हर्ष ही नहीं गर्व का विषय है हिन्दी विश्व मंच पर एक अग्रणी भाषा है। विश्व के अनेक देश हिन्दी को पाठयक्रम में पढ़ाए जाने का निश्चय कर चुके हैं। रूस और कुछ अन्य पड़ोसी देशों में हिन्दी पढ़ाना आरंभ हो गया है। अब अंग्रेजी उनके बीच संपर्क भाषा का काम कर रही है जिन्हें एक-दूसरे की भाषा नहीं आती।
14 सितम्बर 1949 को राजभाषा का दर्जा पाने वाली हिन्दी अब सरकारी कामकाज में भी अग्रणी होते जा रही है। यदि हम भारतवासी इसी प्रकार से हिन्दी को अपनाकर अंग्रेजी को केवल एक संपर्क भाषा ही समझे तो निश्चय ही वह दिन जरूर आएगा जब विश्व के पटल पर हिन्दी का बोलबाला होगा। तकनीक भी हमारे साथ है। पिछले दशक तक जहाँ कम्प्यूटर पर हिन्दी में काम नहीं होता था आज हिन्दी भाषा के हजारों फोण्ट उपलब्ध हैं। आप अंतरजाल का उपयोग हिन्दी में कर सकते हैं।
भाषा संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम है। एक क्षेत्रीय भाषा भी तब तक जीवित बनी रहती है जब तक उसे बोलने और समझने वाले रहते हैं। फिर हिन्दी तो विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश की भाषा है। उसे विश्व के लगभग 50 देशों में पढ़ाया जाता है।
इंटरनेट और तकनीक की प्रगति से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में निरंतर विस्तार हो रहा है। निष्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं वे लोग जो सुदूर विदेश में रहकर यूनीकोड के प्रयोग से हिन्दी को सम्मान दे रहे हैं। किसी अन्य देश में रहकर अपनी मातृभाषा के प्रति न्याय करना उनकी सभ्यता और संस्कृति का परिचालक है। हिन्दी दिवस मनाने की जो परम्परा है वह केवल इसलिए नहीं कि हिन्दी को याद किया जाए। हिन्दी बोले, हिन्दी लिखें, बल्कि इसलिए कि प्रकार के आयोजन से ऐसे मुद्ये सामने आएं जो हिन्दी की प्रगति में बाधा डालते हैं। साथ ही उनके निराकरण की बात भी स्पष्ट रूप से सामने आए।
युवाओं के लिए चुनौती-आज की हिंदी
क्रान्ति लाना तो सदा से ही युवाओं के जिम्मे रहा है। ये हमारे गले उतरे, न उतरे। पर सच यही है कि हिंदी बदल रही है और यही उसके जीवित रहने की निशानी है। यदि युवाओं को हिन्दी साहित्य की धरोहर को बचाने की ओर अग्रसर कर दिया जाए तो हमारी हिन्दी को विकास जरूर मिलेगा। जो जीवंत हिंदी है, वो आज से नहीं, सैकड़ों सालों से बाजार की भाषा है। विदेशों में हिन्दी सीखी और पढ़ी जा रही है। परिवारों में, लोगों में और समाज में हिंदी का बाजार अनेक चुनौतियों के बाद हिंदी को जीवित और जीवित बनाए हुए है।
यद्यपि आयोजनों का रूप कुछ स्थानों पर बिगड़ते देखा गया है, परन्तु ऐसे अवसर कम ही होते हैं। उन पर नियंत्रण के प्रयास जारी हैं। भाषा और विषयों से जुड़े आयोजन ही एकमात्र माध्यम है जो व्यक्तिगत विचारों को मंच प्रदान करते हैं। उन नवोदित कलमों की आवाज बनते हैं जिन्हें सहज ही मार्ग नहीं मिल पाता। सीनियर तथा स्थापित आवाज को तो अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में भी स्थान मिलता है, लेकिन नवोदित कलम और आवाज को मंच देने के लिए आयोजन महत्वपूर्ण हैं। अंतरजाल ने भी अनेक नवोदित कलमों को चोखा मंच प्रदान किया है।
अंग्रेजी का बढ़ता आकर्षण
अंग्रेजी का आकर्षण युवा पीढ़ी पर सबसे अधिक है। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा है और भारत की सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा है। परन्तु मार्केट यानी व्यवसाय पर अंग्रेजी ही छाई है। चीनी के बाद विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। फिर भी व्यावसायिक भाषा बनने में अभी उसे समय लगेगा। करना यह होगा कि पत्रकार हों या विद्यार्थी हिन्दी में अधिक से अधिक लिखें। ब्लॉग बनाएं। हिन्दी को आगे बढ़ाने में स्वयं का साथ दें। आइये इस हिन्दी दिवस पर इस विश्व के साथ एकत्र हों कि हिन्दी विश्व मंच पर निश्चय ही ऊँचा दर्जा प्राप्त करेगी।
जय हिन्दी, जयति हिन्दी