चुटकी भर सिन्दूर

sindurचुटकी भर सिन्दूर डला मांग में
और बदल गया जीवन।
चुटकी भर सिन्दूर के बदले में
मिला उम्र भर का बंधन।
सजी मैं संवरी मैं निभायी रस्में
और स्वीकारा ये गठबंधन।

इस सिन्दूर के बदले मिला मुझे
किसी का जीवन भर का साथ
इस साथ के बदले छूटे सभी अपने
और छूटा अपनों का हाथ।
छोड़कर सारे अपने और सारे सपने
चल दी मैं अनजाने पथ पर
निभाने सात वचनों की कसमें अपने
हमसफ़र के साथ।

छोड़कर अपनी पूरी ज़िन्दगी
निभायी हर कसम
चुटकी भर सिन्दूर के बदले किया
अपना जीवन अर्पण।
पर बदले में मुझे क्या मिला, क्या
मिली मुझे ख़ुशी या
पूरा हुआ अरमान मेरा या बेकार
गया मेरा समर्पण।

रिश्तों में नहीं होती कुछ पाने की आशा
पर क्या मेरे लिए ही है रिश्तों के लिए
यह अनोखी परिभाषा।

नहीं चाहती मैं बदले में ज्यादा कुछ, पर
मिल जाये गर मुझे पहचान ही मेरी
मिल जाये मेरे मायके वालों को सम्मान
इसी से संवर जायेगा जीवन मेरा और
और जीवन में मेरे आ जाएगी बहार।

चुटकी भर सिन्दूर ने बदला
मेरा पूरा जीवन।
किसी की बेटी से बहु बनी
बहन से भाभी बनी।
पर इन सबमें मैं खो गयी
क्यों मैं अब ‘मैं’ न बनी।
जैसे पहचान ही मेरी खो गयी
क्यों मेरी मुझसे ठनी।

रिश्तों के इस सागर में सिर्फ
बूँद एक ढून्ढ रही हूँ।
सात फेरों की कसमों के साथ
सपना यही बुन रही हूँ।
राह में बिछाने फूल सबकी मैं
कांटें सारे चुन रही हूँ।
काँटों के बदले फूल मिले मुझे
ख्याल यही गुन रही हूँ।

चुटकी भर सिन्दूर ने बदला सब
कौन थी मैं मुझे याद भी नहीं अब।
उम्मीद है बस बाकी अब भी एक
कि नए रिश्तों में बंध जाऊं मैं
और अपना लें मुझे भी वहां सब
प्रेम मिले जीवन में मिले सम्मान
और जीवन खुशियों से हो लबालब।
लक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here