चूहा साहित्य में नया अध्याय 

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आजकल शायद ही कोई बच्चा हो, जो टी.वी. पर चालाक चूहे और खूंखार बिल्ले वाली ‘टॉम और जैरी’ की कार्टून कथा न देखता हो। वैसे समय काटने के लिए कई बूढ़े भी इसे देखते हैं। ये कार्टून कथा तो विदेशी है; पर इससे हजारों साल पूर्व पंचतंत्र और अन्य भारतीय कथा साहित्य में चूहों की विस्तृत चर्चा है।

कहते हैं कि एक सेठ कारोबार के लिए बाहर गया, तो अपनी लोहे की तराजू पड़ोसी को दे गया। लालची पड़ोसी ने वह बेच दी। लौटकर जब सेठ ने तराजू मांगी, तो पड़ोसी ने कहा कि उसे तो चूहे खा गये। सेठ को गुस्सा तो बहुत आया; पर उसने झगड़ने की बजाय दिमाग से काम लिया।

सेठ ने कहा कि जब चूहे खा गये हैं, तो क्या कर सकते हैं ? शायद मेरा भाग्य ही खराब है। फिर वह बोला, ‘‘मैं नदी पर नहाने जा रहा हूं। चाहो तो तुम अपने बेटे को भी साथ भेज दो।’’ पड़ोसी ने बेटे को भेज दिया। नदी पर जाकर सेठ ने लड़के को एक गुफा में बंदकर बाहर एक बड़ा पत्थर रख दिया। उसे अकेले लौटा देख पड़ोसी ने पूछा, तो सेठ ने कहा कि नहाते समय अचानक एक बाज आया, और वह लड़के को उठा ले गया।

ये सुनकर पड़ोसी आग बबूला हो गया। उसने कहा कि इतने बड़े लड़के को बाज उठाकर नहीं ले जा सकता। दोनों लड़ने लगे, तो बात राजा तक पहुंची। राजा ने सेठ से पूछा कि इतने बड़े लड़के को बाज कैसे ले जा सकता है ? सेठ ने कहा कि जब 50 किलो की लोहे की तराजू चूहे खा सकते हैं, तो 50 किलो के लड़के को बाज भी ले जा सकता है।

इस पर पूरी बात खुल गयी। पड़ोसी को जुर्माने सहित तराजू वापस देनी पड़ी। सेठ ने भी उसका बेटा मुक्त कर दिया।

आगे बढ़ें, तो मूषक सेठ की कहानी आती है, जिसमें एक वणिक पुत्र ने चुनौती स्वीकार कर मृत चूहे से ही अपना व्यापार खड़ा कर लिया। चूहे के साथ बिल्ली की बात न हो, तो मजा नहीं आता। इसलिए गली में बच्चे प्रायः चूहा-बिल्ली खेलते रहते हैं। बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाली कथा आपने पढ़ी ही होगी। बिल्ली के शाकाहारी होने और संन्यास लेने की बात भी सुनी गयी है। एक चतुर चूहे ने बिल्ली का ग्रास बनने से पहले खूब सारी जहरीली चूहामार गोलियां खा लीं। इससे उसके साथ ही बिल्ली भी मर गयी। उसका यह बलिदान चूहा जाति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। कोई शोध करे, तो ‘विश्व कथा साहित्य में चूहों के योगदान’ पर पी.एच-डी. की उपाधि प्राप्त कर सकता है।

चूहों का मुख्य भोजन क्या है, ये तो नहीं पता; पर वे दुकान में कपड़े, सरकारी दफ्तर में फाइलें और घर में बच्चों की किताबें कुतर लेते हैं। उनके दांत बहुत मजबूत और तेज होते हैं। इसलिए कई जगह बच्चों के दूध के दांत गिरने पर उन्हें चूहे के बिल में डालने की प्रथा है।

खाने की ही तरह चूहे क्या पीते हैं, यह भी शोध का विषय है। पानी तो वे पीते ही होंगे; पर कई बार वे दूध के भगोने में मरे मिलते हैं। अर्थात वे दूध के भी शौकीन हैं। चाय, कॉफी और फलों के रस के बारे में उनकी रुचि मुझे पता नहीं; पर इतना तय है कि मनुष्य के खानपान की किसी चीज से चूहा परहेज नहीं करता। इसीलिए मनुष्यों के लिए बनने वाली दवाओं का परीक्षण सबसे पहले चूहों पर ही किया जाता है। मानव जाति के लिए इतना उपयोगी प्राणी धन्य है। चूहे की गति धरती के ऊपर और अंदर तो है ही, पर वह पानी में कुछ दूर तैर भी लेता है। एक पेड़ से दूसरे पर वह कूद भी जाता है। शायद इसीलिए गणेश जी ने चूहे को अपना वाहन बनाकर उसे अति विशिष्ट स्थान प्रदान किया है।

लेकिन आज इस मूषक चर्चा का उद्देश्य दूसरा है। जब से नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी की है, तबसे लगभग नौ लाख लीटर शराब पकड़ी गयी है। ऐसी अवैध चीजें स्वाभाविक रूप से थाने में ही रखी जाती हैं; पर पिछले दिनों जब एक खुराफाती ने उस जब्त शराब की जानकारी चाही, तो पता लगा कि उसे चूहे गटक गये।

मैंने अपने मित्र शर्मा जी से पूछा कि क्या चूहों के शराब पीने की बात उन्होंने पहले कभी सुनी है ? इस पर वे भड़क कर बोले कि जब वहां के नेता पशुओं का चारा खा सकते हैं, तो चूहे शराब क्यों नहीं पी सकते ? बिहार में सब कुछ हो सकता है।

तब से मैं बहुत डरा हुआ हूं। सुना है कि एक चूहा बिल्ली से डर कर भागते हुए शराब की एक खाली बोतल में ही घुस गया। जब पेट में दो बूंद दारू पहुंची, तो चूहे का दिमाग गरम हो गया और वह बाहर निकल कर बिल्ली से ही भिड़ गया। फिर क्या हुआ, आप समझ ही गये होंगे।

जब दो बूंद शराब से एक चूहे का ये हाल हुआ, तो नौ लाख लीटर शराब पीकर बिहार के चूहे क्या कर रहे होंगे ? यदि वे खाकी वरदी या सफेद कुरते-पाजामे वाले हुए, तब तो और मुसीबत। मेरे एक बिहारी मित्र के घर में अगले महीने विवाह है। उसका आग्रह तो बहुत है; पर मैंने मना कर दिया है। क्या पता, सड़क पर कब कोई चूहा मिल जाए ? आप यदि किसी काम से वहां जा रहे हों, तो जरा संभल कर जाएं।

मेरा कर्तव्य था, सो मैंने बता दिया। आगे आप जानें या फिर चूहे।

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