आओ पीएम बनने के लिए दौड़ लगायें

अविनाश वाचस्‍पति 

पी एम को बदल डालने की सुगबुगाहटें तेज हो गई हैं। पहले नेपथ्‍य में तो चल रही थीं परंतु अब सामने हैं। सुगबुगाहट से अधिक यह चिंगारी शोला बन भड़क चुकी है। प्रिंट मीडिया और चैनलों पर अफरा तफरी का माहौल है। लेने वाले तफरीह ले रहे हैं इसलिए हम भी तफरी को तफरीह माने ले रहे हैं। पी एम सतर्क हैं, सतर्क रहने के उनके अपने तर्क हैं, तर्कों के बावजूद पीएम को अफारा होना स्‍वाभाविक है। वे जानते हैं कि सब पीएम ही बनना चाहते हैं।

चाहे वे रथ में यात्रा कर रहे हैं या उनकी यात्रा समाज सेवा की है या राजनीति की है। वह सफल हो गए हैं, इसका मतलब यह कतई न लगाया जाए कि लाईन को निहार रहे सभी सफल हो जायेंगे। इतना जरूर जान लीजिए कि सिर्फ पीएम बनने भर से सारी सफलताएं नहीं मिला सकती हैं। टिके रहने के लिए उचित गुणवत्‍ता के पापड़ बेलने पड़ते हैं। पापड़ बेलने का कार्य भी खुद ही करना होता है। इसमें किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पीएम की कुर्सी इतने जादू से भरी हुई है। इस कुर्सी में बिना छड़ी का जादू है और जादू की छड़ी अपने पास न होने की कसमें कदम कदम पर खाई जाती हैं। इधर पापड़ पर खतरा या जादू छड़ी में नहीं कुर्सी पर है, मालूम चलते ही, पापड़ों की सुरक्षा खतरे में पड़ने लगती है, किसी एक पापड़ का टूटना मतलब कुर्सी का छूटना है। पीएम की कुर्सी को सभी अपने-अपने खर्च पर रिपेयर करवाने के लिए तैयार हैं। कुर्सी है पर पीएम ने अपना बोरिया बिस्‍तर भी साथ में रखा है, जिसे समेटने तक की नौबत कुर्सी के टूटने पर आ सकती है। पीएम की कुर्सी से चिपके रहने के लिए विवेकी होने के साथ ही गजब की सहनशीलता चाहिए। सहनशीलता की एक हद मौन रहना भी है। बेमौके पर न बोलने के साथ ही मौके पर भी न बोलने की बेशर्मी लादने की भरपूर ताकत होनी चाहिए। गालियां मिलती रहें, मीन मेख निकाले जाते रहें, लेकिन सुनते हुए भी अनसुना करना और मौन रहना है। मौन टूटा तो कुर्सी भी छूटी। पीएम की इस अदा को अन्‍ना ने भांप लिया है। आखिर वे पीएम पद के न सही, प्रेसीडेंट पद के दावेदार तो बताए ही जा रहे हैं। यह खबर खुल गई है लेकिन वह नहीं खुली। यह खबर सीक्रेट है। जरूर कहीं कोई डील हुई है। जिसकी चर्चा नहीं है। बिल्‍कुल चुपचाप। कहीं कोई पदचाप नहीं। आपा धापी नहीं। पहले एक सप्‍ताह के मौन का हल्‍ला अब अनिश्चितकालीन मौन – पर मौन धारण करने में मौत का खतरा नहीं मंडराता है। चुप रहने से कोई नहीं मरता, जबकि बोलने से बहुत सारे रोज ही मर रहे हैं। कुछ की पिटाई शुरू हो गई है, कहीं चप्‍पलों की बारिश हो रही है – सब गलत है। पर सबकी अभिव्‍यक्ति की अपनी अपनी लत है।

मौन साधने से भ्रष्‍टाचार नहीं सधता है बल्कि सारी सरकार उनके विरोध में चौकन्‍नी हो गई है। अन्‍ना अब मौन हैं। उनके मौन पर प्रतिक्रिया प्रिंट मीडिया और चैनलों पर मुखर होगी, खूब बातें बनाई जायेंगी, हल्‍ला मचाया जायेगा, कयास लगाये जायेंगे। पर इससे महंगाई कम नहीं होगी। महंगाई कम हो तो भ्रष्‍टाचार में कुछ गिरावट आए। दोनों एक दूसरे पर अन्‍योन्‍याश्रित हैं। महंगाई के भागने से भ्रष्‍टाचार का भागना सुनिश्चित किया जा सकता है। भ्रष्‍टाचार की दीर्घायु और स्‍वस्‍थता के लिए महंगाई पूरी तौर पर जिम्‍मेदार है। महंगाई न हो तो भ्रष्‍टाचार की मौत भी संभव है। लेकिन महंगाई का न होना ही असंभव है इसलिए भ्रष्‍टाचार की मौत कैसे हो सकती है।

देश में इस समय पीएम के पद के लिए दौड़ जारी है। दौड़ने वालों में नाम आ जाए तो भी लगता है कि आधी सफलता मिल गई, समझ लो। दौड़ने वाले तो रथ लेकर दौड़ पड़े हैं और सबका ध्‍यान उनके पीएम पद की दावेदारी पर जाए, इसलिए कह रहे हैं कि वे पीएम पद की दौड़ में नहीं हैं, रथ यात्रा तो बस यूं ही … और खिसियानी हंसी हंस कर दांत निपोर देते हैं। वे जान रहे हैं कि रथ का तो सिर्फ नाम है जबकि उसमें कई हॉर्सपावर का शक्तिशाली इंजन लगा है। रथ में टीवी है, इंटरनेट है। ब्‍लॉग पोस्‍ट की सुविधा है। फेसबुक भी है। वोट बुक और करेंसी नोटबुक भी है। सब पुराने को ही भुनाते हैं। भुन नहीं पाता तो भुनभुनाते हैं जबकि गले नए को ही लगाते हैं। मुट्ठी बांधकर जफ्फी पाते हैं। उस समय मुन्‍नाभाई याद आते हैं। मोबाइल, लैपटाप सब नया ही चाहिए। सब जानते हैं कि सब की चाहत क्‍या है। पुराने अपनी चाहतों में पूरी तरह रमे हुए हैं। जबकि लगता नहीं है कि पुराने पीएम कुर्सी छोड़ेंगे। तब तक ये लोग खूब रो लेंगे। सबको रोने के फायदे पहले ही बतला दिए गए हैं। पीएम तो एक ही बनेगा। ज्‍यादा रोओगे तो शायद एक दिन पीएम की कुर्सियां दस बारह कर दी जायें। एक महंगाई कंट्रोल करने वाला पीएम। दूसरा भ्रष्‍टाचार मिटाने वाला। तीसरा देश का तो चौथा प्रदेश का। पांचवां, छठा, सातवां …. बारह और तेरह भी, सब कुछ तेरहवीं से पहले। माधुरी दीक्षित का गाया गीत फिज़ा में गूंज रहा है। तेरा करूं गिन गिन के इंतजार … बाकी का पोर्टफोलियो आप ही बतला दीजिए। एक नई बहस छिड़ गई हैं। सबकी उम्‍मीदें बढ़ गई हैं।

लगता है दूसरे जन्‍म तक इंतजार नहीं करना होगा, इस देश में पीएम बनना आसान होता जा रहा है। मैं भी ट्राई करूं क्‍या ?

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अविनाश वाचस्‍पति
14 दिसंबर 1958 को जन्‍म। शिक्षा- दिल्ली विश्वविद्यालय से कला स्नातक। भारतीय जन संचार संस्थान से 'संचार परिचय', तथा हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम। सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन, परंतु व्यंग्य, कविता एवं फ़िल्म पत्रकारिता प्रमुख उपलब्धियाँ सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। जिनमें नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता अनेक चर्चित काव्य संकलनों में कविताएँ संकलित। हरियाणवी फ़ीचर फ़िल्मों 'गुलाबो', 'छोटी साली' और 'ज़र, जोरू और ज़मीन' में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिंदी टेली फ़िल्म 'ज्योति संकल्प' में सहायक निर्देशक। राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद और हरियाणवी फ़िल्म विकास परिषद के संस्थापकों में से एक। सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला भारती, दिल्ली में उपाध्यक्ष। केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के शाखा मंत्री रहे, वर्तमान में आजीवन सदस्य। 'साहित्यालंकार' , 'साहित्य दीप' उपाधियों और राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान' से सम्मानित। काव्य संकलन 'तेताला' तथा 'नवें दशक के प्रगतिशील कवि कविता संकलन का संपादन। 'हिंदी हीरक' व 'झकाझक देहलवी' उपनामों से भी लिखते-छपते रहे हैं। संप्रति- फ़िल्म समारोह निदेशालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली से संबद्ध।

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  1. व्यंग अच्छा है.आपने गलत या सही छोड़ा किसी को नहीं,पर मेरे विचार से महंगाई से भ्रष्टाचार नहीं बढ़ता,बल्कि भ्रष्टाचार से महंगाई बढ़ती है. मेरे विचार से भ्रष्टाचार महंगाई पर आश्रित नहीं है,महंगाई भ्रष्टाचार पर आश्रित है .ऐसे अभी भी प्रधान मंत्री की कुर्सी खाली नहीं है और मनमोहन सिंह जानते हैं कि वे जब तक मौन मोहन बने रहेंगे तब तक खाली करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी,इसीलिए औरों के साथ आपको भी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.

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