दुर्गम स्थानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है चिनूक

बख्तरबंद गाडि़यां और तोप लेकर भी उड़ सकता है चिनूक

योगेश कुमार गोयल

            भारतीय वायुसेना को गत वर्ष 26 मार्च को अमेरिका में निर्मित चार चिनूक हेलीकॉप्टरों की पहली खेप मिली थी और अब भारत को बाकी चिनूक हेलीकॉप्टर भी मिल गए हैं। इस प्रकार वायुसेना के बेड़े में अब कुल 15 चिनूक शामिल हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा सितम्बर 2015 में चिनूक बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी ‘बोइंग’ के साथ कई प्रमुख देशों में लोकप्रिय कुल 15 सीएच-47एफ चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 8048 करोड़ रुपये का महत्वपूर्ण करार किया गया था। चिनूक ऐसा पहला अमेरिकी हेलीकॉप्टर है, जो बहुत अधिक वजन उठाने में सक्षम है। यह बख्तरबंद गाडि़यां और यहां तक कि 155 एमएम की होवित्वर तोप को लेकर भी उड़ सकता है। इस हेलीकॉप्टर का नाम ‘चिनूक’ अमेरिकी मूल-निवासी चिनूक से लिया गया था। यह वही हेलीकॉप्टर है, जिसके जरिये अमेरिका ने पाकिस्तान में छिपे दुर्दान्त आतंकवादी ओसान-बिन-लादेन को मौत की नींद सुलाया था। युद्ध पर बनी लगभग सभी अमेरिकी फिल्मों में तो यह किसी न किसी रूप में भूमिका निभाता रहा है। वियतनाम और फॉकलैंड युद्ध के अलावा लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान, इराक इत्यादि में भी यह निर्णायक भूमिका निभा चुका है।

            सीएच-47 चिनूक एक ऐसा एडवांस्ड मल्टी मिशन हेलीकॉप्टर है, जो भारतीय वायुसेना को बेजोड़ सामरिक महत्व की हैवी लिफ्ट क्षमता प्रदान करेगा, साथ ही मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर बहुत तेज गति से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने और 11 टन तक वजन ले जाने में सक्षम है। इसका इस्तेमाल दुर्गम और अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सेना के जवानों, हथियारों, मशीनों तथा अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री ले जाने में आसानी से किया जा सकता है, जिससे ऐसे स्थानों पर तैनात सेना के जवानों को जरूरत पड़ने पर हथियार तथा अन्य भारी-भरकम रक्षा सामग्री आसानी से मुहैया करवाई जा सकती है। इन सैन्य विशेषताओं के चलते इसका प्राकृतिक आपदाओं के समय प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों तक ले जाने और भीषण आग बुझाने में भी इस्तेमाल संभव होगा। यह छोटे हेलीपैड तथा घनी घाटियों में भी उतर सकता है और किसी भी प्रकार के मौसम का सामना कर सकता है। इसमें 45 सैनिकों के बैठने की व्यवस्था है और छोटी तोपें, बख्तरबंद गाडि़यां इत्यादि विभिन्न युद्धक सामान नीचे लटकाकर कहीं भी ले जाए जा सकते हैं।

            चिनूक चूंकि बहुत तेज गति से उड़ान भरता है, इसलिए बेहद घनी पहाडि़यों में भी यह सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है। मल्टी रोल, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला यह हेलीकॉप्टर 315 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। आमतौर पर वायुसेना के हेलीकॉप्टर में सिंगल रोटर इंजन होता है जबकि चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं, जो एकदम नया कॉन्सेप्ट माना गया है। इसमें कोई टेल रोटर नहीं है बल्कि इसमें अधिक सामान ढ़ोने के लिए दो मेन रोटर लगे हैं। भारी सामान ढ़ोने के लिए इसमें तीन हुक हैं। रात में भी उड़ान भरने और ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम यह हेलिकॉप्टर घने कोहरे तथा धुंध में भी कारगर है। इसे बेहद कुशलता के साथ मुश्किल से मुश्किल जमीन पर भी ऑपरेट किया जा सकता है। चिनूक में मिसाइल वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है तथा इसमें तीन मशीनगन भी सैट हैं। लैंडिंग के समय जमीन पर मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। हालांकि चिनूक का आकार काफी बड़ा है लेकिन बड़े आकार के बावजूद अन्य हेलीकॉप्टरों के मुकाबले इसकी गति बेहद तेज होती है, जिससे दुर्गम स्थानों पर भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। इसका इस्तेमाल अन्य युद्धक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे तौर पर युद्ध में दुश्मन पर हमला करने में नहीं होता बल्कि यह सैनिकों तथा सैन्य साजो-सामान को दुर्गम स्थानों तक पहुंचाने के लिए उपयोग किया रहा है। हाल के दिनों में भारत-चीन सीमा पर यह इस कार्य में यह अहम भूमिका निभाता भी रहा है।

            चिनूक की शुरूआत वर्ष 1957 में हुई थी और 1962 में इसे अमेरिकी सेना में शामिल किया गया था लेकिन समय की मांग के साथ-साथ इन हेलीकॉप्टरों में पूर्णतया एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट प्रणाली सहित रोटर ब्लैड, एंडवांस्ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम इत्यादि कई बदलाव करते हुए इसके वजन को कम किया गया और तकनीक में सुधार करते हुए इसे इतना उन्नत बनाया गया कि अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड सहित दुनिया में करीब 25 देशों की सेनाओं द्वारा सैन्य अभियानों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इस अमेरिकी हेलीकॉप्टर के विदेशी खरीदारों में सबसे पहला खरीददार नीदरलैंड था, जिसने 17 सीएच-47एफ हेलीकॉप्टर फरवरी 2007 में खरीदे थे। 2009 में कनाडा ने इसके 15 अपग्रेड वर्जन खरीदे थे जबकि उसी वर्ष दिसम्बर माह में ब्रिटेन ने 24 चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदे थे। अगले साल आस्ट्रेलिया ने कुल 10 चिनूक खरीदे और 2016 में सिंगापुर ने 15 हेलीकॉप्टरों का सौदा किया था। मौजूदा समय में यह अमेरिका के सबसे तेज हेलीकॉप्टरों में से एक माना जाता है। इसमें कॉमन एविएशन आर्किटेक्चर कॉकपिट तथा एडवांस्ड कॉकपिट प्रबंध जैसी विशेषताएं भी हैं।

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