नागरिकता संशोधन बिल और कांग्रेस का पाप

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नागरिकता संशोधन बिल को लेकर पूर्वोत्तर भारत और विशेष रूप से असम उबल रहा है, तरह – तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं, अफवाहों का बाज़ार गर्म है I कांग्रेस, टीएमसी, वामपंथी दल, एआईयूडीएफ आदि दल आंदोलन की आग में अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं I असम के अराजक तत्व भी इसमें कूद पड़े हैं I इन दलों को अपनी – अपनी राजनीति करने – चमकाने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता है I असम में नागरिकता विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है, बंगलादेशी घुसपैठ की समस्या को लेकर असम में बहुत लम्बा आन्दोलन चला और एक राजनैतिक पार्टी असम गण परिषद (अगप) का गठन किया गया I असम गण परिषद (अगप) कई बार असम की सत्ता में भी रही लेकिन इस समस्या का कोई समाधान करने में विफल रही I असमिया मूल के लोगों में यह आशंका घर कर चुकी थी कि वे अल्पसंख्यक बन जायेंगे क्योंकि सीमा पार से लाखों बंग्लादेशी वहाँ आकर बस रहे थे। इसके विरुद्ध 1978 ई. में असम में एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई। आठ वर्षों के पश्चात् 1985 में वहाँ चुनाव हुए I आंदोलनकारियों ने असम गण परिषद नामक एक क्षेत्रीय दल का गठन किया I असम गण परिषद् ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और प्रफुल्ल कुमार महन्त वहाँ के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1991 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में सत्ता कांग्रेस के हाथ में आ गई। बाद में 1996 में पुन: असम गण परिषद को बहुमत प्राप्त हुआ ।

वर्ष 2001 के विधान सभा चुनाव में असम गण परिषद की सीटों में कमी आयी और वह मात्र 20 सीटों तक ही सीमित रह गई। अपने अंतर्विरोधों और भ्रष्टाचार के कारण जनता पर असम गण परिषद की पकड़ ढीली होती गई और आज वह असम की राजनीति में हाशिए की पार्टी बनकर रह गई है I जिस उद्देश्य के लिए इस पार्टी का गठन हुआ था उसे पूरा करने में यह पूर्णतः विफल रही है I इस समस्या की अभी सर्जरी हुई है लेकिन घाव बहुत पुराना है I यह कांग्रेस का पाप है लेकिन दुर्भाग्यवश इसके लिए भाजपा को उत्तरदायी ठहराया जा रहा है I सभी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए कांग्रेस के वोटर थे, इसलिए कांग्रेस ने कभी गंभीरतापूर्वक इस समस्या का समाधान करने का प्रयास ही नहीं किया I कांग्रेस ने श्रीमंत शंकरदेव की इस पुण्य भूमि में वोट की फसल काटने के लिए अवैध घुसपैठिए का खूब संरक्षण व पोषण किया I बंगलादेशी घुसपैठ के कारण इस प्रदेश की जनसांख्यिकी असंतुलित हो गई है I इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1981 – 91 की जनसंख्या वृद्धि पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें उल्लेख किया गया था कि असम के उन जिलों की आबादी में असाधारण वृद्धि हुई है जो बांग्लादेश की सीमा पर स्थित हैं जबकि इन जिलों की सीमा से लगे बंगलादेशी जिलों में निम्न जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई थी I रिपोर्ट में वर्ष 1971 – 81 और 1981 – 91 की जनगणना के आंकड़ों की तुलना करते हुए बांग्लादेश से अचानक एक करोड़ व्यक्तियों के गायब होने पर चिंता व्यक्त की गई थी I ये एक करोड़ व्यक्ति कहां गए, इन्हें धरती निगल गई या आसमान खा गया I जाहिर है ये सभी अवैध रूप से भारत में आए I “2011 की जनगणना के अनुसार असम में मुस्लिम जनसंख्या में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई I असम के 27 जिलों में से 8 जिलों में मुस्लिम जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर बहुत उच्च रही I असम के मुस्लिम बहुल जिलों जैसे, धुबरी, ग्वालपाड़ा, बरपेटा, मोरीगांव, नगांव और हैलाकांडी में इस दशक के दौरान जनसंख्या वृद्धि दर 20 प्रतिशत से लेकर 24 प्रतिशत तक रही I”(असम ट्रिब्यून, 02 सितम्बर 2014) डॉ नमिता चकमा और डॉ लालपरवुल पखुन्गते ने अपने आलेख रिलीजन इन नार्थ ईस्ट स्टेट्स ऑफ़ इंडिया: ए रिव्यू में लिखा है – “2001 और 2011 की जनगणना का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों की धार्मिक बनावट में नाटकीय परिवर्तन हुआ है I

नागालैंड को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में हिंदू जनसंख्या में गिरावट आई है एवं मणिपुर को छोड़कर सभी राज्यों की मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि हुई है I जनसांख्यिकी में सबसे अधिक परिवर्तन असम (3.3 %) में दर्ज किया गया I इसी प्रकार नागालैंड को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में ईसाइयों की जनसंख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई I केवल नागालैंड में ईसाई जनसंख्या में गिरावट (-2.04) आई है I ईसाई जनसंख्या में सर्वाधिक वृद्धि अरुणाचल प्रदेश(+11.54%) में दर्ज की गई I बौद्ध धर्म को माननेवाले लोगो की जनसंख्या में भी अरुणाचल प्रदेश(-1.26%) एवं सिक्किम (-1.26%) में गिरावट आई है I” स्थानीय मजदूर और छोटे – मोटे कार्य करनेवाले लोग दिल्ली, बंगलौर, मुंबई आदि महानगरों में पलायन कर गए एवं उनका स्थान अवैध रूप से आए बंगलादेशी मजदूरों ने ले लिया I स्थिति की भयावहता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि बंगलादेशी मजदूर न रहें तो पूर्वोत्तर में निर्माण उद्योग ठप्प पड जाए I अधिकांश बंगलादेशी अशिक्षित होते हैं और कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं I अपेक्षाकृत सस्ता व सरलता से सुलभ होने के कारण असम और अन्य पड़ोसी राज्यों के निवासी इन बंगलादेशी मजदूरों पर पूर्णतः निर्भर हो गए I नवभारत टाइम्स ने 22 जनवरी 2015 को लिखा था – “जल्द ही जारी होनेवाले धार्मिक समूहों की जनसंख्या पर आधारित जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या में 24 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जिससे देश की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों की संख्या 13.4 फीसदी से बढकर 14.2 फीसदी हो गई I

हालांकि 1991 से 2001 के दशक में वृद्धि दर के मुकाबले पिछले दशक (2001 – 2011 ) के दौरान मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है लेकिन अब भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है जो कि पिछले दशक में 18 फीसदी रही I मुस्लिमों की जनसंख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी असम में हुई I 2001 की जनगणना के मुताबिक असम में मुस्लिमों की जनसंख्या 30.9 फीसदी थी जो एक दशक बाद बढ़कर 34.2 फीसदी हो गई I” वर्ष 2007 में प्रकाशित भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद शीर्षक अपनी पुस्तक में डॉ सुरेन्द्र कुमार मिश्र और आकाश मिश्र ने लिखा है “देश के पूर्वोत्तर राज्यों में गैर कानूनी तरीके से बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों के आने से एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो चुकी है I इसके साथ ही रोजाना औसतन 1000 बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से प्रवेश करते हैं I बांग्लादेशियों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख से 1 करोड़ 50 लाख के बीच है I इस समय असम में लगभग 40 लाख तथा त्रिपुरा में 8 लाख अवैध घुसपैठिए हैं I असम में 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं जिसमें 18 प्रतिशत बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं I अवैध घुसपैठिए इस क्षेत्र के अर्थतंत्र, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को चौपट कर रहे हैं I जब इनके निष्कासन की बात की जाती है तो इसे हिंदू – मुस्लिम का प्रश्न बनाकर कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है मानो देश के अल्पसंख्यकों पर भयानक एवं अमानवीय अत्याचार किया जा रहा है I देश के उलेमा और मुस्लिमपरस्त सेकुलरी लोग इसके बचाव में कुतर्क और गलत आंकड़े लेकर खड़े हो जाते हैं I यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज असम में असम मूल के लोगों का बहुमत मात्र ब्रह्मपुत्र की घाटियों तक ही सीमित होकर रह गया है I” एक अनुमान के अनुसार असम में कम से कम एक करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए हैं लेकिन एनआरसी में महज 19 लाख घुसपैठिओं को चिह्नित किया गया I अनुमान के अनुसार इस 19 लाख में लगभग 10 – 12 लाख हिंदू हैं I जो मुस्लिम घुसपैठिए थे उन्होंने मुद्रा मैया के पुण्य – प्रताप से अपनी नागरिकता की पुष्टि के लिए सभी प्रमाणपत्र व दस्तावेज जुटा लिए लेकिन जो हिंदू थे वे ऐसा कर पाने में नाकाम रहे I वर्ष 1985 में नागरिकता विवाद के समाधान के लिए असम समझौता हुआ था I इसमें कहा गया था कि 25 मार्च 1971 को आधार मानकर नागरिकता विवाद का निपटान किया जाएगा I 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान की जाएगी और उन्हें देश से बाहर निकाला जाएगा I अधिकांश घुसपैठिए मुस्लिम थे और सभी कांग्रेस के वोटर थे I इसलिए इस समझौते को अमली जामा नहीं पहनाया गया I

नागरिकता संशोधन बिल – 2019 में नई समय सीमा दिसंबर 2014 निर्धारित की गई है I प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल से असम समझौते के नियम-6 का भी उल्लघंन हो रहा है I इस नियम के तहत असम के मूल निवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान और उनके धरोहरों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए संवैधानिक, कार्यकारी और प्रशासनिक व्यवस्था की गई है I असम समझौते में कहा गया था कि एनआरसी को लागू किया जाएगा ताकि विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके I 35 वर्ष बीत गए लेकिन कांग्रेस ने इस दिशा में कोई काम नहीं किया I असम के मूल निवासियों को इस बात की आशंका है कि कानून बदलने से बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता मिल जाएगी I ये बांग्लादेशी हिंदू असम के मूल निवासियों के अधिकारों को चुनौती देंगे एवं असम के मूल निवासियों की संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाजों पर प्रभाव पड़ेगा I विचार करनेवाली बात यह है कि जितने घुसपैठिए थे वे भारत के सम्मानित नागरिक बन चुके हैं लेकिन मात्र 19 लाख लोग जिनके नाम एनआरसी में नहीं हैं उन्हें ही इस नागरिकता संशोधन बिल से लाभ होगा I इनमें भी दस – बारह लाख लोग हिंदू धर्मावलंबी हैं I ऐसे नागरिकताविहीन अधिकांश हिंदू शरणार्थी बराक घाटी के तीन जिलों कछार, करीमगंज और हैलाकांडी में बसे हैं जिन जिलों की राजभाषा बंगला है I यह सारा आंदोलन उन्नीस लाख लोगों के लिए ही है I सब कुछ जानकर भी पहले की सरकारें सोई रहीं, घुसपैठिओं के प्रवाह को रोक पाने में नाकाम रहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट और वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद भी कोई हरकत नहीं हुई, सर्वत्र मौन पसरा रहा I समय – समय पर समाचार पत्रों, सरकारी एजेंसियों और यहाँ तक कि असम के तत्कालीन राज्यपाल एस के सिन्हा ने भी सरकार को सावधान करते हुए लिखा था कि अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए कठोर कदम उठाया जाए अन्यथा भविष्य के लिए गहरा संकट उत्पन्न हो सकता है लेकिन समस्याओं को उलझाने, भटकाने और अटकाने में कांग्रेस पार्टी अव्वल रही है I कांग्रेस ने अवैध घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप धारण करने दिया और “कुर्सी नाम केवलम” की माला जपती रही I अब कांग्रेसी नेता घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं I जिसने दर्द दिया वही दवा बाँट रहा है……….तुम्हीं ने दर्द दिया, तुम्हीं दुआ करते हो ………. I

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वीरेन्द्र परमार
एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन I प्रकाशित पुस्तकें :- 1. अरुणाचल का लोकजीवन(2003) 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009) 3.हिंदी सेवी संस्था कोश(2009) 4.राजभाषा विमर्श(2009) 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010) 6.डॉ मुचकुंद शर्मा:शेषकथा (संपादन-2010) 7.हिंदी:राजभाषा,जनभाषा, विश्वभाषा (संपादन- 2013) प्रकाशनाधीन पुस्तकें • पूर्वोत्तर के आदिवासी, लोकसाहित्य और संस्कृति • मैं जब भ्रष्ट हुआ (व्यंग्य संग्रह) • हिंदी कार्यशाला: स्वरूप और मानक पाठ • अरुणाचल प्रदेश : अतीत से वर्तमान तक (संपादन ) सम्प्रति:- उपनिदेशक(राजभाषा),केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड, जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय(भारत सरकार),भूजल भवन, फरीदाबाद- 121001, संपर्क न.: 9868200085

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