एक लोमड़ी थी चालाक ।
उसको थी रोटी की ताक ।।
उसने देखा आँख उठा कर।
कौआ बैठा दिखा पेड़ पर ।।
कौए के मुँह में थी रोटी ।
लोमड़ी की फड़की तब बोटी।।
हँसी लोमड़ी , बोली यों ।
“कौआ भैया, चुप हो क्यों?
कुछ तो बोलो, बात करो तुम।
अपने दिल का हाल कहो तुम।।”
कौए ने मुँह खोला ज्यों ही ।
रोटी गिर गई, नीचे त्यों ही।।
उठा लोमड़ी भाग गई जब।
कुछ भी कर न सका कौआ तब ।।
मूर्ख बना कौआ तब रोया ।
बिन रोटी भूखा ही सोया ।।
कभी न सुनना अनजानों की ।
बात सुनो तुम बस अपनों की ।।
सीख यही देते हैं गुरुजन ।
सुनें न जो ,रोते हैं वे जन।।
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– शकुन्तला बहादुर