

शिवराजसिंह चौहान जनता को लुभाने वाली घोषणाओं के लिए भी मशहूर रहे हैं इसी वजह से उन्हें घोषणावीर मुख्यमंत्री भी कहा गया. बच्चों और महिलाओं को केंद्र में रखते हुए उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना, तीर्थदर्शन योजना, कन्यादान योजना, अन्नपूर्णा योजना, मजदूर सुरक्षा योजना जैसी कई चर्चित सामाजिक योजनाओं की शुरुआत की गयी है.उनकी लोकप्रियता में इन योजनाओं का भी काफी योग्यदान है, इन्हीं की वजह से वे खुद छवि प्रदेश की महिलाओं के भाई और बच्चों के ‘मामा’ के रूप में पेश करने में कामयाब रहे हैं. लेकिन इन सबके बावजूद जमीनी हकीकत और आंकड़े कुछ और ही कहानी  बयान करते हैं. तमाम दावों के बावजूद मानव विकास सूचकांक के कई मानको पर आज भी मध्यप्रदेश भारत के सबसे निचले राज्यों के साथ खड़ा है.

अप्रेल 2015 में भूकंप आने के बाद  शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि इतने सालों  सालों में यह पहली बार था जब उनकी कुर्सी हिल थी. यह सही भी है  पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन और व्यापम जैसे तमाम झटकों के बावजूद वे अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे हैं. आज वे बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की जमात में सबसे अनुभवी मुख्यमंत्री और स्वीकार्य नेता हैं. वे इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिन्हें भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है, नीति आयोग में भी उन्हें  राज्यों की योजनाओं में तालमेल जैसी भूमिका दी गयी है. उनकी छवि सभी समुदायों को साथ लेकर चलने वाली और जरूरत पड़ने पर टोपी पहन लेने वाले नेता की रही है,वे इफ्तार पार्टी और ईद मिलन का भी आयोजन करते रहे हैं. लेकिन पिछले दिनों भोपाल एनकाउंटर के बाद उनका अंदाज कुछ बदला हुआ नजर आया जब प्रदेश स्थापना दिवस के दौरान शिवराज नरेंद्र मोदी के अंदाज में जनता से हाथ उठवाकर भोपाल एनकाउंटर पर मुहर लगवा रहे थे. तथाकथित आतंकवादियों को मार गिराने को लेकर  हुंकार भरने  का उनका अंदाज भी नया था.

खोल बदलने की इस कवायद के पीछे जो भी हो लेकिन शिवराज का कद  प्रदेश  ही नहीं बल्कि भाजपाऔर प्रदेश और देश की राजनीति में भी लगातार बढ़ा है. कद के साथ मंजिल भी बड़ी हो जाती है लेकिन राजनीति में बढ़ता हुआ सियासी कद नई चुनौतियां भी सामने लाता है और कई बार तो यह अपनों को भी यह रास नहीं आता हैं. यह तो भविष्य ही तय करेगा कि आने वाले सालों में वे और कौन से नए मुकाम तय करेंगें. फिलहाल उनका लक्ष्य 2018 है जिसके लिए वे पूरी तरह से तैयार नजर आ रहे हैं. अगर जीत हुई तो निश्चित रूप से उनका अगला लक्ष्य बड़ा हो जाएगा.

 

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