सरकार क्या जनता को नासमझ समझती है?

सिद्धार्थ शंकर गौतम

कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में सीबीआई ने देश के १० शहरों में ३० स्थानों पर छापामार कार्रवाई कर ५ कोयला कंपनियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की है जिनमें विन्नी आयरन ऐंड स्टील, नवभारत स्टील, जेएलडी यवतमाल, जेएएस इन्फ्रास्ट्रक्चर और एएमआर आयरन ऐंड स्टील के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है| जिन कंपनियों पर छापेमारी की गई है उनमें से एक में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का भी पैसा लगा होने की बात कही जा रही है वहीं दो कंपनियों का संबंध कांग्रेस सांसद विजय दर्डा और कोयला मंत्री के रिश्तेदार बताए जा रहे मनोज जायसवाल से है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ की एक कंपनी के प्रमोटर की पत्नी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं। जांच एजेंसी ने पांचों कंपनियों के मालिकों, कोयला मंत्रालय के कुछ अज्ञात अफसरों और छत्तीसगढ़ सरकार के कई अधिकारियों के खिलाफ भी केस दर्ज किया है। सीबीआई ने कोयला विभाग के एक सीनियर ऑफिसर से भी पूछताछ की है, जो २००६ से २००९ तक कोल ब्लॉक का आवंटन देख रहे थे। शुरुआती जांच के दौरान सीबीआई को कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने सूचित किया कि कुछ उन कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, जिन्हें खदानें आवंटित की गई थी। इन कंपनियों से माइनिंग में देरी का कारण स्पष्ट करने के लिए कहा गया था। कुछ कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें २००५ में कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए थे, लेकिन इन्होंने अब तक माइनिंग शुरू नहीं की है। इन्हें झारखंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए थे। सीबीआई कोल ब्लॉक के मुद्दे पर संसद में रखी गई कैग की रिपोर्ट पर भी संज्ञान ले रही है और नीतिगत मुद्दों से इतर जांच एजेंसी इसके आपराधिक मामलों पर ही ध्यान केन्द्रित करेगी| यानी अब इस घोटाले में शामिल बड़े घरानों से लेकर राजनेताओं तक के चेहरे पर पुती कोयले की कालिख सामने आने की आस बंधी है| फिर क्या कांग्रेस और भाजपा; दोनों ही दलों से जुड़े प्रभावी लोगों तक सीबीआई जांच की आंच आना यह साबित करता है कि इस घोटाले में सभी ने अपनी ढपली अपना राग के हिसाब से देश के राजकोषीय घाटे को बढाया है|

 

मानसून सत्र की बलि ले चुका कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला अभी कितनी कालिख उगलेगा यह तो वक्त ही बताएगा, फिलहाल तो सीबीआई की निष्पक्ष छापामार कार्रवाई से दोनों ही दलों के नेता घबराए हुए हैं| सीबीआई की जांच को निष्पक्ष इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि कांग्रेस सांसद और महाराष्ट्र में मीडिया समूह के मालिक विजय दर्डा का नाम भी जांच की जद में आया है| वैसे यह आश्चर्यजनक तो नहीं किन्तु अनपेक्षित अवश्य है कि नेताओं ने किस तरह अपने विशेषाधिकार का दुरुपयोग करते हुए आवंटन की प्रक्रिया को अपने अनुकूल बनाया? यहाँ तक कि कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की अपने रिश्तेदार को कोल ब्लॉक आवंटित करने हेतु लिखी गई सिफारिशी चिठ्ठी भी मीडिया में लीक होने से इस धारणा को बल मिला है कि इस घोटाले के तार ऊपर तक हैं जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता| इतना सब होने के बावजूद यदि सरकार यह कहती है कि घोटाला हुआ ही नहीं तो निश्चित है कि सरकार की मंशा ही नहीं है भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने की| वहीं इस मामले में केंद्र सरकार का दोहरा रवैया भी कम आश्चर्यजनक नहीं है| एक ओर तो सरकार कहती है कि घोटाला हुआ ही नहीं वहीं केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई घोटाले से जुडी कोयला कंपनियों पर छापामार कारवाई कर रही हैं जिसकी जद में कांग्रेसी सांसद से लेकर भाजपा नेता तक सभी आ रहे हैं| दूसरा चौंकाऊ तथ्य यह है कि कैग की रिपोर्ट को सरकार केंद्र के परिपेक्ष्य में गलत ठहरा रही है वहीं भाजपा शासित राज्यों के लिहाज से उसे रिपोर्ट सही जान पड़ रही है| कांग्रेस महासचिव बी के हरिप्रसाद ने तो बाकायदा नैतिकता के आधार पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का इस्तीफ़ा मांग लिया| यह दीगर है कि भाजपा सांसद बीते कई वर्षों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की भावभीनी अपील करते रहे हैं पर हर घोटाले के बाद प्रधानमंत्री की चुप्पी हज़ारों सवालों पर भारी पड़ती रही है| एक के बाद एक कई घोटालों के उजागर होने से बैकफुट पर आई संप्रग सरकार कैग की रिपोर्ट को स्वीकार करने से ही मना कर रही है और तर्क दिए जा रहे हैं कि कैग की रिपोर्ट में जो आंकड़ों का खेल हुआ है पर काल्पनिक है पर ऐसा ही कुछ आरोप २जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर आई कैग रिपोर्ट पर भी लगाया गया था किन्तु न्यायालय के हस्तक्षेप से राजकोषीय घाटे का जो आंकड़ा सामने आया था उसने देश को चौंधिया दिया था| अतः कैग की रिपोर्ट को खारिज कर सरकार संशय के बीज तो बो ही रही है, साथ ही जनता में भी गलत संदेश जा रहा है| फिर यदि सीबीआई जांच में घोटाले का सच सामने आता है और कोयले की कालिख में पुते चेहरे बेनकाब होते हैं तो सरकार का झूठ सामने आएगा ही जो उसकी सेहत पर विपरीत प्रभाव डालेगा|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

2 COMMENTS

  1. कोयला घोटाले का बाप बहुत जल्दी ही सामने आने वाला है. एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत, जहाँ थोरियम का सबसे बड़ा भंडार है, का बहुत बड़ा हिस्सा कुछ ‘बड़े’ लोगों की सांठ गाँठ से देश के बाहर भेज दिया गया है और ऐसे थोरियम का मूल्य अढ़तालिस लाख करोड़ अनुमानित किया गया है. क्या मुख्या विपक्षी दल केवल घोटाले सामने आने पर ही सक्रीय होता है या उसकी इन घोटालों को सामने लाने की जिम्मेदारी भी है? ये वर्तमान सरकार और कितने घोटालों का रिकोर्ड बनाएगी

  2. “सूर दास की लकुटी कमरिया चढ़ो ना दूजो रंग “, कांग्रेस का हाल पूनम पाण्डेय और शर्लिन चोपड़ा वाला हो गया है, उन्हें यही नहीं पता चल रहा है की मेरी बदनामी हो रही है या शाबाशी मिल रही है. घोटाला शब्द इतना प्रचलित हो गया है की इस शब्द ने अपना वजूद खो दिया है. कौन पकड़ा जाएगा कौन छोड़ा जाएगा सब पी ऍम ऑफिस ही निर्णय करेगा, आखिर सी बी आई उसी का शेर है. दिखावे के लिए दो चार लोग पकडे जाएँगे फिर उनका क्या होगा किसी को कुछ नहीं पता. टेलिकॉम घोटाले का क्या हुआ ? आज की तारीख में किसी से पूछो तो वो कुछ बता नहीं पाएगा. जिसने बना लिया वो बन गया. नहीं बना पाया वो चिल्लाते चिल्लाते थक गया, अब लोग भी उसकी नहीं सुनते. लोगों को अपनी डाल रोटी से फुर्सत नहीं है. कौन किसकी सुने ?रही बात जनता की तो सरकार उसे सिर्फ बेवकूफ ही नहीं बुद्धू भी समझती है. और दरअसल वो ऐसी ही है.

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