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औलाद के लिए षडयंत्र किया दिलीप कुमार ने पर बन न सके बाप…..

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-अनिल अनूप
भारतीय सिनेमा में ट्रेजडी किंग नाम से मशहूर दिलीप कुमार एक महान विश्वविदित लोकप्रिय अभिनेता हैंl दुखद सीन में अपनी मार्मिक एक्टिंग से सबके दिल को छू लेने की वजह से इन्हें ट्रेजडी किंग कहा गया. जन्म से उनका नाम मोहम्मद युसूफ खान था, हिंदी सिनेमा में आने के बाद इन्होनें अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया. दिलीप कुमार जी एक प्रतिष्ठित अभिनेता है, जिन्होंने हिंदी सिनेमा जगत में 5 दशक की लम्बी पारी खेली है. भारतीय सिनेमा के गोल्डन एरा के समय के अग्रिम अभिनेता रहे दिलीप कुमार जी ने बॉलीवुड में 1940 में कदम रखा था, उस समय हिंदी सिनेमा अपने शुरुवाती दौर में था, उस समय ना ज्यादा एक्टर हुआ करते थे, ना फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर. देश की आजादी के पहले फिल्म देखने वाला दर्शक वर्ग भी काफी सिमित थाl
दिलीप कुमार जी को एक्टिंग करने का मौका भी किस्मत से मिला था, उस समय वे एक कैंटीन चलाया करते थे, वहां एक्ट्रेस देविका रानी गई जिन्होंने उन्हें देखकर फिल्म में काम करने का मौका दे डाला. अपनी पहली फिल्म न चलने के बावजूद इन्होंने जल्द ही खुद को उस दशक के अंत तक भावनात्मक अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया था.
पाकिस्तान के पेशावर में लाला गुलाम के यहाँ 11दिसम्बर 1922 को जन्मे दिलीप12 भाई बहन थे. इनके पिता फल बेचा करते थे, और अपने मकान का कुछ हिस्सा किराये में देकर जीवनयापन करते थे. दिलीप कुमार जी ने अपनी स्कूल की पढाई नासिक के पास के किसी स्कूल से की थी. 1930 में इनका पूरा परिवार बॉम्बे में आकर रहने लगा. 1940 में अपने पिता से मतभेद के चलते उन्होंने मुंबई वाले घर को छोड़ दिया और पुणे चले गए. यहाँ उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद शाह से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब में एक सैंडविच का स्टाल लगा लिया. कैंटीन का कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद दिलीप जी 5000 की सेविंग के साथ वापस अपने घर बॉम्बे लौट आये. इसके बाद अपने पिता की आर्थिक मदद करने के लिए दिलीप जी नया काम तलाशने लगे.
1943 में चर्चगेट में इनकी मुलाकात डॉ मसानी से हुई, जिन्होंने उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने का ऑफर दिया. फिर इसके बाद इनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई, जिनके साथ उन्होंने 1250 रूपए सालाना का अग्रीमेंट कर लिया. यहाँ उनकी मुलाकात महान अभिनेता अशोक कुमार जी से हुई जो दिलीप जी की एक्टिंग से बहुत मोहित हुए. शुरुवात में दिलीप जी कहानी व स्क्रिप्ट लेखन में मदद किया करते थे, क्यूंकि उर्दू व् हिंदी भाषा में इनकी अच्छी पकड़ थी. देविका रानी के कहने पर ही दिलीप जी ने अपना नाम युसूफ से दिलीप रखा था. जिसके बाद 1944 में उन्हें ज्वार भाटा फिल्म में लीड एक्टर का रोल मिला, इसे दिलीप जी की पहली फिल्म माना गया.
दिलीप कुमार जी को सबसे पहले एक्ट्रेस कामिनी कौशल से प्यार हुआ था, लेकिन किसी परेशानी की वजह से उनकी शादी नहीं हो पाई. इसके बाद इनकी मुलाकात मधुबाला से हुई, जिनसे उन्हें गहरा प्यार हो गया. दिलीप जी उनसे शादी भी करना चाहते थे, लेकिन मधुबाला के पिता इस बात के सख्त खिलाफ थे. इसका कारण ये माना जाता है कि मधुबाला अपने परिवार में एकलौती कमाने वाली थी, उनके चले जाने पर परिवार के खाने पिने के लाले पड़ जाते. दिलीप कुमार व् मधुबाला को साथ में बहुत से डायरेक्टर्स लेना चाहते थे, लेकिन जब मधुबाला के पिता को उनके प्यार के बारे में पता चला, तो उन्होंने दिलीप जी के साथ उनके काम करने में पाबंदी लगा दी.
दोनों ने साथ में मुग़ल ए आजम जैसी महान फिल्म भी की थी, ये वो दौर था जब दोनों के प्यार के चर्चे जोरों पर थे, लेकिन पिता की मनाही की वजह से दोनों अलग हो रहे थे. मुग़ल ए आजम फिल्म भी कुछ इसी तरह की थी, जिस वजह से फिल्म का हर एक रियल बन गया और फिल्म हिंदी सिनेमा की महान पसंदीदा फिल्म बन गई.
unnamed1966 में अचानक दिलीप कुमार जी ने बिना किसी को बताये एक्ट्रेस सायरा बानो से शादी कर ली, उस समय दिलीप जी 44 साल के थे और सायरा 22 साल की. इस शादी से सभी अचंभित थे.फिल्मी दुनिया की यह शादी जमाने मे काफी मशहूर रहा वहीं सायरा जी का कहना था कि “मुझे लोग श्रीमती दिलीप कहें इससे बढकर और खुशी क्या होगी?” 1980 में दिलीप जी ने अस्मा नाम की एक लड़की से दूसरी शादी कर ली, क्योंकि वे पिता बनना चाहते थे, लेकिन इनकी शादी जल्द ही ख़त्म हो गईl
हर आदमी शादी के बाद बाप बनने का सपना देखता है। लेकिन दिलीप कुमार की इच्छा पूरी नहीं हो सकी। दिलीप कुमार ने अपने इस दर्द का जवाब अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘द सबस्टांस एंड द शैडो’ में दिया है। बुक में दिलीप कुमार ने कहा है, “सच्चाई यह है कि 1972 में सायरा पहली बार प्रेग्नेंट हुईं। यह बेटा था (हमें बाद में पता चला)। 8 महीने की प्रेग्नेंसी में सायरा को ब्लड प्रेशर की शिकायत हुई। इस दौरान पूर्ण रूप से विकसित हो चुके भ्रूण को बचाने के लिए सर्जरी करना संभव नहीं था और दम घुटने से बच्चे की मौत हो गई।” दिलीप की मानें तो इस घटना के बाद सायरा कभी प्रेग्नेंट नहीं हो सकीं।
दिलीप कुमार को बाप न बनने का दर्द कहीं न कहीं आज भी है, आईए दिलचस्प वाकये से रू ब रू होते हैं –
अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण दिलीप कुमार ने वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने का निर्णय अपेक्षाकृत विलंब से स्वीकार किया। 11 अक्टूबर 1966 को जब उन्होंने 25 वर्षीय अभिनेत्री सायरा बानो के साथ शादी की, तब उनकी उम्र 44 की हो गई थी, जबकि उनके दर्शक दो दशकों से उनके विवाह की प्रतीक्षा कर रहे थे।
स्वयं दिलीप कुमार भी ‘द मोस्ट इलिजिबल बैचलर’ संबोधित किए जा रहे थे। विवाह की घोषणा से सिने-जगत में खुशी की लहर दौड़ गई थी। निकाह परंपरागत मुस्लिम रीति से हुआ।
बरात की अगुवाई पापा पृथ्वीराज कपूर ने की थी। दूल्हे मियाँ सेहरा बाँधकर घोड़ी पर चढ़े थे और आजू-बाजू राज कपूर, देव आनंद चल रहे थे। इस विवाह का खूब प्रचार हुआ था और बड़ी संख्या में लोग आए थे। संगीत और आतिशबाजी की धूमधाम के बीच जोरदार दावत हुई थी।
यह सर्वविदित है कि सायरा बानो गुजरे जमाने की अभिनेत्री नसीम बानो की बेटी हैं। नसीम ने अहसान मियाँ नामक एक अमीर आदमी से प्रेम विवाह किया था। अहसान मियाँ ने नसीम की खातिर कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया।
सायरा का जन्म 23 अगस्त 1941 को मसूरी में हुआ था। सायरा की नानी शमशाद बेगम दिल्ली की एक गायिका थीं, जिन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म ‘खून का खून’ में अभिनय भी किया था (पार्श्व गायिका शमशाद अलग हैं)। बाद में नसीम और अहसान का रिश्ता टूट गया।
भारत-पाक विभाजन के बाद अहसान कराची जा बसे। नसीम मुंबई में बनी रहीं। बाद में वे अपनी बेटी सायरा और बेटे सुल्तान को लेकर लंदन में जा बसीं। सायरा की स्कूली शिक्षा लंदन में हुई। छुट्टियों में वे मुंबई आती थीं, तभी से परवरदिगार से यह प्रार्थना करने लगी थीं कि मुझे अपनी माता जैसी अभिनेत्री बना दो और जब मैं बड़ी हो जाऊँ तो श्रीमती दिलीप कुमार कहलाऊँ।
अक्टूबर 1966 के विवाह से सायरा का एक और सपना पूरा हुआ। हिन्दी फिल्मों की लोकप्रिय नायिका वे पहले ही बन चुकी थीं। लंदन से लौटकर फिल्मी दुनिया में सायरा 1959 में ही दाखिल हो गई थीं। माता नसीम के पुराने हितैषी फिल्मालय के एस मुखर्जी ने सायरा को फिल्म ‘जंगली’ में रिबेल स्टार शम्मी कपूर के साथ लांच किया था और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
विवाह से पूर्व थोड़े समय सायरा और जुबली स्टार राजेंद्र कुमार
के बीच रोमांस भी चला था।
नसीम और मुखर्जी के कहने पर दिलीप कुमार ने सायरा को शादीशुदा और बाल-बच्चेदार राजेंद्र कुमार से दूर रहने के लिए प्यार से समझाया था और बदले में खुद दिलीप कुमार ने सायरा को अपनी खातून-ए-खाना (धर्मपत्नी) बनाया।
सन् साठ में नसीम बानो ने पाली हिल इलाके में दिलीप कुमार के बंगले के पास ही जमीन खरीदी थी। जब सायरा प्लॉट देखने गईं, तभी वे दिलीप कुमार की बहनों से मिलने भी गईं। दिलीप घर में ही थे।
‘जंगली’ (1961) के बाद सायरा ने शम्मी कपूर के साथ ‘ब्लफ मास्टर’ और मनोज कुमार के साथ ‘शादी’ फिल्म में काम किया। ये श्वेत-श्याम फिल्में कोई खास सफल नहीं रहीं। इसके बाद विश्वजीत के साथ उनकी फिल्म ‘अप्रैल फूल’ बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। इसके बाद आई राजेंद्र कुमार के साथ उनकी फिल्म ‘आई मिलन की बेला’। बस यहीं से सायरा-राजेंद्र कुमार के रोमांस के चर्चे शुरू हुए और जुबली स्टार की पत्नी शुक्ला, जो तीन बच्चों की माँ बन चुकी थीं, संकटग्रस्त हो गईं। नसीम बानो को भी अपनी बेटी की नादानी पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
बहरहाल, ‘आई मिलन की बेला’ के बाद सायरा-राजेंद्र की जोड़ी ने ‘अमन’ और ‘झुक गया आसमान’ फिल्में दीं।
वे दोनों के. आसिफ की फिल्म ‘सस्ता खून, महँगा पानी’ में भी लिए गए थे, लेकिन दिलीप-सायरा की शादी के बाद आसिफ ने इस फिल्म को नहीं बनाने का फैसला किया। स्वयं आसिफ ने दिलीप की बहन अख्तर से विवाह किया था और वे अपने साले की जिंदगी में कोई खलबली नहीं चाहते थे।अगस्त 1965 की 23 तारीख। सायरा का जन्मदिन था, जिसमें दिलीप को भी बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने आने में असमर्थता जता दी थी। मगर सायरा को राजेंद्र कुमार के आगमन की ज्यादा उत्सुकता थी। राजेंद्र कुमार अपनी पत्नी शुक्ला को लेकर इस पार्टी में पहुँचे। यह देखकर सायरा बिफर गईं। नसीम अपने बेटे सुल्तान को लेकर दिलीप कुमार
के घर पहुँचीं और पार्टी में चलकर सायरा को मनाने का आग्रह किया, जिसके लिए वे मुश्किल से राजी हुए।
अपनी बर्थडे पार्टी में सायरा दिलीप कुमार को देखकर रोमांचित हो गईं। किसी सोची-समझी योजना के तहत नसीम बानो और एस. मुखर्जी ने दिलीप कुमार से कहा कि इससे राजेंद्र कुमार के रिश्ते के बारे में बात करो।
तब तक दिलीप सायरा को ठीक तरह से जानते भी नहीं थे और उन्हें यह प्रस्ताव भी अजीब लगा। नसीम ने उनसे कहा कि उनकी बेटी की जिंदगी का सवाल है।
दिलीप कुमार ने, जो बातें बनाकर अपनी बात मनवाने में बड़े माहिर माने जाते हैं, सायरा से कहा कि वे नौजवान, सुंदर, शिक्षित स्त्री हैं, फिर ऐसे रिश्ते के लिए क्यों जिद पर अड़ी हैं, जिसके नतीजे में सिवाय दुःख के कुछ नहीं मिल सकता? दिलीप जब ये बातें कर रहे थे, सायरा ने पलटकर पूछा, तो क्या आप मुझसे शादी करने के लिए तैयार हैं? दिलीप यह सवाल सुनकर चकित रह गए, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
इसके बाद नसीम और एस. मुखर्जी अकसर दिलीप कुमार से मिलकर सायरा से विवाह करने का अनुरोध करने लगे। सायरा ने भी फील्डिंग शुरू कर दी। वे भी दिलीप से मिलने लगीं। एक मर्तबा जब दिलीप मद्रास में बीमार हुए तो सायरा पहली फ्लाइट पकड़कर वहाँ पहुँचीं और तीमारदारी की। महाबलेश्वर में भी मुलाकातें हुईं। दिलीप कुमार धीरे-धीरे उनकी तरफ झुकने लगे। उन्हीं दिनों उनकी फिल्म ‘दिल दिया, दर्द लिया’ नाकाम रही, जिसमें उनकी नायिका वहीदा रहमान थीं।
दिलीप कुमार ने सोचा काफी आवारागर्दी हो चुकी, अपनी आजादी को कभी आसानी से छोड़ा नहीं, लेकिन धीरे-धीरे यह जब्त होती जा रही है। और विवाह का बहुप्रतीक्षित फैसला हो गया।
अविवाहित दिलीप कुमार की अपने परिवार से खासी निकटता थी, लेकिन विवाह के बाद वे भाई-बहनों से दूर होते गए और सायरा के परिवार से उनकी प्रगाढ़ता बढ़ी। दिलीप के भरे-पूरे परिवार में सायरा को जमता नहीं था, इसलिए वे माँ के पास लौट आईं। दिलीप कुमार बहुत साफ-सुथरे आदमी हैं। सबकी भलाई को मद्देनजर रखकर जो अच्छा हो सकता था वह उन्होंने किया।
उस समय उनकी अधिकांश फिल्में मद्रास में बन रही थीं, इसलिए उन्होंने वहाँ एक बंगला किराए पर ले लिया और अपने वैवाहिक जीवन के आरंभिक कई वर्ष दिलीप-सायरा ने आज की चेन्नई नगरी में गुजारे।
सायरा ने फिल्मों में काम जारी रखा। वे दिलीप कुमार के अलावा अन्य अभिनेताओं की भी नायिका बनती रहीं। ‘विक्टोरिया नंबर 203’ की शूटिंग के समय सायरा गर्भवती थीं, लेकिन काम रोका नहीं, नतीजतन उन्हें एक मृत शिशु पैदा हुआ।
इस दुःखद घटना के समय दिलीप कुमार फूट-फूटकर रोए थे। बाद में सायरा को सिवाय गर्भपात के कुछ नहीं मिला और वे बीमार पड़ गईं। बेटी की अच्छी देखभाल के लिए नसीम बानो सायरा को मद्रास से मुंबई ले आईं।
दिलीप-सायरा ने चार फिल्में साथ में की। इनमें पहली थी ‘गोपी’, (1970)। यह एक सफल फिल्म थी। बाद में इन्होंने ‘सगीन-महतो’ और ‘बैराग’ (76) एक साथ की। ‘बैराग’ के बाद दिलीप कुमार को शायद थोड़ा वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों में काम करना बंद कर दिया, लेकिन सायरा ने काम जारी रखा और धर्मेंद्र के साथ कई फिल्में की।
दिलीप-सायरा विवाह की भी अपनी समस्याएँ थीं। सायरा अपनी फिल्मों में व्यस्त और परिवार में मस्त थीं। विवाह के बाद से दिलीप की मित्रमंडली भी बिखर गई थी। 1979 में दिलीप-सायरा की जिंदगी में एक तूफान आया, जब इनके बीच दूसरी औरत आ खड़ी हुई।
वह हैदराबाद की एक खूबसूरत अमीरजादी अस्मा थी, जिससे दिलीप कुमार ने 30 मई 1980 को बंगलोर में शादी की और बाद में 22 जून 1983 को दोनों के बीच तलाक हो गया।
उसके बाद सायरा ने अपने वैवाहिक जीवन में कभी कोई रुकावट नहीं पाई और वे श्रीमती दिलीप कुमार होने का सारा सुख पाती रही हैं। उनके पति की दुनियाभर में शोहरत है और उन्हें राष्ट्रप्रमुखों जैसा सम्मान सर्वत्र प्राप्त होता है।
समझा जाता है कि पहले से शादीशुदा और बाल-बच्चेदार अस्मा किसी षड्यंत्र के तहत दिलीप कुमार के जीवन में आई थी। दिलीप कुमार ने समय रहते उससे छुटकारा पा लिया। अब वह फिर से अपने पूर्व पति के साथ रह रही है। इस शादी पर शोर इसलिए मचा था क्योंकि दिलीप कुमार ने न जाने क्यों इसे गोपनीय रखना चाहा था और विवाह संबंधी खबरों को झूठा बताया था, जबकि वे सच्ची थीं। लेकिन बेशक दिलीप कुमार की औलाद पाने की मुराद भी इस पूरे कांड के पीछे कहीं न कहीं थी।
अपनी पहली फिल्म ज्वार भाटा के फ्लॉप होने के बाद दिलीप जी ने 1947 में जुगनू नाम की फिल्म की. ये फिल्प सुपरहिट रही, जिसके बाद दिलीप कुमार रातों रात एक बड़े स्टार बन गए. इस फिल्म की सफलता के बाद दिलीप जी के पास फिल्मों के ऑफर की बाढ़ आ गई. 1948 में उन्होंने शहीद, अनोखा प्यार, मेला जैसी मूवी कीl
1949 में दिलीप जी को राज कपूर व् नर्गिस के साथ अंदाज फिल्म में काम करने का मौका मिला, ये उस समय की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म बन गई.
1950 का दशक हिंदी सिनेमा के बहुत उपयोगी साबित हुआ. इस समय दिलीप जी की ट्रेजडी किंग की छवि धीरे धीरे लोगों के सामने उभरकर आने लगी थी. जोगन, दीदार व् दाग जैसी फिल्मों के बाद से ही लोग इन्हें ट्रेजडी किंग बोलने लगे थे. दाग फिल्म के लिए इन्हें पहली बार फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिला. इसके बाद 1955 में देवदास जैसी महान फिल्म दिलीप जी ने वैजयंतिमाला व् सुचित्रा सेन के साथ की थी. शराबी लवर का ये रोल दिलीप जी ने शिद्दत से निभाया था, जिसमें सबने उन्हें ट्रेजिक लोवर का ख़िताब दिया. 1957 में दिलीप जी ने वैजयंती माला के साथ ‘नया दौर’ नाम की फेमस फिल्म की थी. ट्रेजडी रोल के अलावा दिलीप जी ने कुछ हलके रोल भी किये थे, आन व् आजाद में उन्होंने कॉमेडी भी की थी.
50 के दशक में स्टार के तौर पर स्थापित होने के बाद दिलीप जी ने 1960 में कोहिनूर फिल्म की जिसमें उन्हें एक बार फिल्म फिल्मफेयर अवार्ड मिला.
60 के दशक में उनकी गंगा जमुना, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम व् आदमी जैसी फिल्म फ्लॉप हो गई. गंगा जमुना में इन्होने अपने रियल भाई नासिर खान के साथ काम किया था. लेकिन इससे दिलीप जी के स्टारडम में कोई फर्क नहीं पड़ा. 1960 में ही दिलीप जी ने देश की सबसे बड़ी फिल्म मुग़लए आजम में शहजादे सलीम की भूमिका निभाई, जो करियर की सबसे बड़ी हिट साबित हुई.
70 के दशक में दिलीप जी ने कम फिल्मों में काम किया, ये वो दौर था जब राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार बॉलीवुड में एंट्री ले चुके थे. इस दशक में उनकी कुछ ही फ़िल्में आई, जो सभी फ्लॉप रही. इसके बाद दिलीप जी ने 5 सालों का का लम्बा ब्रेक ले लिया और 1981 में मल्टी स्टारर ‘क्रांति’ फिल्म से वापसी की. इस फिल्म में उनके साथ शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी, प्रेम चोपड़ा जैसे स्टार थे. फिल्म सुपरहिट रही. इसके बाद से दिलीप जी अपनी उम्र के हिसाब से रोल का चुनाव करने लगे, वे परिवार के बड़े या पुलिस वाले के रोल लेने लगे. इसके बाद उन्होंने शक्ति, विधाता, मशाल, कर्मा नाम की फ़िल्में की. दिलीप जी की आखिरी बड़ी हिट रही 1991 की फिल्म ‘सौदागर’.
दिलीप जी आखिरी बार 1998 में फिल्म ‘किला’ में नजर आये थे. इसके बाद दिलीप जी ने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी.
1996 में दिलीप जी ने निर्देशक के रूप में कदम रखना चाहा और कलिंगा नाम की फिल्म की तैयारी की, लेकिन किसी कारणवश फिल्म शुरू होने से पहले ही बंद हो गई.
दिलीप जी हमेशा से पाकिस्तान व् भारत के लोगों को जोड़ना चाहते थे, उन्होंने इसके लिए बहुत से कार्य भी किये. सन 2000 से दिलीप जी संसद के सदस्य बन गए, वे एक बहुत अच्छे सामाजिक कार्यकर्त्ता है, जो हमेशा जरूरतमंद की मदद के लिए आगे रहते है.
2011 में दिलीप जी की तबियत अचानक ख़राब हो गई, किसी ने उनकी मौत तक की खबर सब जगह फैला दी. इसके बाद उनकी पत्नी सायरा जी ने सबको ये बताया कि वो ठीक है उन्हें कुछ नहीं हुआ है. 2013 में इन्हें फिर हार्ट अटैक आया, जिससे उन्हें होस्पिटल में भर्ती किया गया. अभी कुछ समय पहले अप्रैल 2016 में दिलीप जी की फिर तबियत ख़राब हो गई थी, जिस वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया.
अपने भाई-बहनों की परवरिश में दिलीप कुमार ने कोई कसर नहीं छोड़ी, उनकी शिक्षा-दीक्षा और मौजमस्ती में कोई कमी नहीं आने दी, मगर विवाह के मामले में सबने अपनी अच्छी मनमर्जी चलाई, जिसके अच्छे-बुरे परिणाम सामने आए।
दिलीप कुमार को अपनी कोई संतान न होने का मलाल तो है, लेकिन उन्होंने सदैव कहा कि मेरे इतने सारे भाई-बहन तो हैं। आपाजी, दो बड़े और एक छोटा भाई (नूर मोहम्मद, अय्यूब और नासिर खान) अब इस दुनिया में नहीं रहे। एक भाई (असलम) और एक बहन फरीदा, जिसने कई बरस ‘फिल्म फेयर’ में भी काम किया था, अमेरिका में हैं। अहसान और अख्तर साथ में हैं।
सईदा, मुमताज और फौजिया भी इर्द-गिर्द ही हैं। इन सबका जन्म पेशावर में नहीं हुआ था। इनमें से छोटे तीन-चार बच्चों का जन्म देवलाली में हुआ था।
दिलीप कुमार, राजकपूर और देवानंद को भारतीय फ़िल्म जगत की त्रिमूर्ति कहा जाता है, लेकिन जितने बहुमुखी आयाम दिलीप कुमार के अभिनय में थे, उतने शायद इन दोनों के अभिनय में नहीं.
राज कपूर ने चार्ली चैपलिन को अपना आदर्श बनाया, तो देवानंद ग्रेगरी पेक के अंदाज़ में सुसंस्कृत, अदाओं वाले शख़्स की इमेज से बाहर नहीं आ पाए.
दिलीप कुमार ने ‘गंगा जमना’ में एक गँवार किरदार को जिस ख़ूबी से निभाया, उतना ही न्याय उन्होंने मुग़ले आज़म में मुग़ल शहज़ादे की भूमिका के साथ किया.
देविका रानी के साथ संयोगवश हुई मुलाक़ात ने दिलीप कुमार के जीवन को बदलकर रख दिया.
यूं तो देविका रानी 40 के दशक में भारतीय फ़िल्म जगत का बहुत बड़ा नाम था पर उनका उससे भी बड़ा योगदान था पेशावर के फल व्यापारी के बेटे यूसुफ़ खां को ‘दिलीप कुमार’ बनाना.
मधुबाला की छोटी बहन मधुर भूषण याद करती हैं, “अब्बा को यह लगता था कि दिलीप उनसे उम्र में बड़े हैं. हांलाकि वो मेड फ़ॉर ईच अदर थे. बहुत ख़ुबसूरत कपल था. लेकिन अब्बा कहते थे इसे रहने ही दो. यह सही रास्ता नहीं है लेकिन वह उनकी सुनती नहीं थीं और कहा करती थीं कि वह उन्हें प्यार करती हैं. लेकिन जब बीआर चोपड़ा के साथ ‘नया दौर’ पिक्चर को लेकर कोर्ट केस हो गया, तो मेरे वालिद और दिलीप साहब के बीच मनमुटाव हो गया.”
मधुर भूषण कहती हैं, “अदालत में उनके बीच समझौता भी हो गया. दिलीप साहब ने कहा कि चलो हम लोग शादी कर लें. इस पर मधुबाला ने कहा कि शादी मैं ज़रूर करूंगी लेकिन पहले आप मेरे पिता को ‘सॉरी’ बोल दीजिए. लेकिन दिलीप कुमार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. उन्होंने यहां तक कहा कि घर में ही उनके गले लग जाइए, लेकिन दिलीप कुमार इस पर भी नहीं माने. वहीं से इन दोनों के बीच ब्रेक अप हो गया.”
देविका रानी का मानना था कि एक रोमांटिक हीरो के ऊपर यूसुफ़ खां का नाम ज़्यादा फ़बेगा नहीं.
उस समय बॉम्बे टॉकीज़ में काम करने वाले और बाद में हिंदी के बड़े कवि बने नरेंद्र शर्मा ने उन्हें तीन नाम सुझाए, जहांगीर, वासुदेव और दिलीप कुमार.
यूसुफ़ खां ने अपना नया नाम दिलीप कुमार चुना. इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि इस नाम की वजह से उनके पुराने ख़्यालों वाले पिता को उनके असली पेशे का पता नहीं चल पाता.
फ़िल्में बनाने वालों के बारे में उनके पिता की राय बहुत अच्छी नहीं थी और वो उन सबका नौटंकीवाला कहकर मज़ाक उड़ाते थे.
दिलचस्प बात यह है कि अपने पूरे करियर में सिर्फ़ एक बार दिलीप कुमार ने एक मुस्लिम किरदार निभाया और वह फ़िल्म थी के. आसिफ़ की मुग़ले आज़म.
९२साल के हो चुके इस महानायक को दुनिया हमेशा याद रखने को मजबूर रहेगीlउनके जन्मदिवस पर अनगिनत शुभकामनायेंl
अवार्ड्स व् अचीवमेंट
1991 में दिलीप जी को देश के तीसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
1993 में दिलीप जी को फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था.
1994 में उनको भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया.
1998 में दिलीप जी को पाकिस्तान सरकार के द्वारा सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार निशान ए पाकिस्तान से सम्मानित किया गया. ये दूसरे भारतीय थे, जिन्हें ये सम्मान मिला था, इसके पहले देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को ये सम्मान मिला था.
(दिलीप जी का नाम सबसे अधिक अवार्ड पाने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल है.)
-अनिल अनूप

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