विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के आधार पर अस्वच्छता और पानी की समस्या के कारण विकास शील देशों को हर वर्ष 260 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है. भारत जैसे बड़े देश में अस्वच्छता एक बड़ी समस्या रही है. आज़ादी के पहले गाँधीजी ने बहुत सारे स्वच्छता कार्यक्रम चलाये लेकिन आज़ादी के बाद की सरकारों का ध्यान इस तरफ अधिक नहीं गया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने निर्मल भारत अभियान की शुरुआत सन 2000 में की और उसके बाद की सरकारों ने इसी अभियान को आगे बढ़ाया. लेकिन कोई भी पूर्ववर्ती सरकार इस अभियान में जनता की भागीदारी सुनिश्चित नहीं कर पाई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात के लिए बधाई के पात्र है कि इन पांच साल में उनका काफी जोर लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक करने और उन्हें इस अभियान से जोड़ने में रहा. स्वच्छ भारत के लक्ष्य को लेकर प्रधानमंत्री ने एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा किया, जिसमें लोगों को जोड़ने के लिए अभिनेताओं, नेताओं और समाज के तमाम क्षेत्रों को अपील की गई. अपने कार्यकाल की शुरुआत में उन्होंने खुद के साथ मंत्रियों, अभिनेताओं, नेताओं और आम जन को आसपास की सफाई के लिए सड़क पर झाड़ू लेकर उतारा. निर्मल भारत अभियान और स्वच्छ भारत अभियान में एक बड़ा अंतर यही रहा कि आम जन ने इस आंदोलन में जोर शोर से प्रतिभाग किया. हालाँकि अभी भी बहुत काम किए जाने की जरूरत है लेकिन एक अच्छी शुरुवात हो चुकी है.
धीरे -धीरे लोग खुद जागरूक हो रहे है और साथ ही राज्य सरकारों और नगर निगमों का ध्यान भी इस तरफ गया है. हाल ही में संपन्न हुए प्रयागराज के कुम्भ मेले में इस अभियान की महत्ता को समझा जा सकता है, जहाँ पर राज्य सरकार ने न सिर्फ सदियों का सबसे उत्तम और सफल आयोजन किया, बल्कि आयोजन के दौरान मेले में स्वच्छता को भी एक बड़ा लक्ष्य रखा गया और भली प्रकार लक्ष्य पूर्ति की गयी.
इसके इतर आम जन मानस में भी एक बात देखी गयी है कि अब लोग कचरे को कूड़ेदान में ही डालते है. आये दिन समाचार पत्रों में भी ये ख़बरे रहती है कि फलां ने फलां को सड़क पर बोतल या कचरा फेंकने से मना किया. छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री के आवाहन से प्रेरित होकर एक बूढ़ी दादी अम्मा ने अपनी बकरियां बेचकर गांव में शौचालय बनवाया. अपने इर्द गिर्द भी हम देख सकते है कि लोग अब इस बात का ध्यान रखते है कि कचरा इधर उधर न फैला हो. इस तरह की जागरूकता समाज में लेन का श्रेय, पूरी तरह प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को दिया जाना चाहिए.
स्वच्छ भारत अभियान का दूसरा बड़ा लक्ष्य शौचालय बनवाना रहा | पूर्ववर्ती सरकारों के शासन काल के उपरांत भी लोगों का शौच के लिए बाहर जाना आम बात थी. देश की तरक्की एक मजाक भर है, जब देश के नागरिक का सम्मान खुले मैदान छलनी हो रहा हो.
एक सामान्य परिवार से आकर देश के शीर्ष पद तक पहुँचने वाला व्यक्ति ही इस अपमान को समझ सकता है. राजाओं की तरह देश की जनता और संपत्ति को अपनी जागीर समझने वाले इस पीड़ा को कभी नहीं समझ सकते या शायद वो समझने की कोशिश ही नहीं करते अन्यथा ये अपमान आज भी देश का नागरिक न सहन करता. युद्ध स्तर पर शौचालय बनवाने का काम देश की नरेंद्र मोदी सरकार ने किया. जिस तरह से अक्टूबर 2014 के बाद से अब तक 9 करोड़ शौचालय बनवाये गए है, उसके लिए मोदी सरकार बहुत ही बधाई की पात्र है. अभियान की शुरुवात के समय 38.7 % लोगों के पास शौचालय की सुविधा थी जो आज 98 % तक पहुँच चुकी है. शौचालय का होना ना सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि महिलाओं के सुरक्षा लिहाज से भी एक स्वागत योग्य सफल सरकारी कार्यक्रम है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वच्छ भारत अभियान को 1.8 लाख लोगों की जान बचाने का भागीदार पाया है जो की डायरिया के कारण होती थी. हर घर में शौचालय होने से 3 लाख लोगों का जीवन गन्दगी से होने वाली बीमारियों से बचेगा जो लक्ष्य अब दूर नहीं है.
इस अभियान के तहत कई कार्यक्रम चलाये गए जिसमें स्वच्छ्ता पखवाड़ा, स्कूल स्वच्छता, रेलवे स्वच्छ्ता, आदि-आदि हैं. इसके साथ ही इस कार्यक्रम से जुड़ा एक सफल और स्वतंत्र कार्यक्रम नमामि गंगे है. हाल ही में समाचार पत्रों में एक चित्र दिखा जिसमें एक नयी नेता गंगा के पानी को पी रही है.
भारत तब तक अपनी गरिमा और यश को नहीं पा सकता था जब तक नागरिक देश और देश की नदियों को कूड़ेदान समझेंगें. नया भारत का सपना जो कभी गाँधी जी ने देखा था, उसे नरेंद्र मोदी की सरकार साकार कर रही है. ऐसे नए भारत को गरिमा दिलाने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार आना जरुरी है. नया भारत ऐसा भारत है जहाँ नागरिकों का सम्मान होता है, जहां का नागरिक देश की स्वच्छता का ख्याल रखता है.
डॉ विकास पांडे, लेखक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से PhD कर चुके हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, लॉस एंजेलेस में पोस्ट डॉक्टरेट स्कॉलर हैं (Academics4Namo)
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