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हास्य-व्यंग्य : झगड़े का एजेंड़ा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कल सबह-सबह दरवाजे पर घंटी बजी। मुझे झुंझलाहट हुई कि इतनी सुबह-सुबह कौन मेरे घर सिधार गया। सोचा शायद दूधवाला हो। मैं दूध का बर्तन लिए लपककर दरवाजा खोलता हूं। मगर दिन का भ्रूणावस्था में ही सत्यानाश करनेवाले सज्जन पारंपरिक शैली के दूधवाले नहीं थे।. वैसे थे वे भी दूधवाले…