भारत का एनएसजी सदस्‍या में चीनी अंड़गा खत्‍म होगा

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 डॉ. मयंक चतुर्वेदी

 

पिछले कई वर्षों से भारत सरकार इस कोशिश में लगी है कि भारत भी न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) का हिस्सा बन जाए। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद तो जैसे इस प्रयत्‍न में अत्‍यधिक तेजी आ गई है, किंतु इसके बाद भी पिछले कई सालों में हमें इस समूह का हिस्‍सा बनने का अवसर नहीं मिल सका है। निश्‍चित तौर पर इसका कारण भी स्‍पष्‍ट है, हमारे दो पड़ोसी मुल्‍क चीन और पाकिस्‍तान यह बिल्‍कुल नहीं चाहते कि भारत किसी भी तरह से इस संगठन का हिस्‍सा बने । इसके लिए बार-बार विरोधस्‍वरूप 48 देशों के इस संगठन में सम्‍मलित चीन अपने वीटो पॉवर का उपयोग करता है, तो वहीं पाकिस्‍तान की तरफ से भी कई देशों से पत्र लिखकर आग्रह किया जाता है कि आप भारत को अपने साथ न लें, नहीं तो एशिया का शक्‍ति संतुलन बिगड़ जाएगा। पर इसके बाद भी भारत के हित में आज अच्‍छी खबर ये है कि वह अब शीघ्र ही एनएसजी का सदस्‍य बन जाएगा, क्‍योंकि अमेरिका आगे होकर भारत को एनएसजी में लाने के तरीकों पर विचार कर रहा है।

 

भारतीय परमाणु आयोग ने पोखरण में अपना पहला भूमिगत परिक्षण 18 मई 1974 को किया था। उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है। परन्‍तु इतना कहने के बावजूद भी तत्‍कालीन समय में इसका दुनियाभर में विरोध हुआ था । कई देशों को लगता था कि कैसे भारत अपने को परमाणु शक्‍ति में अत्‍मनिर्भर बना सकता है। बहुत कम लोगों की पता है कि इसी पहले भूमिगत परिक्षण के विरोधस्‍वरूप यह नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह का जन्‍म हुआ था, जिसके कि सर्वप्रथम केवल सात सदस्य थे – कनाडा, पश्चिमी जर्मनी, फ्रान्स, जापान, सोवियत संघ, युनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका। सन 1976-77 में इसमें और देश शामिल कर लिये गये और इसकी सदस्य संख्या 15 हो गयी। 1990 तक 12 नए देश और जुड़े। चीन इसमें 2004 में शामिल हुआ। इसके बाद अन्‍य देशों को भी सम्‍मलित किया गया तथा संख्‍या 48 तक पहुँच गई। इसमें शामिल देशों की सदस्‍य संख्‍या नहीं उनके आकार-प्रकार पर गौर करेंगे तो ध्‍यान में आएगा कि कितने छोटे देश जहां इसकी आज सदस्‍यता लिए हुए हैं वहीं योजनाबद्ध तरीके से भारत को इससे बाहर कर रखा है।

 

भारत ने बाद में जब 11-13 मई 1998 को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण राजस्थान के पोखरण में किये और स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया,तब परमाणु विस्फोट होने से सारे विश्व में तहलका मच गया था। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 20 मई को परिक्षण स्थल पहुंचे और उन्‍होंने एक नया नारा देश वासियों को दिया था ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान’। भारतवासी इस सफलता पर गर्व से भर उठे थे किंतु इसका परमाणु संपन्न देशों ने बुरा माना और अमरीका, रूस, फ्रांस, जापान, चीन जैसे कई देशों ने भारत को आर्थिक सहायता न देने की धमकी भी दी, लेकिन भारत सरकार अपने परमाणु काय्रक्रम से ऊर्जा के सकारात्‍मक उपयोग एवं अभिनव प्रयोगों में लगी रही, उसे इन धमकियों से कोई फर्क नहीं पड़ा।

 

वस्‍तुत: इसके बाद भारत 2008 से ही इस संगठन की सदस्यता पाने के लिए प्रयत्‍नशील है। पहले तो शुरुआती दौर में काफी देशों ने भारत का विरोध किया, कि कैसे भी इसे इस संगठन में आने से रोकना है, जिसमें कि चीन के अतिरिक्‍त आस्ट्रेलिया, मेक्सिको, स्विजरलैंड जैसे देश भी शामिल थे। पर समय के साथ आज बहुत कुछ बदला है इन देशों में से बहुत से आज भारत के पक्ष में खड़े हो गए हैं, लेकिन चीन टस से मस होने को तैयार नहीं है। यदि (एनएसजी)  के कार्यों पर गौर किया जाए तो मुख्‍यरूप से यह संगठन दुनियाभर में निरस्त्रीकरण के लिये प्रयासरत है। इस कार्य के लिये यह समूह नाभिकीय शस्त्र बनाने योग्य सामग्री के निर्यात एवं पुनः हस्तान्तरण को नियन्त्रित करता है। इसका वास्तविक लक्ष्य यह है कि जिन देशों के पास नाभिकीय क्षमता नहीं है वे इसे अर्जित न कर सकें। यह समूह ऐसे परमाणु उपकरण, सामग्री और टेक्नोलॉजी के निर्यात पर रोक लगाता है जिसका प्रयोग परमाणु हथियार बनाने में होना है और इस प्रकार का कार्य करते हुए परमाणु प्रसार को रोकता ही (एनएसजी) का मुख्‍य कार्य है। परन्‍तु इस सब के बीच जो अत्‍यधिक ध्‍यान देने योग्‍य है वह यही है कि भारत तो पहले से ही परमाणु शक्‍ति सम्‍पन्‍न देश है, इसलिए इसके संगठन में शामिल होने से रोकने का तो कोई कारण नहीं बनता है?

 

देखाजाए तो भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम का दुरउपयोग आज तक नहीं किया है। बल्कि उसने विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग के संबंध में सावधानीपूर्वक आगे कदम बढाए हैं। इसके लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम बनाकर उसका क्रियान्वयन किया गया। इसके अंतर्गत निर्धारित उद्देश्यों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तथा उच्च सम्भावना वाले तत्वों यूरेनियम एवं थोरियम का उपयोग भारतीय नाभिकीय विद्युत रिएक्टरों में नाभिकीय ईंधन के रूप में करना है। वर्तमान में भारत का प्राकृतिक यूरेनियम भंडार लगभग 70,000 टन हैं किंतु यह पर्याप्‍त नहीं। देश में ऊर्जा की मांग पूरी करने के लिए भारत का इस न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में प्रवेश जरूरी है। यदि भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल गई तो उसे परमाणु तकनीक के साथ यूरेनियम भी बिना किसी विशेष समझौते के मिलेगा। इतना ही नहीं एनएसजी की मेंबरशिप मिलने पर परमाणु बिजली संयंत्रों के कचरे के निपटान में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी।

 

आज भारत में फ्रांस की कंपनी महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु बिजली प्लांट लगा रही है। अमेरिकी कंपनियां गुजरात और आंध्र प्रदेश में परमाणु संयंत्र लगाने की तैयारी में हैं। ऐसे ही अन्‍य देशों के साथ भी हमारी परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की बात चल रही है, किंतु इन सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के नियमित संचालन के लिए पर्याप्‍त यूरेनियम चाहिए ही, जिसे कि इस समूह का अंग होने के बाद आसानी से प्राप्‍त करना संभव होगा, किंतु इस सब के बीच चीन और पाकिस्‍तान जैसे देशों को लगता है कि यदि भारत की ऊर्जा आपूर्ति की पूर्ति उसकी आवश्‍यकतानुसार हो गई तो यह विकास में हमें बहुत पीछे छोड़ देगा। इसलिए ही यह दोनों देश विशेषकर चीन इस समूह का हिस्‍सा होने के नाते हमें लगातार इससे बाहर रखने की कोशिशे कर रहा है। अब तक चीन हर बार यह कहकर हमें बाहर का रास्‍ता दिखाने में सफल रहता आया है कि नई दिल्ली ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। किंतु इससे जुड़ा सीधा प्रश्‍न यह है, जिन 190 देशों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्‍ताक्षर किए हैं, क्‍या उन्‍होंने अपने यहां से परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाया है। एनपीटी का एक लक्ष्‍य यह भी है कि वह सभी देशों के परमाणु हथियारों को नष्‍ट कराएगा, लेकिन प्रश्‍न फिर वही है कि इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले महाशक्ति सम्‍पन्‍न देशों ने खुद तो पहले से ही परमाणु हथियारों का जखीरा तैयार कर रखा है और अब भारत जैसे नए उभरते देश के ऊपर निशस्त्रीकरण की आड़ लेकर इस संधि के रूप में प्रतिबन्ध थोपने का अनुचित और कुटिल प्रयास कर रहे हैं।

 

इस सब के बीच अच्‍छा यही है कि अमेरिका आज भारत के साथ खड़ा हो गया है, वह समझ चुका है कि भारत आणविक शक्‍ति का सदउपयोग ही करेगा। यदि विश्‍व के परमाणु शक्‍ति सम्‍पन्‍न राष्‍ट्र निशस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं, पर अपने परमाणु जखीरे को समाप्त करना नहीं चाहते तो भारत पर भी यह दबाव बनाना अनुचित है। अभी भारत को एनएसजी की सदस्यता भले ही न मिली हो, लेकिन इस दिशा में इतना तो सार्थक हुआ ही है कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से 48 सदस्यीय एनएसजी के 38 सदस्य देशों का समर्थन मिल चुका है, इससे साफ पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर भारत का आज कितना अधिक मान बढ़ा है। व्हाइट हाउस आ रही खबर बता रही है कि अमेरिका एनएसजी में भारत की सदस्यता को बेहद अहम मानता है। इसीलिये ट्रंप प्रशासन ने भारत की एनएसजी देशों में कैसे एंट्री हो इस पर संजीदगी से सोचना आरंभ कर दिया है।  उम्‍मीद की जाए कि चीन द्वारा भारत के एनपीटी में हस्ताक्षर नहीं करने की दलील आनेवाले दिनों में औचि‍त्‍यहीन हो जाएगी और शीघ्र ही भारत भी एनएसजी टीम का अहम हिस्‍सा होगा।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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