हास्य-व्यंग्य : काल के गाल में अकाल

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स्कूली दिनों में मास्साब ने घौंटा लगवा के याद करवाया था कि काल तीन तरह के होते हैं- भूतकाल,वर्तमानकाल और भविष्यकाल। सोचता हूं कि काल का कितना अकाल था उन दिनों। बस ले-देकर टिटरूंटू बस तीन ही काल। बस इनी के टेंटू लगाकर घूमो। प्रातःकाल,सांयकाल और रात्रिकाल बस सिर्फ और सिर्फ तीन ही काल। आज देखिए मार्केट में कितनी वेरायटी के काल एबिलेवल है। ट्रंककाल,मिसकाल,एलार्मकाल,हाक्सकाल और जैकाल। बस इनके जवाब में हमें तो अपने भोले-भंडीरी महाकाल का ही सहारा दिखाई पड़ता है,वही इनका कचूमर निकाल सकते हैं। मैं अभी भोलेभंडारे का भजन करने का मूड बना ही रहा था कि एक सरदारजी की ध्वनि सुनाई दी-पंडितजी सतश्रीअकाल। ये थे सरदार कालसिंह बग्गा। हमारे निकटतम पड़ौसी। वो जितने लोकल हैं,उतने ही वोकल हैं। पूछ बैठे- किस खुरपैंच मैं डूबे हो,पंजितजी। मैंने कहा- बचपन में मास्साब ने काल पढ़ाए थे। उनके बारे में ही सोच रहा हूं। सरदारजी ने दाढ़ी खुजाई और बोले- प्राजी सुबह-सुबह ये क्या कालसेंटर खोल कर बैठ गए। कब तक जुगाली करते रहोगे,मास्साब के चारे की। छड दो प्राजी। अब तो काल भी जनाना हो गया है..काल गर्ल…और वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। काल का ऐसा धांसू निकाल। बोले- चाहें प्रातःकाल हो,या सांयंकाल या रात्रिकाल मेरे मोबाइल पर या फिर लैंडफोन पर काल खुद आ के घंटी बजाता है। यही अपनी जिंदगी का स्वर्ण काल है। मैंने कहा- प्राजी आपने काल पर ऐसी हिट मारी कि साला काल भी सुपरहिट हो गया। बोले- भाईसाहब अपना तो हर आइडिया सुपरहिट ही जाता है। जो हिट नहीं जाता है,वो पिट जाता है, और जो ना हिट जाता है,न पिट जाता है,वो खुद ही मिट जाता है। उसे मिट भी जाना चाहिए। क्या फायदा जो न पिटे ,न हिटे अच्छा है कि वो खुद ही मिटे। मैंने कहा- ज्ञानीजी आपके ज्ञान की फाउंडेशन तो बड़ी मजबूत है। बोले- मजबूत न हल्की। सरदार कोई फांउडेशन नहीं लगाते। हां,मेरी बीवी के मेकअप की फाउंडेशन बहुत मजबूत होती है। हमेशा इंपोर्टेड फाउंडेशन ही यूज करती है। उसीके फाउंडेशन का कमाल है कि दीवारें भले ही हिल गई हों मगर दरवाजे आजतक झकाझक हैं.। मैंने कहा- अरे मैं बात काल पर कर रहा हूं और आप अपनी पत्नी की चर्चा ले आए। बोले- मैं कालहसबैंड और वो कालवाइफ। मैंने कहा कि ये काल हसबैंड क्या होता है। तो वो बोले कि- जब पत्नी काल करे, और हलबैंड हाजिर हो जाए, उसीको कहते हैं- काल हसहैंड।हमने कहा- कि और ये ये कालवाइफ। बोले- कि इत्ती-सी भी बात नहीं जानते हो। अरे मेरी बीवी है तो काल वाइफ ही कहलाएगी ना। शादी से पहले यही कालगर्ल होगी। अब तो काल वाइफ ही हुई ना। मैं सरदारजी के रूप में जिंदगी के गुप्तज्ञान का सजिल्द जघन्य संस्करण देखकर रोमांचित हो रहा था। क्योंकि काल की इतनी तत्काल व्याख्या सरदारजी ही दे सकते थे। वे जिस भक्तिभाव से अपनी धर्मपत्नी की कथा सुना रहे हैं,वो यकीनन इनके वर्तमान का भक्तिकाल चल रहा है। अगर मैंने इन्हें कालवाइफ का मौलिक एवं प्रामाणिक अर्थ बताने का दुस्ससाहस कर दिया तो अभी सरदारजी की जिंदगी का वीरगाथाकाल शुरू हो जाएगा। कहते हैं कि धुलने के बाद कपड़े और शादी के बाद पत्नी अपने असली रंग में आते हैं। पर शायद सरदारजी को सरदारनी ने इतना धोया था कि रंग पहचानने की उनकी क्षमता ऐसे गायब हो गई थी कि जैसे सरकारी दफ्तरों से ईमानदारी। सावन के अंधे को सिर्फ हरा ही दिखता है। सोचता हूं कि दुनिया में सब-कुछ हरा-ही-हरा देखने के कारण सरदारजी स्वयं ही हरे हो गए थे। निश्चित ही यह रचनात्मक कार्रवाई प्रकृति और प्रयावरण ने ही की होगी। किसी आदमी का इसमें कोई हाथ, संभावना या कुव्वत की कतई कहीं कोई गुंजाइश मुझे नहीं दिखती। अपनी दिलरुबा (कालवाइफ) के हंसीन सपनों के स्वीमिंगपूल में मुंगेरीलाल की तरह छपकोलियां खाते सरदारजी इससे पहले कि कोई घल्लूघारा करते मैंने कहा- मैं बात काल पर कर रहा था और आप अपनी पत्नी की चर्चा ले आए। बोले- मैं काल हसबैंड हूं। और वो काल वाइफ। जनम-जनम का बंधन। मैं बोला- शगल की बातें और अमल की बातें बिल्कुल अलग चीज़ है। कालवाइफ के शगल की जगह और कोई हादसा आपको याद आता हो तो, प्रकाश डालें। सरदारजी फूट-फूट कर हंसे और बोले- पंडितजी, अपने तो सारे हादसे अँधेरे के हैं। मेरा मतलब गुजरे वक्त की स्याह,अंधी सुरंगों में सब भटकते हुए घूम रहे हैं। हादसों की टेलेंट हंट करके अभी हादसा नंबर वन आपके सामने पेश करता हूं। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी जो भयावह बुद्दिमता और दुर्दांत प्रतिभा का परिचय दिया उससे उनकी कलई और पगड़ी दोनों खुल गईं। और मुझे भी ज़ोर का झटका ज़ोरों से लगा। मैंने कहा –हादसा सुनाइए। तो उन्होंने कहा, सुनिए- मेरे दादाजी गांव से आए थे। किसी ने उनकी राजी-खुशी पूछने को मेरे टेलीफोन पर फोन किया। मैंने कहा –दादाजी, आपका काल आया है। तो वे गुस्सायमान मुद्रा में बोले- काल मेरा आय़ा है,और बात तुझसे कर रहा है। तू क्या यमराज के स्टाफ में है। मुझसे बात करने में उसे शर्मं आ रही है। या फिर काल तुझसे सिफारिश लगवा रहा है कि दादाजी से कहो कि मेरे साथ चल दें। मैंने कहा- दादाजी, वो काल नहीं, मेरा मतलब है कि टेलीफोन पर आपका काल आया है। बोले- तो अच्छा शहर में काल भी माडर्न हो गया है। हमारे गांव में तो ये भैंसे पर आता था। आज टेलीफोन पर आया है। दादाजी मेरी सूचना सुनकर तुरंत भविष्यद्रष्टा हो गए। शून्य में देखते हुए कह रहे थे कि- अरे ओए, तू मुझे ऐसे क्यों घूर रहा है-जैसे कोई चींटा लड्डू को घूरता है। पता नहीं दादाजी का चैनल किस वेवलैंथ पर सैट हो गया था। मगर मैं उनका लाइवटेलीकास्ट सुन रहा था। यमदूत की आवाज आ रही थी- मैं तुझे चींटा नजर आ रहा हूं। दादाजी उसे हड़कारहे थे- तू आदमी तो है नहीं, औरत भी नहीं है। तू तो राजनीति का तीसरा मोर्चा है। न देवता, न राक्षस, न आदमी और ना जानवर। तेरे ही लिए तो लिखा गया है कि- न तू जमीं के लिए और न आसमां के लिए…तेरा वजूद तो है सिर्फ दासतां के लिए…। यमदूत गुस्से में फनफनाते हुए बोला- बुढऊ मैं इस वक्त आफीसियल टूर पर हूं। इसलिए तुझसे कोई पंगा नहीं लेना चाहता। इस पर दादाजी बोले- तू टूर पर है तो मैं भी कोयंबटूर में हूं। आओ दोनों मिलकर टूर-टूर खेलें। वो आग बबूला हो गया बोला- यमदूत से मज़ाक कर रहे हो,शर्म नहीं आती। मैं तुम्हारी जान लेने आया हूं। तुम्हें ठिठोली सूझ रही है। दादाजी उसे फटकार रहे है- मेरी जान को मरे तो पूरे पांच साल हो चुके हैं। और तू मेरी जान लेने आय़ा है। मुझे तो तू फ्राड नजर आ रहा है। चल मुझे आँख मत दिखा,पहले अपना आईकार्ड दिखा। दादाजी के तेवर देखकर यमदूत हकला गया,बोला- ये आईकार्ड क्या होता है। दादाजी ने उसे फटकारा- तू मेरी हजामत बनाए और साबुन भी मुझसे मांगे। ऐसे दानवीर तो शिकारपुर में ही बसते हैं। अब तू फूट वर्ना…मैं तेरी गर्दन काट डालूंगा। सा..ले…मैं प्रोफेशनल जल्लाद हूं। न जाने कितने तीसमारखां निबटाकर यमलोक पहुंचा चुका हूं। मुझे यहां सब लोग सम्मान से यमदूत कहते हैं। और एक तू है कि अपने को यमदूत बता रहा है। तुझे यहां कोई जानता तक नहीं। सुन, इधर इंडिया में लोकतंत्र है। संख्याबल इसमें सबसे बड़ा बल होता है। माथे पर बल मत डाल। जल्दी से अपनी संख्याबल निकाल। वर्ना निकल जा पतली गली से। अगर यहां झंझट में पड़ जाएगा,तो तुझे यमराज भी नहीं बचा पाएगा। मैं सर्वसम्मति से यहां यमदूत का पद संभाले हुए हूं। चल फूट यहां से। दादाजी के हड़काने से यमदूत वहां से कहां चल बसा। कोई नहीं नहीं जानता। पता नहीं काल के गाल में वह कहां समा गया। इसका पता ब्रह्मांड की सीबीआई भी नहीं लगा पा रही है। भूतकाल,वर्तमानकाल और भविष्यकाल सीबीआई के तीनों सेक्शन उसे ढ़ूंढ़ने में लगे हैं। और वह बिन लादेन की तरह कहीं गायब हो गया है। लगता है कि इस काल का भी कहीं इंतकाल हो गया है। गुमशुदा काल को प्रातःकाल से रात्रिकाल तक ढ़ूंढने में यमराज और उनके स्टाफ के सभी लोग निष्ठापूर्वक लगे हैं। लगता है, दादाजी कालकूट निकले जो काल को भी कूटकर पी गए। अब यमदूत नहीं किसी अकाल का ही भरोसा रह गया है जो दादाजी को सतश्री अकाल कहकर स्वर्ग के पर्यएटन के लिए खुशी-खुशी ले जा पाए।

1 COMMENT

  1. हास्य-व्यंग्य : काल के गाल में अकाल – by – पंडित सुरेश नीरव

    प्रातःकाल,सांयकाल और रात्रिकाल – सांयकाल में ही Good Night पंडित जी

    – अनिल सहगल –

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