चीन का बढ़ता दखल

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प्रमोद भार्गव

पाक अधिकृत कश्‍मीर में चीनी सेनिकों की मौजूदगी भारत के लिए गंभीर चिंता का संबब है। इसे नजरअंदाज करना भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। क्योंकि सेना प्रमुख वीके सिंह ने पीओके में चार हजार चीनी सेनिकों की उपस्थिति बताई है। इसके पहले वायु सेना अध्यक्ष एनएके ब्राउन भी पीओंके में चीनी सेना के बढ़ते दखल पर चिंता जता चुके है। श्री सिंह के मुताबिक ये सेनिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जबान है। उन्होंने यह भी साफ किया कि पाकिस्तान के इलाके में आंतकी ढाचा जस का तस है, और ये हर वक्त भारत में घुसपैठ की फिराक में हरते है। इसके पहले भी जम्मू-कश्‍मीर के गिलगिद-बाल्टीस्तान में ग्यारह हजार से अधिक चीनी सेनिकों की हलचल जारी थी, जिसे चीन ने यह कहकर नकारने की कोषिष कि थी कि यह अमला किसी गलत काम में संलग्न नहीं है। किंतु चीन ने यह साफ नहीं किया कि आखिर इतनी बड़ी सशस्त्र फौज की पहलकदमी किस लिए ?

भारतीय सीमा पर चीन और पाकिस्तानी सेना का संयुक्त युद्धाभ्यास इस बात का प्रतीक है कि चीन भारत को घेरने के लिए लगातार कदम बड़ा रहा है। इस अभ्यास में कई गुप्त अजेंडों की झलक दिखाई दे रही है। एक, रास्थान के जैसलमेर से गुजरात के कक्ष के रण तक फैली 1100 किमी की पश्चिमी सीमा रेखा पर अब पाक के साथ चीन से भी भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। दो, इस रेतीले क्षेत्र में भारत के तेल और गैस का बीस फीसदी भण्डार मौजूद है, साथ ही कई तेल और गैस कंपनियां नए भण्डारों की खोज में लगीं है, तय है इस भण्डार पर चीन की निगाहें गढ़ गई हैं। तीन, अमेरिका से संबंधों में दरार आने के बाद पाकिस्तान से चीन की दोस्ती बढ़ती जा रही है। चीन जल्दी ही पाक के पहले संचार उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहा है इसके साथ ही द्विपक्षीय संबंध और प्रगाढ़ होगें। भारत को चिढ़ाने के लिए इस उपग्रह का नाम पाकसैट-1 आर रखा गया है। इस उपग्रह के प्रक्षेपण का बहाना तो यह बनाया गया है कि यह मौसम पर निगरानी और उच्च क्षमता वाली संचार सुविधा पाकिस्तान को हासिल कराएगा, लेकिन हकीकत यह है है कि इसके जरिये भारत की सामरिक और रक्षा गतिविधियों पर आसमान से नजरें टिकाए रखेगा।

अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखाओं पर चीन का लगातार बढ़ता हस्तक्षेप इस बात का संकेत है कि वह इन सीमा रेखाओं को बदलने की पुरजोर कोशिश में है। इस दृष्टि से वह भारत के चारों ओर दखल दे रहा है। कुछ समय पहले चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को लांघ कर भारत की परिधि में न केवल घुसने का दुस्साहस दिखाया बल्कि लद्दाख क्षेत्र में ठेकेदार को हड़काकर निर्माणाधीन यात्री प्रतीक्षालय का काम भी रूकवा दिया था। यह निर्माण इस जिले में देमचोक क्षेत्र के गोंबीर गांव में ग्रामीण विकास विभाग की इजाजत से चल रहा था। इस बेहूदी हरकत का शर्मनाक नतीजा यह रहा कि गृह मंत्रालय के निर्देश पर भारतीय सेना ने दखल देकर राज्य सरकार को यथास्थिति बनाए रखने के लिए मजबूर कर दिया। कोई जवाबी कार्रवाई करने की बजाय लाचारी की इस स्थिति ने चीनी सैनिकों की हौसला अफजाई ही कीे।

चीन की इस तरह की हरकतें नई नहीं है। भाईचारे और व्यापारिक समझौतों की ओट में वह भारत की पीठ में छुरा भोंकने से बाज नहीं आता। नवंबर 2009 में भी चीनी सैनिकों ने भारत के लद्दाख क्षेत्र में निर्माणाधीन सड़क रोकने की चेतावनी दी थी। इस सड़क का निर्माण भी देमचोक इलाके में हो रहा था। इसे रक्षा मंत्रालय द्वारा लेह के तत्कालीन उपायुक्त एके साहू के समक्ष आपत्तियां जताने के बाद रोक दिया गया था। अक्टूबर 2009 में भी दक्षिण-पूर्वी लद्दाख क्षेत्र के देमचोक क्षेत्र में ही एक पहुंच मार्ग का निर्माण चीनी दखल के बाद रोकना पड़ा था। इसी तरह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर देमचोक के आखिरी छोरों पर मौजूद दो ग्रामों को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण को रोक दिया गया था।

2009 में चीनी सेना ने लेह लद्दाख के शिखरों पर चिन्हित अंतराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन कर पत्थरों और चट्टानों पर लाल रंग पोत दिया था। 31 जुलाई 2009 को तो चीनी सैनिक मर्यादा की सभी हदें पार कर भारत के गया शिखर क्षेत्र में डेढ़ किलोमीटर भीतर घुसकर कई चट्टानों पर लाल रंग से ‘चाइना’ और ‘चीन-9’ लिख देने की हिमाकत दिखा चुके हैं। जबकि एक समझौते के तहत शिखर गया को दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सीमा की मान्यता देते हैं। सेना समुद्र तल से 22,420 फीट ऊंची इस चोटी को ‘फेयर प्रिंसेज ऑफ स्नो’ भी कहती है। यह जम्मू कश्मीर के लद्दाख, हिमाचल प्रदेश के स्पीति और तिब्बत के केंद्र में स्थित है। इससे पहले चीनी सैनिकों के हेलिकॉप्टरों ने 21 जून 2009 को चूमार क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लांघ कर दूषित खाद्य सामग्री भारतीय सीमा में गिरा कर भारत को मुंह चिढ़ाया था।

चीन लगातार 1962 के गतिरोध को तोड़ने में लगा है। अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट स्थित काराकोरम क्षेत्र में भी चीनी हलचलें बढ़ती जा रही हैं। चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए काराकोरम होकर सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस निर्माण के बाद चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा मानने के बयान भी देना शुरू कर दिए हैं। चीनी दस्तावेजों में अब इस विवादित क्षेत्र को उत्तारी पाकिस्तान दर्शाया जाने लगा है। भारत विरोधी मंशा के चलते ही चीन ने पीओके क्षेत्र में 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेश किया है। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की तजवीज जुटाने में लगा है। चीन की पीओके में ये गतिविधियां सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

अरूणाचल प्रदेश में भी चीनी हस्तक्षेप लगातार मुखर हो रहा है। हाल ही में गूगल अर्थ से होड़ बरतते हुए चीन ने एक ‘ऑन लाइन मानचित्र सेवा’ शुरू की है। जिसमें उसने भारतीय भू-भाग अरूणाचल और अक्साई चीन को अपने देश का हिस्सा बताया है। मानचित्र खंड में इसे चीनी भाषा में प्रदर्शित करते हुए अरूणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया है। जिस पर चीन का दावा पहले से ही बना हुआ है। इस सिलसिले में भारतीय अधिकारियों ने सफाई देते हुए स्पष्ट किया है कि दक्षिणी तिब्बत का तो इसमें विशेष उल्लेख नहीं है, लेकिन इसकी सीमाओं का विस्तार अरूणाचल तक दर्शाया गया है। इसके अलावा अक्साई चीन को जरूर शिनजियांग प्रांत का अंग बताया गया है। यह दरअसल जम्मू-कश्मीर में लद्दाख का हिस्सा है।

चीन ने भारत पर शिकंजा कसने के लिए हाल के दिनों में नेपाल में भी दिलचस्पी लेना शुरू की है। कम्युनिष्ट विचारधारा के पोषक चीन ने माओवादी नेपालियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। ये नेता अब नेपाल से भारत और चीन के संबंधों का मूल्यांकन आर्थिक मदद के आधार पर करने लगे हैं। हालांकि भारत ने भी शक्ति संतुलन बनाए रखने के नजरिये से नेपाल के तराई क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण हेतु 750 करोड़ रूपये की इमदाद की है। लेकिन यह मदद चीन की तुलना में नाकाफी है। चीन नेपाल में सड़कों का जाल बिछाने और विद्युत संयंत्र लगाने की दृष्टि से अरबों का पूंजी खर्च कर रहा है। इन्हीं कुटिल कूटनीतिक वजहों के चलते भारत और नेपाल के पुराने रिश्तों में हिंदुत्व और हिन्दी की जो भावनात्मक तासीर थी उसका गाढ़ापन ढीला होता जा रहा है। नतीजतन नेपाल में चीन का दखल और प्रभुत्व लगातार बढ़ रहा है। चीन की ताजा कोशिशों में भारत की सीमा तक आसान पहुंच बनाने के लिए तिब्बत से नेपाल तक रेल मार्ग बिछाना शामिल है। वैसे भी फिलहाल नेपाल, भारत और चीन के बीच बफर स्टेट का काम कर रहा है। चीन की क्रूर मंशा यह भी है कि नेपाल में जो 20 हजार तिब्बती शरणार्थी के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं यदि वे कहीं चीन के विरूध्द भूमिगत गतिविधियों में संलग्न पाए जाते हैं तो उन्हें नेपाली माओववदियों के कंधों पर बंदूक रखकर नेस्तनाबूद कर दिया जाए। वैसे भी चीन के प्रभावी दखल के बाद ही नेपाल में माओवादी सत्ताा में बने रह सकते हैं। यदि चीन का नेपाल में इसी तरह दखल कायम रहा तो तय है कुछ ही दशकों में चीन, नेपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को तो तिब्बत की तरह लील ही जाएगा, कालांतर में वहां की भौगोलिक संप्रभुता के लिए भी घातक सिध्द होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि आजाद भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने कभी भी चीन के लोकतांत्रिक मुखौटे में छिपी साम्राज्यवादी मंशा को नहीं समझा। हालांकि प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक महर्षि अरबिंद ने परतंत्र भारत में ही चीन के मंसूबों को भांपते हुए कहा था, ‘चीन दक्षिण-पश्चिम एशिया और तिब्बत पर पूरी तरह छाकर उसे निगलने का संकट उत्पन्न कर सकता है। साथ ही भारतीय सीमाओं तक के सारे क्षेत्र पर कब्जा जमा लेने की सीमा पार कर सकता है।’ महर्षि का यह पूर्वाभास चीनी मंसूबों पर आज खरा साबित हो रहा है। चीन ने ताइवान में पहले तो आर्थिक मदद और विकास के बहाने घुसपैठ की और फिर ताइवान का अधिपति बन बैठा। तिब्बत पर तो चीन के अनाधिकृत कब्जे से दुनिया वाकिफ है। साम्यवादी देशों की हड़प नीतियों के चलते ही चेकोस्लोवाकिया बरबादी के चरम पर पहुंचा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के बंदरगाहों पर चीनी युध्दपोत लहरा रहे हैं। विश्व मंचों से चीन दुनिया के देशों को संदेश भी देने में लगा है कि भारत के पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार समेत किसी भी सीमांत देश से मधुर संबंध नहीं हैं। यही नहीं चीन नकली भारतीय मुद्रा छापकर लगातार पाकिस्तान व बांग्लादेश के जरिये भारत पहुंचा कर भारतीय अर्थव्यवस्था को बिगाड़ रहा है। चीन द्वारा नकली दवाएं बनाकर उन पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखकर तीसरी दुनिया के देशों में खपाने का सिलसिला सार्वजनिक होने के बावजूद जारी है। इन अप्रत्यक्ष व अदृश्य चीनी सामरिक रणनीतियों से आंख मूंदकर भारत अब तक मुंह चुराता रहा है लेकिन अब भारतीय सीमा से महज 25 किमी दूर संयुक्त युद्धाभ्यास को नजरअंदाज किया तो मुंह की खानी भी पड़ सकती है।

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