चाणक्य की सैन्य नीति अपनाकर ही भारत विश्वशक्ति बनेगा : बक्शी

भोपाल (हि.स.)। आज भारत की सेना विश्व में दूसरे नंबर पर है। वायुसेना का स्थान चौथा, जल सेना का स्थान पांचवा है। भारतीय सेना वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की सैन्य शक्ति की तुलना में अपना विशिष्ट स्थान न केवल सामरिक ह्ष्टि से रखती है बल्कि भारतीय सेना के जाबाज युद्ध नीति, कौशल कला के प्रत्येक क्षेत्र में श्रेष्ठ योग्यता रखते हैं। द्वितीय युद्ध के बाद से लगातार भारतीय सैन्य शक्ति में इजाफा हुआ है। देश में आज तक का जो विकास और बदलाव दिखाई देता है वह भारत में समय-समय पर हुई सैन्य क्रांतियों का परिणाम है। पांच हजार वर्षों के भारतीय इतिहास में तीन बार देश में सुगठित साम्राज्य देखने को मिला। मौर्य, मुगल व ब्रिटिश काल में। चाणक्य ने मौर्य काल में जो सैन्य नीति बनाई वह आज भी प्रासंगिक है उसका उपयोग कर ही भारत विश्व शक्ति बन सकता है। यह बात सैन्य विषयों के जानकार रिटयार्ड मैजर जनरल जी.डी. बक्शी ने कही।

अपेक्स बैंक समन्वय भवन में विवेकानन्द केन्द्र शाखा भोपाल द्वारा आयोजित संगोष्ठी भारत की सामरिक परम्परा विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए श्री बक्शी ने कहा कि भारत का सामरिक इतिहास सौ या पांच सौ वर्ष पुराना नहीं बल्कि सात हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। दुर्भाग्य यह है कि भारतीयों को अपनी सैन्य शक्ति और सामरिक परम्परा के बारे में जानकारी देने वाले केन्द्र के अभाव में वे उन सभी बातों से अनभिज्ञ हैं जिसे जानकार हर भारतीय आत्मगौरव का अनुभव कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में जब अलैग्जेंडर ने आक्रमण किया उस समय कौटिल्य ने सैन्य ह्ष्टिकोण से प्रत्येक बिन्दु पर विचार कर ऐसी नीति और योजना बनाई थी कि जिसके बलबूते वह चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में 25 वर्ष के भीतर अफगानिस्तान, बलूच, तमिलनाडू, असम तक मौर्य शासन की स्थापना कर सके। उसके बाद भारत में मंगोल आए जो नई सामरिक नीति लेकर आए थे। वे तौपखाना तथा तूफांची साथ लाए, घोडों की रकाब उन्होंने बनाई। बाबर की 40 हजार वाली फौज ने इब्राहिम लोधी की 1.5 लाख से ज्यादा की फौज को हरा दिया।

श्री बक्शी ने कहा कि तीसरी क्रांति यूरोपियन देशों खासकर अंग्रेजों के भारत आने के बाद हुई, उन्होंने लगातर एक हजार गोलियां एक साथ फायर करने की तकनीक दी। इसी के बलबूत वे भारत में मुगल साम्राज्य का अंत कर सके और देश में अपना साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए। रिटायर मेजर जनरल श्री बक्शी ने जोर देकर कहा कि भारत की जो सामरिक नीति चाणक्य ने बनाई थी चतुरबल सेना, वह आज भी भारतीय सैन्य शक्ति की ताकत बनी हुई है। फर्क सिर्फ तकनीकी स्तर पर आया है। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर मौर्यकाल में बनी चाणक्य अर्थ नीति और सामरिक नीति की वर्तमान सैन्य नीति से तुलना की और कहा कि वर्तमान भारत चाणक्य नीति का अनुसर कर ही विश्व शक्ति बन सकता है। वहीं मेजर बक्शी ने यह भी बताया कि 1972 में हुए पाकिस्तान से युद्ध के समय भारत ने बगैर ज्यादा सोचे 2000 वर्ष पहले चाणक्य द्वारा बनाई गई सामरिक नीति का अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष पालन करते हुए कूटनीति अपनाकर युद्ध में जीत हासिल की थी। उन्होंने युद्ध के पहले शत्रु-मित्र का भेद, पडोसी मुल्कों के बारे में किस प्रकार विचार किया जाना चाहिए इस बात पर भी विस्तार से बताया।

वहीं देश की आम जनता से मैजर बक्शी ने अपील की कि वे वह अपने देश में ऐसे वातावरण का निर्मण करें जो सैनिकों का मनोबल बढाने में सहायक हो। श्री बक्शी ने देश में बढ रही व्यक्तिवादी सोच के स्थान पर समूह और हम के विचार को महत्व दिए जाने पर भी जोर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के. कुठियाला ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री कुठियाला ने कहा कि आम नागरिक का कर्तव्य न केवल देश के विकास में अपने दायित्वों का अनिवार्य रूप से पालन करने में है बल्कि अपने देश के प्रति आने वाले वाले खतरों को भांपकर सचेत व उनसे निपटने के लिए सदैव तैयार रहने में है। उन्होंने भारत की पाकिस्तान को लेकर जो वर्तमान नीति है उस पर भी अनेक प्रश्नचिन्ह लगाए और कहा कि भारत जब पाकिस्तान से वार्ता करते वक्त उसके स्तर पर बराबरी में आकर उससे चर्चा करता है तभी वह चीन और अमेरिका जैसे देशों की नजर में छोटा हो जाता है। पाकिस्तान एक असफल राष्टन् है उसके स्तर पर आकर भारत को उससे न तो कूटनीतिक स्तर पर और न ही मैत्रीपूर्ण संबंधों के स्तर पर बातचीत करनी चाहिए।

उन्होंने आम भारतीय के मन में अपने पडोसी मुल्क पाकिस्तान को लेकर जो क्षोभ है उसके लिए वर्तमान राजनीतिक नीतियों को दोषी करार दिया और अपने तार्किक तथ्यों से यह भी बताया कि भारत को सिर्फ पाकिस्तान और चीन से ही नहीं बल्कि विचारधारा तथा सांस्कृतिक स्तर पर सबसे ज्यादा खतरा आज अमेरिका से है। वहीं श्री कुठियाला ने अनेक उदाहरण देयक यह भी बताया कि जिस तरह आर्थिक मंदी के दौर में भारत ने स्वयं को संभाला और वैश्विक आर्थिक मंदी का स्वयं पर किंचित प्रभाव नही पडने दिया, जबकि उसकी चपेट से अमेरिका और चीन जैसे देश बच नहीं सके थे ऐसे में अधिकांश विद्वानों का यह मत बना है कि अगला महाशक्ति संपन्न देश विश्व में यदि अब कोई दूसरा होगा तो वह भारत ही होगा।

कार्यक्रम में मंच पर विवेकानन्द केन्द्र मध्यभारत प्रांत संचालक व अध्यक्ष मध्यप्रदेश प्रवेशफीस नियामक आयोग पी. एल. चतुर्वेदी भी उपस्थित थे। इस संगोष्ठी का संचालन मनोज गुप्ता, विवेकानन्द केन्द्र गतिविधियों की जानकारी मनोज पाठक, अतिथि परिचय वरिष्ठ पत्रकार रामभुवन सिंह कुशवाह ने दिया। गीत व शांतिपाठ सुश्री कंचन ने प्रस्तुत किया।

-मयंक चतुर्वेदी

Previous articleविश्व बंधुत्व, करुणा, प्रेम और सुरक्षा ही मानव अधिकार की कुंजी : दलाई लामा
Next articleमहिलाएं जीतीं, लोकतंत्र हारा
मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

3 COMMENTS

  1. मिलिन्द प्रश्नावली बौद्ध वांगमय की महत्वपुर्ण पुस्तक है । इस पुस्तक मे लिखा है राजा के सैनिक नरक मे जाते है। यह सोच ही सामरिक शक्ति का ह्रास करती है। हमे बहुत सारे द्वन्दो का समाधान ढंढ्ना होगा ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here