मुख्यमंत्री का मौनव्रत

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प्रमोद भार्गव

मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भ्रष्टाचार-निषेध से जुड़े एक लंबित विधेयक को अनुमोदित कराने के लिए अपने संपूर्ण मंत्री मण्डल के साथ दिल्ली में मौनव्रत साधने की धमकी देने का जुमला छोड़ा है। मध्य-प्रदेश राज्यमंत्री परिषद् से पारित यह विधेयक भारत सरकार के गृह मंत्रालय में बीते एक साल से लटका हुआ है। इस बावत् श्री चौहान, गृहमंत्री पी. चिदंबरम् और राष्ट्रपति प्रतिभादेवी पाटिल से व्यक्तिगत मुलाकातें कर इसे जल्द अनुमोदित करने के दृष्टिगत कई मर्तबा आग्रह भी कर चुके हैं। जबकि इसी प्रकृति का बिहार विधेयक अनुमोदित किया जा चुका है और उसे आधार बनाकर वहां भ्रष्ट आचरण से कमाई बेनामी संपत्ति की जब्ती का सिलसिला शुरू भी हो गया है। इस कारण प्रदेश की भाजपा सरकार को यह आशंका है कि इस विधेयक को जान-बूझकर लटकाया जा रहा है, जिससे भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी मुहिम न चल सके और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को खुला मैदान छोड़ दे ? इधर दिल्ली में मौनव्रत सत्याग्रह साधने की तारीख तय न होने के कारण यह धारणा भी बनी है कि यह सब विधेयक यथाशीघ्र मंजूर हो जाए इसलिए हवा में तीर छोड़ा गया है।

मध्य-प्रदेश राज्य मंत्री-परिषद् ने भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई को जब्त करने के लिए ‘मध्य-प्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक-2011’ को नवंबर-2011 में मंजूरी दी थी। इसे तत्काल राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया गया था। किंतु तब से यह राष्ट्रपति और गृहमंत्री के कार्यालयों के बीच हिचकोले खा रहा है। इस विधेयक के मसौदे में संहिताओं को ऐसी इबारत दी गई है कि इसके दायरे में सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री और भृत्य से लेकर प्रमुख सचिव तो आएंगे ही सेवानिवृत्त अधिकारियों, पूर्व जन-प्रतिनिधियों व मंत्रियों को भी नहीं बख्शा जाएगा। यहां से हुए फैसले की अपील उच्च न्यायालय में ही संभव होगी। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विचाराधीन मामले भी इन्हीं अदालतों में स्थानांतरित कर दिए जाएंगे। यदि पहली नजर में यह महसूस होता है कि लोकसेवक ने आय से अधिक संपत्ति गैर-कानूनी तरीकों से बनाई है तो वह संपत्ति तत्काल अस्थाई तौर से और मामला सिद्ध हो जाने पर स्थाई तौर से जब्त कर ली जाएगी। लेकिन इस विधेयक में भी कई ऐसे पेंच हैं, जिससे जाहिर होता है कि यह विधेयक हाथी के दिखने वाले दांतों का पर्याय भर न बनकर रह जाएं और विशेष अदालतों के बहाने खड़े किए जाने वाले ढांचे का बोझ आम जनता बेवजह उठाने को मजबूर हो जाए ?

पिछले दो सालों में देश की कुछ जिला अदालतों ने ऐसे फैसले दिए हैं, जो नजीर बने हैं। इनसे साबित होता है कि आला अधिकारियों को सजा भी हो सकती है और जुर्माना लगाकर काली कमाई भी राजसात की जा सकती है। बिहार में तो नीतीश कुमार कोई नया विधेयक लाए बिना और मौजूदा कानूनों में कोई संशोधन किए बिना न केवल भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त करने का सिलसिला शुरू किया, बल्कि राजसात किए भवनों में पाठशालाएं भी खोलना शुरू कर दीं। उत्तर-प्रदेश की गाजियाबाद जिला अदालत ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रथम महिला अधिकारी नीरा यादव को चार साल की सजा सुनाकर सीधे जेल भेज दिया था। इसी तर्ज पर मध्य-प्रदेश में स्थित देवास की जिला अदालत ने लोक निर्माण विभाग शाजापुर के उपमंत्री प्रीतम सिंह पर पांच करोड़ का जुर्माना और तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाकर अनुकरणीय पहल की थी। इसीलिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया सवाल उठाते हैं कि ‘जब सामान्य अदालतें इतने कठोर फैसले सुना सकती हैं तो विशेष न्यायालयों की जरूरत ही क्या है ? दरअसल भाजपा सरकार खुद नहीं चाहती कि भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसे, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार उसी के पिछले आठ सालों के कार्यकाल में पनपा है ?

श्री भूरिया का सवाल बेजा भी नहीं है, क्योंकि मध्य-प्रदेश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध जंग के लिए लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो जैसी सशक्त संस्थाएं हैं। विशेष अदालतों की जगह इन्हें ही और मजबूत तथा स्वायत्त बना दिया जाए। क्योंकि किसी भी सरकार के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व की मंजूरी बिना सीधे चालान पेश करने का कानूनी हक न तो लोकायुक्त के पास है और न ही ईओडब्ल्यू के पास ? इसलिए मध्य-प्रदेश में पिछले दो साल के भीतर कई आला नौकरशाहों व मामूली कर्मचारियों के पास से करोड़ों-अरबों की चल-अचल संपत्ति बरामद की गई है, इसके बावजूद एक भी बड़े अधिकारी के खिलाफ चालान पेश नहीं किया जा सका ? मध्य-प्रदेश कॉडर के आईएएस दंपत्ति आनंद-टीनू जोशी के घर से तीन करोड़ और स्वास्थ्य संचालक योगीराज शर्मा के पास से 10 करोड़ की बेनामी संपत्ति मिल चुकी है, इसके बावजूद मामला अदालत में चलाने की इजाजत शिवराज सिंह सरकार ने आजतक नहीं दी। बल्कि योगीराज शर्मा को तो हाल ही में बहाल भी कर दिया गया है।

इस सब के बावजूद मुख्यमंत्री अपने भाषणों में डंके की चोट पर कहते हैं कि ‘हमने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यु को भ्रष्टाचारियों के यहां छापे डालने की खुली छूट दे रखी है। इसीलिए छापों में तेजी आई है। इसके बावजूद कांग्रेस प्रदेश में जमा कालाधन बरामद करने की राज्य सरकार की मुहिम को हमारे ही भ्रष्टाचार से जोड़कर प्रचारित कर रही है, जो गलत है। हम तो सरकारी कार्य-प्रणाली में सुधार के लिए लोक सेवा गारंटी कानून और विशेष अदालतों का गठन कर भ्रष्टाचार की लड़ाई को और कठोर बनाना चाहते हैं।’

विशेष अदालतें स्थापना संबंधी विधेयक को लटकाने के सिलसिले में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा तो और भी सख्त हैं। उनका कहना है, यह संविधान प्रदत्त संघीय प्रणाली का अपमान है। केंद्र के गृह मंत्रालय ने विधेयक को लटकाए रखकर सीधे संधीय ढांचे में दस्तक व दखल दी है, जो असंवैधानिक एवं अवैध है।‘

बहरहाल इस विधेयक को लेकर मुख्यमंत्री ने दिल्ली में मौनव्रत साधने की जो धमकी दी है, उससे टकराव के हालात तो पैदा हुए हैं, किंतु लगता नहीं है कि मुख्यमंत्री अपने मंत्री मण्डल के साथ दिल्ली में मौन साधने की हिमाकत करेंगे। हालांकि इस दबाव के चलते ऐसी उम्मीद जगी है कि संहिताओं में मामूली संशोधनों की प्रस्तावना के साथ जल्दी ही इस विधेयक को केंद्र मंजूरी दे देगा। लेकिन यहां भाजपा को अनुपात हीन संपत्ति की जब्ती के लिए यह कोशिश भी करनी चाहिए कि समानांतर कानून व विशेष न्यायालयों का ढांचा खड़ा करने की बजाय, कानून एक सीधी सरल रेखा में सामने आए, जिससे नौकरशाही, गैर कानूनी कदम उठाने से पहले हिचके और दण्ड के भय से भयभीत रहे।

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