हास्य-व्यंग्य : हैसियत नजरबट्टू की

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बैचेनियां समेटकर सारे जहान की,जब कुछ न बन सका तो मुझे कवि बना दिया।वैसे तो यह हर कवि का आत्मकथ्य है,जो जिंदगी के दंगल में चौतरफा शिकस्त हासिल करता है,वो जुझारू व्यक्ति अचानक कविता का मुकुट पहनकर साहित्य के सिंहासन पर उछलकर चढ़ जाता है ठीक वैसे ही जैसे कि शोले फिल्म में वीरू निराशा के निगेटिव जोश से भरकर पानी की टंकी पर चढ़ गया था। लोग मनाते हैं कि वह नीचे उतर आए,.वैसे ही गुस्सा खाए-कवियाए कवि को संपादक,प्रकाशक और यदि मंचीय कवि हुआ तो शुभचिंतक श्रोता उसे हूट कर-करके कविता की टंकी से उतारने के सारे ईमानदार प्रयास करते हैं। कुछ नाजुक दिल कलाकार तो जनता-जनार्दन की गुहार से पिघल कर चुपचाप कविता की टंकी से उतरकर अपने घर जाकर दुबक जाते हैं मगर कुछ जिद्दी किस्म के सिरफिरे टंकी को सिंहासन मानकर जिंदगी भर उसी पर चड़े उछल-कूद करते रहते हैं। हमारे नूतन कुमार नीच भी उसी नस्ल के टंकी-आरोही कवि हैं। जोकि टंकी पर चढ़े मुसलसल अपनी नौटंकी निर्बाध गति से पेले जा रहे हैं। जब मास्टरी और बैंक में चपरासीगीरी-जैसे प्रतिष्ठित टेलैंट हंट में नूतनजी प्रथम राउंड में ही एलीमिनेट कर दिए गए तो उनका असाधरण प्रतिभा का धनी होने का भ्रम दुर्दांत यकीन में बदल गया। और बस तभी से नूतनजी कविता कामिक्स के स्पाइडरमैन बन गए हैं। कहीं भी कविता पाठ हो रहा हो नूतनजी बिना आमंत्रण के सूंघते हुए वहां बैताल की तरह प्रकट हो जाते हैं। सूंघा शक्ति के मामले में नूतनजी दुनिया के किसी भी स्निफर डाग से इक्कीस ही पड़ते हैं। कितना भी दबा-छुपाकर कोई कवि सम्मेलन करे, नूतनजी वहां सबसे पहले बरामद हो जाते हैं। नूतनजी की कविताएं भले ही बासी होती हैं मगर नीचता के मामले में वे हमेशा ही नित नूतन रहते हैं। कवि बनने का होमवर्क नूतनजी ने बड़ी मेहनत से किया है। चांदनी चौक के पटरी बाजार को नूतनजी ने ऐसे खंगाला हुआ है जैसे शाहरुख खान को न्यूयार्क एअरपोर्ट पर अमेरिकन सुरक्षा अधिकारियों ने खंगाला था। सुरक्षा अधिकारियों को भले ही शाहरुख खान से कुछ बरामद न हुआ हो मगर नूतनजी को कबाड़ियों के यहां से मंचोपयोगी लतीफों की किताबों का विशाल जखीरा मुप्त में ही मिल गया। इनकी तो किस्मत ही खुल गई.। लतीफों के कारतूसों से लैस नूतनजी अब जैसे ही मंच पर आते हैं,तो शालीन कवि तो बेचारे एक चुटकी में ही शहीद हो जाते हैं। ठीक उसी तर्ज पर जिस तर्ज पर छत्तीसगढ़ में बिना वजह सीआऱपी एफ के जवान नक्सली सुरंग की चपेट में आकर शहीद हो जाते हैं। ऐसे ही नीचता और अश्लीलता के लतीफों की बिछाई बारूदी सुरंग के फटते ही तमाम कवि शहीद हो जाते हैं। कवि सम्मेलन की दुनिया में तालिबान,लश्कर और नक्सलियों के बने काकटेल से भी ज्यादा खूंखार हैं-नूतनजी। हमारे सब के प्यारे नूतनकुमारजी नीच। बड़े-बड़े रेशमी बाल, कजरारे-कजरारे नैना,कंधे पर झूलता झोला,मुंह में पानमसाले का भरा हुआ पावभर पीक। बड़ी ही मनोहारी छवि है हमारे नूतनजी की। और सबसे बड़ी बात ये कि ऐसी सुपर डीलक्स सजधज उनके अपने मौलिक सौंदर्यबोध का अजब-गजब नमूना है। इसके लिए मोहल्ले के किसी भी ब्यूटीपार्लर को कोई इल्जाम नहीं दिया जा सकता। पावभर पीक से लवरेज अपने मुखारविंद को नूतनजी कवितापाठ के समय माइक के सामने जब नजाकत के साथ खोलते हैं तो हठी और जिद्दी पीक भी कविता के साथ ही बाहर निकलने को मचल पड़ता है। नूतनजी ने गुटखा खरीदने में जो दो रुपए का आर्थिक निवेश किया हुआ है उसे एक अदना-सी कविता के खातिर जाया नहीं करना चाहते हैं। उनकी कोशिश यही रहती है कि हानिकारक कविता भले ही मुंह से बाहर निकल जाए मगर स्वास्थ्यवर्धक गुटखा-सिरप मुंह में ही रहे। इस कशमकश में मुंह से गुटखे का स्प्रे करते हुए नूतनजी का कवितापाठ पूरी सफलता के साथ मंच पर बैठे कवियों को भावविभोर भले ही न करे मगर पीकविभोर तथा श्रोताओं को बोर जरूर कर देता है। दस्तग्रस्त मरीज की तरह जब श्रोता अस्त-व्यस्त मुद्रा में हथेली पर जान और पेट में तूफान लिए पलायन की मुद्रा में होते हैं तब नूतनकुमार नीच उन्हें भारतमाता की सौगंध देते हुए राष्ट्रगीत पढ़ने का फरमान जारी कर देते हैं। सांप के मुंह में छछूंदर से ज्यादा मर्मांतक पीढ़ा की मनःस्थिति में श्रोताओं को डालकर नीचजी अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में फिर वहां से चल बसते हैं। नीचता के ऐसे तमाम नूतन नुस्खे इनके दिमाग की गुल्लक में हर वक्त खनखनाते रहते हैं। दुर्दांत आत्मविश्वास से लवरेज कविवर जब एक्सपायरी डेट निकल चुके लतीफों को कविता में ढालकर सुनाते हैं तो इनकी मुद्रा यूरेका-यूरेका चिल्लाते हुए आर्कमिडीज जैसी हो जाती है। जिसने नहाते हुए आपेक्षिक घनत्व का सिद्धांत खोज लिया ता और आविष्कारी आवेश में नंगा ही सड़क पर भाग आया था। कुछ उसी नस्ल का उत्साह नूतनजी के जाहिल जहन पर तारी हो जाता है। बासी चुटकुलों में से कविता का आविष्कार करके। लतीफों का चर्वा करना ये बड़ा दुरूह कार्य मानते हैं। इसलिए चुटकुलों के समुद्रमंथन से निकाली गईं अमृत तुल्य कविताऔं का पाठ करते समय नूतनजी के चेहर पर हजार वाट का तेज दिखाई देने लगता है। दस ग्राम प्रतिभा की अकूत बौद्धिक संपदा के बूते पर काव्यमंच पर नूतनजी जो तांडव करते हैं,उसके मद्देनज़र कविता के लिए भले ही न सही मगर मंच पर अभिनय के अभिनव प्रयोगात्मक अवदान के लिए जरूर बड़े निम्न भालों के साथ वे सदियों तक याद किए जाएंगे। नूतनजी की एक-एक हरकत हंसाने के मामले में हजार चुटकुलों की तासीर रखती है. कहा जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन्न। यानि व्यक्ति जैसा खाता है,वैसा ही हो जाता है। नीचजी ने इतने चुटकुलों का चरवा किया है कि उनका सारा व्यक्तित्व ही चुटकुलामय हो गया है। ओठ-चुटकुले,नाक-लतीफा,और ऐंचिकताना आंखें.हुमांयू के मकबरे की गुंबद-सी तोंद। चांदनीचौक-सी कमर। बरसात झेलती सड़क-से जर्जर गाल। इस दिव्य और भव्य रुप-रस राशि के क्या कहने। एक बार जब मंच पर नूतनकुमार नीचजी काव्यपाठ के लिए खड़े हुए और पहली पंक्ति पर आलाप लिया- बगिया में उतरा नया-नया बसंत है तो श्रोताओं ने पूरे सम्मान के साथ इन्हें हूट कर दिया। नीचजी को श्रोताओं का ये निश्छल प्यार इतना भाया कि भावुक होकर उन्होंने पांच-छह और कविताएं पढ़ने की मनोरंजक प्रतिज्ञा ले डाली। आयोजक का विरोधी खेमा जोकि कार्यक्रम की मट्टीपलीद होते देखना चाहता था,उसने नीचजी की घोषणा का नाच-नाचकर स्वागत किया और जो कार्यक्रम का ऐसा वीभत्स क्रियाकर्म नहीं देखना चाहते थे,उसने इस जानलेवा प्रस्ताव का पूरे दम-खम से विरोध किया। सात्विक श्रोताओं ने टमाटर और तामसी श्रोताओं ने अंडों की श्रीवर्षा कर भावनात्मक एकता का परिचय देते हुए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपेट आनंद लिया। ऐसे मौके देश में कम ही आते हैं जब हर डिजायन के विद्वान एक साथ मिलकर किसी अभियान में शामिल हों। नूतनजी की नीचता ने उन्हें एकता के(एकता कपूर नहीं) सूत्र में बांध दिया। कवि सम्मेलन का पांडाल संसदीय दृश्यों से भरपूर लवरेज होकर छलका-छलका जा रहा था। श्रोताओं की मौलिक एवं अप्रकाशित गालियां किसी मंत्रालय की महत्वपूर्ण सूचनाओं की तरह रिस-रिसकर बाहर आ रही थीं। नूतनजी को श्रोता ऐसा मानकर चल रहे थे मानो कोई कम्युनिस्ट नेकर पहनकर आरएसएस की शाखा में घुस आए और पहचान लिया जाए। बड़ा ही रोमांचक दृश्य उत्पन्न हो गया था। एक-दो कवि इस बात को लेकर नीचजी से इतने घनिष्ठ संबंध बना चुके थे कि उन्हें छुड़ाने में दस आदमियों का दस्ता जूझ रहा था।. उनका आरोप था कि जिन चुटकुलों को हम सुनाते हैं,उन्हीं चुटकुलों को नीचजी ने सुनाकर अभूतपूर्व नीचता का प्रदर्शन किया है। इन कवियों की मांग थी कि इस नृशंस अपराध के दंडस्वरूप नीचजी को उम्रभर के लुए काव्यमंचों से प्रतिबंधित कर दिया जाए। उधर नूतनकुमार नीचजी हाथ हिला-हिलाकर चिल्ला रहे थे कि- इन कवियों ने भी चुटकुले उसी किताब से मारे हैं,जिससे कि हमने। सबूत के लिए वह फुटपाथ से खरीदी चुटकुलों की एतिहासिक पुस्तकों को हवा में लहरा रहे थे। कह रहे थे चुटकुलों की दुनिया में इस किताब की वही हैसियत है जो धर्म में रामचरितमानस की। अब किताब के साथ-साथ दो कवियों की इज्जत भी नीचजी के पवित्र नीच हाथों में आ गई थी। वे जोर-जोर से किताब के मूल अंश सुनाने में लगे थे। इसका चमत्कारी प्रभाव यह हुआ कि सारे श्रोताओं के सामने वे दो कवि सरकारी हैंडपंप के टूटे हुए हैंडिल की तरह नीचजी के चरणों में झुक गए। इस टोटके से पांच मिनट पहले श्रोताओं से पिट रहे नूतन कुमार नीचजी अचानक ऐसी स्थिति में आ गये मानो मंत्रीपद के शपथग्रहण हेतु राष्ट्रपतिभवन से उन्हें न्योता आ गया हो। नीचजी के ऐसे ही चमत्कारी चक्करों ने इन्हें ऐसा आई.ए.आई.मार्क्ड चक्रधारी बनाया है कि अब वे कवियों के अभिनंदन में भी पुष्पगुच्थ की जगह पुष्पचक्र लेकर ही पहुंचते हैं। नीचजी आज साहित्यिक समारोहों की ऐसी जरूरत बन गए हैं जैसे कि मंत्री के लिए लालबत्ती की गाड़ी। मंत्री अगर लाल बत्ती की गाड़ी में न बैठा हो तो कौन समझेगा कि वह मंत्री है। वैसे ही अगर हाल में मंच पर माइक,मसनद और कैमरा सब कुछ हो मगर मंच पर नीचजी न हों तो उस कविसम्मेलन को कविसम्मेलन कौन मानेगा। जैसे नए मकान को बुरी नजर से बचाने के लिए बाहर नज़रबट्टू टांगा जाता है,वैसे ही कविसम्मेलन की सफलता के लिए मंच पर नीचजी को रखा जाता है। काव्य-मंचों पर नजरबट्टू की हैसियत हासिल करली है-नीचजी. ने। अगर आप कोई कवि सम्मेलन धरती,आसमान या पाताल कहीं भी करें तो बुरी नजर से बचने के लिए नजरबट्टू यानि नूतनकुमार नीतजी को बुलाना मत भूलिएगा।

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