सांप्रदायिक शक्तियों को पहचानती है देश की जनता

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-तनवीर जाफ़री

राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों देश के सभी राज्‍यों के पुलिस महानिदेशकों के एक सम्‍मेलन में केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने देश में बढ़ रहे ‘भगवा आतंकवाद’ के खतरों के प्रति चिंता क्या व्यक्त कर दी कि मानो उन्होंने कोई बहुत बडा अपराध कर दिया हो। अतिवादी हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेताओं व संगठनों को गृह मंत्री द्वारा प्रयोग किया गया शब्द ‘सैफ़रॉन टेरोरिम’ अर्थात भगवा आतंकवाद बहुत बुरा लगा। इतना बुरा कि भारतीय जनता पार्टी ने संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे को उठाया तथा गृह मंत्री को खरी खोटी सुनाई। यहां यह बात काबिले ग़ौर है कि गृहमंत्री के भगवा आतंकवाद शब्द का विरोध वही शक्तियां कर रही थीं जो इस्लामी आतंकवाद तथा जेहादी आतंकवाद अथवा मुस्लिम आतंक जैसे शब्दों का प्रयोग ढोल पीट पीट कर करती हैं। परंतु इन्हीं लोगों को भगवा शब्द जोकि वास्तव में एक रंग विशेष को कहा जाता है, के साथ आतंकवाद का शब्द जोड़ने पर आपत्ति हुई। गोया इन दक्षिणपंथी शक्तियों ने भगवा रंग को अपने पक्ष में कॉपी राईट कर लिया हो।

बहरहाल शाश्वत सत्य तो यही है कि आतंकवाद, आतंकवाद ही होता है। न उसका किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ग, वर्ण तथा रंग से कोई वास्ता होता है। न ही कोई संप्रदाय विशेष अपने अनुयाइयों को आतंकवाद के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है। परंतु इन सब बातों को समझने-बूझने के बावजूद आज देश व दुनिया में इस्लामी आतंकवाद जैसे शब्द का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि मैं स्वयं अपने तमाम आलेखों में यह शब्द कई बार प्रयोग कर चुका हूं। सवाल यह है कि क्या इन शब्दों के प्रयोग करने मात्र से कोई समुदाय या धर्म आतंकी हो जाएगा? शायद हरगिज नहीं। परंतु इससे भी बड़ा सवाल यह जरूर उठता है कि आज दुनिया में किन परिस्थितियों के तहत इस्लामी आतंकवाद या जेहादी आतंकवाद जैसे शब्दों को उछाला जा रहा है। कौन सी तांकतें इन शब्दों के प्रचलित होने में अपना अहम योगदान दे रही हैं? मैं यह मानता हूं कि इस्लाम धर्म का विरोध करने में तथा इसकी बदनामी पर खुश होने में दिलचस्पी रखने वाले लोग ऐसे शब्दों का जानबूझ कर बार-बार प्रयोग करते हैं। परंतु मेरे जैसी सोच रखने वाला व्यक्ति इन इस्लाम विरोधी शक्तियों की इन कोशिशों का हरगिज बुरा नहीं मानता। मुझे तो उन बुनियादी कारणों पर नार डालनी होती है जिसके चलते इस्लामी आतंकवाद जैसे शब्द प्रचलन में आए। इस्लाम विरोधी ताकतों का इसमें क्या दोष। यह तो नीतिगत परिस्थितियां हैं जिसमें कि किसी भी दुश्मन को मौके क़ी तलाश होती है अर्थात् सबसे बड़ा दोषीवह जोकि ऐसा अवसर प्रदान करे।

तालिबान व अलकायदा जैसे आतंकी संगठन तथा इन संगठनों की विचारधारा का समर्थन करने वाली अतिवादी शक्तियां निश्चित रूप से देखने व सुनने में मुसलमान ही हैं। यह भी सच है कि इन संगठनों तथा इन जैसे और तमाम आतंकी संगठनों से जुड़े लोग स्वयं को सच्चा इस्लामपरस्त भी बताते हैं। ऐसे में यदि इनके द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद को इस्लामी आतंकवाद का नाम मीडिया द्वारा अथवा इस्लामी विरोध की ताक में बैठी ताकतों द्वारा दिया जा रहा है तो इसमें मीडिया अथवा इस्लाम विरोधियों का दोष कम स्वयं उन तथाकथित मुसलमानों का अधिक है जो आतंकवाद जैसे बुनियादी इस्लाम विरोधी उसूलों पर चलते हुए भी स्वयं को इस्लाम परस्त तथा मुसलमान कहने से बाज नहीं आते।

यहां एक बार फिर इस्लामी इतिहास का वही उदाहरण दोहराने की जरूरत महसूस हो रही है जो मैं अपने आलेखों में प्राय: लिखता रहता हूं। अर्थात् 1400 वर्ष पूर्व की करबला की ऐतिहासिक घटना। एक ओर सीरियाई शासक याजीद जोकि स्वयं को मुसलमान भी कहता था, नमाजी भी बताता था तथा इस्लामी देश का शासक होने की तमन्ना भी रखता था। तो दूसरी ओर हजरत इमाम हुसैन अर्थात् इस्लाम के प्रर्वतक हजरत मोहम्‍मद के सगे नाती। करबला में याजीद की सेना ने हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 परिजनों व साथियों को कत्ल कर दिया। इस घटना का सार यह है कि हजरत हुसैन ने क्रूर, दुष्ट, अधर्मी, दुश्चरित्र तथा एक अहंकारी तथाकथित मुस्लिम बादशाह याजीद को इस्लामी राष्ट्र का बादशाह स्वीकार करने के बजाए उसके हाथों स्वयं शहीद होकर हजरत मोहम्‍मद के उस इस्लाम को जीवित रखा जो आज दुनिया का सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। अब यहां इस्लाम धर्म के आलोचकों तथा विरोधियों को स्वयं यह फैसला करना चाहिए कि करबला में वास्तविक इस्लाम धर्म का वास्तव में प्रतिनिधित्व कौन कर रहा था? याजीद या हुसैन? आज दुनिया याजीद को इस्लाम धर्म का वास्तविक रहनुमा स्वीकार नहीं करती। यदि ऐसा होता तो निश्चित रूप से इस्लाम पर एक आतंकी धर्म होने का ठप्पा लग गया होता। परंतु न ऐसा हुआ न ऐसा है। आज दुनिया हजरत इमाम हुसैन की शहादत के आगे नतमस्तक है तथा केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोग हजरत इमाम हुसैन को ही इस्लामिक, धार्मिक प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करते हैं। प्रत्येक वर्ष मोहर्रम के अवसर पर हजरत हुसैन को अलग-अलग तरीकों से याद करना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।

क्या इसी नारिए के साथ भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद के विषय पर चिंतन करने की जरूरत नहीं है? बजाए इसके कि आप गला फाड़-फाड़ कर यह चिल्लाएं कि हमें यह मत कहो, हम ऐसे नहीं, हम वैसे नहीं? आज जब कभी भी देश की पहली बड़ी राजनैतिक हत्या अर्थात् राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कत्ल की बात आती है तो उंगली किस ओर उठती है? देश में आतंकवादी हमले जब भी कहीं होते थे तो आंख बंद कर देश का सारा मीडिया, दक्षिणपंथी तांकतें तथा मैं स्वयं भी सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद को कोसने लगते थे। यहां तक कि उन लगभग आधा दर्जन से अधिक आतंकवादी घटनाओं के लिए भी जिनमें कि भगवा आतंकवाद की कारगुजारियों के स्पष्ट प्रमाण मिल रहे हैं। परंतु जब जांच पड़ताल के बाद अब इन दक्षिणपंथी शक्तियों के चेहरे बेनंकाब हो रहे हैं तो यही तांकतें इस बात का बुरा मान रही हैं कि हम पर उंगली मत उठाओ। हमारे देश की सेना दुनिया की सबसे बड़ी उन धर्मनिरपेक्ष सेनाओं में एक है जिसमें परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद सहित देश के सभी धर्मों व संप्रदायों के लोगों ने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जानें न्यौछावर कीं। आज इसी सेना के एक दक्षिणपंथी सोच रखने वाले अधिकारी कर्नल पुरोहित ने हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष सेना को दांगदार करने का प्रयास किया है। जिस देश में महान संत तथा भगवान राम के अवतार माने जाने वाले संत रामानंदाचार्य ने कबीर जैसे मुस्लिम जुलाहे को अपना शिष्य बनाकर सर्वधर्म समभाव की शिक्षा देने का संदेश दिया हो उसी धर्म के दयानंद पांडे तथा साध्वी प्रज्ञा जैसे चंद भगवाधारी साधुओं ने अपनी काली करतूतों से हिंदू धर्म की परंपरा को कलंकित करने का प्रयास किया है। स्पष्ट है कि यह तथाकथित साधु व साध्वी भगवाधारी ही हैं।

मैं डंके की चोट पर यह बात कह सकता हूं और पहले भी कई बार यह लिख चुका हूं कि विश्व में हिंदू धर्म से अधिक सहिष्णुता रखने वाला धर्म कोई भी नहीं है। शायद इसी कारण हजरत इमाम हुसैन ने भी याजीद के समक्ष लड़ाई टालने की गरज से यह प्रस्ताव रखा था कि वह उन्हें भारत जाने दे। आज हजरत निजामुद्दीन वाजा, मोईनुद्दीन चिश्ती तथा बाबा शेख़ फ़रीद जैसे तमाम पीरों-फ़क़ीरों की दरगाहों पर पसरी रौनक़ हिंदू सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल पेश करती हैं। ऐसे में यदि उस विशाल ह्रदय रखने वाले विश्व के सबसे सहिष्णुशील धर्म पर उंगली उठने की नौबत आए तो एक भारतीय होने के नाते मुझे भी बहुत अफसोस होता है। परंतु मैं इन दक्षिणपंथी शक्तियों की तरह राजनैतिक स्टंट के रूप में हाय वावैला करने के बजाए उसी इस्लामी आतंकवाद के नामकरण के कारणों की तरह ही भगवा अथवा हिंदू आतंकवाद के शब्द के विषय में भी यही सोचता हूं कि आखिर ऐसा कहने की नौबत क्यों आ रही है। देश वासी प्रमोद मुत्ताली नामक उस असामाजिक तत्व से जरूर वाकिफ होंगे जो भगवा रंग के झंडे भी प्रयोग करता है तथा उसने अपने संगठन का नाम श्री राम सेना भी रखा हुआ है और फिर उस श्री राम सेना प्रमुख का वह स्टिंग आप्रेशन भी याद कीजिए जिसमें उसे पैसे लेकर सांप्रदायिक दंगे कराने की बात स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। क्या ऐसे अराजक तत्व को यह अधिकार है कि वह अपने संगठन का नाम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जैसे त्यागी व तपस्वी महापुरुष के नाम से जोड़कर रखे?

दरअसल देश की जनता इस प्रकार के राजनैतिक हथकंडों से बखूबी वाक़िंफ है। गांधीजी की हत्या से लेकर गुजरात के दंगों तक सब कुछ देश के सामने है। 1992 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा संविधान तथा लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने की घटना भी देश देख चुका है। यदि इन दक्षिणपंथी शक्तियों के आडंबरों अथवा पाखंडों में लेशमात्र भी सच्चाई होती तो भारतीय मतदाता इन्हें तीन सौ संसदीय सीटें देकर अब तक संसद में भेज चुके होते। परंतु भारतीय मतदाताओं ने इनके राम नाम रूपी उस दोहरे चरित्र को भी देख लिया है जबकि भगवान राम के नाम पर 183 सीटें लेकर यह संसद में पहुंचे परंतु सत्ता की लालच में राम नाम का त्याग कर उन्हीं ‘सेक्यूलरिस्टों’ से हाथ मिला लिया जिन्हें यह जनता के समक्ष राम विरोधी, हिंदुत्व विरोधी तथा कभी-कभी राष्ट्र विरोधी भी बता दिया करते थे।

आज एक बार फिर वैसी ही कोशिशें जारी हैं। अपनी कमियों व नकारात्मक नीतियों में सुधार लाने के बजाए फिर हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का असफल प्रयास किया जा रहा है। परंतु अब बार बार ऐसे प्रयास संफल कतई नहीं होने वाले। हां इन दक्षिणपंथी शक्तियों के इस प्रकार हाय वावैला करने से देश में तनावपूर्ण माहौल जरूर पैदा हो सकता है। और इस प्रकार की परिस्थितियां निश्चित रूप से राष्ट्र के विकास में बाधक हैं। यदि यह शक्तियां वास्तव में देश का विकास चाहती हैं तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्वयं को पैरोकार समझती हैं तो उन्हें देश की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को समझना व अपनाना होगा तथा बेवजह चीख़ने चिल्लाने के बजाए अपनी कमियों को दुरुस्त करना होगा।

6 COMMENTS

  1. सबका विरोध भगवा शब्द उपयोग करने से है । भगवा न केवल इस देश के साधू संतो बल्कि स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का रंग है – ” मेरा रंग दे बसंती चोला “। इस रंग का उपयोग राष्ट्रिय झंडे में होता है ।न केवल राष्ट्रिय झंडे बल्कि काँग्रेस और बीजेपी भी इसे अपने झंडे में प्रयोग करती हैं । चिदम्बरम को शायद इस रंग का मतलब और संदर्भ नहीं मालूम इसलिए ऐसी टिप्पणी कर बैठे।
    दरअसल चिदम्बरम स्वामी अग्निवेश के ज्यादा संपर्क में रहते हैं। लगता है इन स्वामी जी से निरंतर मिलने के कारण ही चिदम्बरम को भगवा आतंकवाद(नक्सली समर्थक) का ध्यान आया होगा।

  2. भाई जाफरी जी अप जरा जल्दी में है अभी कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर पैर आरोप प्रमादित नहीं हुए है जबकि अफजल गुरु को सालो पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सालो पहले फासी की सजा सुना दी है अगेर अपलोगो के अंदर नैतिकता का शतांस भी हो तो क्यों नहीं सर्कार से मग करते की हमारे वोते की चिंता छोडी और उसे फासी दीजिए अफ़ी लोगो के किये पिचले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों के वोते के लिए लालू और पासवान ओसामा–बिन–लादेन का दुप्लिकते ले केर घूम रहे थे और हगने–मुतने पैर फतवा जरी करने वाली जमात इस मुद्दे पैर कोई न तो फतवा दिया और न ही इसकी आलोचना की पुरे विश्व में जहा भी मुस्लमान बहुमत में है वह तानाशाही के झंडे के नीचे घुट रहे है और जहा लोकतान्त्रिक अधिकार प्राप्त है अल्पसंख्यक है रोना रोते पाए जाते है.क्या किसी प्रतिष्ठित मुस्लिम संघटन ने कश्मीरी पंडितो जिन्हें धार्मिल करदो से कश्मीर से बहार किया गया है,अज एक पूरी पीठी निकल गयी लेकिन अप्माहनुभावो से उनके लिए एक शब्द नहीं निकला.अभी केरल में जिस तरह का ड्रामा म्म्म्मौर प्रशासन को धमकाने का कार्य किया उसपर किसी मुस्लमान ने आलोचना के दो शब्द भी नहीं कहे.आपलोग खाद एक बंद समाज हो घेते में रहते हो अपने पूर्वजो को भूल केर गिरो की खून की पदिस बताते हो जब की तुमलोगों का डी एन.ऐ एक है.इसी इतिहास बिहिनाता से अज पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र बना हुआ है.अतिवादी हर जगह होते है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की सभी हिन्दू अतिवादी है नाथूराम गोडसे अतिवादी था लेकिन उससे भाजपा.क्या आर.एस.एस.से कोई सम्बन्ध साबित नहीं हुआ हुसैन ने अपनी कुंठा निकली और हिन्दू देविओ की नंगी तस्वीरे बने.उनके विरुध्ध न्यायलय में वाद दायर है लेकिन हुसैन वाद का samna kerne की जगह bhg gaye और apjaise shantpriy लोगो ने tasliima nasriin jo हमारे desh की atithi thi unhe mar–peet केर bhagna पैर majboor किया आपलोग क्यों नहीं मुस्लिम tushtikaran पैर awaj uthate हो जब की यह spasht है की मुस्लिम tushtikaran से ही sampradayikta को khd–pani milata है.मुस्लमान jabtak sttarudh party की god में baith केर ingan के dibbe की तरह thok में वोते karata rahega uske sath aisa ही hoga.

  3. देश के विद्द्वान वित्तमंत्री ने जो कहा यदि वह उसके शब्द चयन से आगे अभिव्यंजना में निहित तात्विक अर्थ को लिया जाये तो सच के सिवा उन्होंने कुछ भी नहीं कहा .
    तनवीर जाफरी जी का आलेख जहाँ एक ओर दक्षिण पंथी फासिस्ट राजनीती को उधेड़ता हुआ नजर आता है ,वहीँ दूसरी ओर देश की अमन पसंद जनता में सर्व धर्म समभाव और भाई चारे की स्थापना की सम्भावनाएं निरुपित करता है .बधाई .

  4. Ravan was also a Bhagwa dhari for a short while. That does not mean that he polluted the qualities of Bhagwa color. Bhagwa color is so powerful that it changed even Ravan – For as long as Ravan was wearing Bhagwa he could not abduct Sita. Goswami Tulasi Das Ji has writtten very clearly:
    “Tab Ravan Nij RUp Dikhava, Bhayee Sabheet Jab nam sunava”

    Ravan could only abduct Sita when he gave up Bhagwa color clothes and came back in his own original form.

    Mr Tanveer Jafari may not understand this but I want to convey to all readers not to get swayed by this article. Bhagwa color is the color of renunciation, knowledge, and purity. Mr. Chidambaram is either trying to be cunning and eyeing 20% muslim votes by issuing such statements or is plain ignorent of the culture of his own country.

    I denounce both Mr Chidambaram and Mr Tanveer Jafari for their malicious intentions.

  5. आप कितना भी गला फाड़ें| आतंकवाद की जड़ सब जानते हैं | कांग्रेस ऐसे अवसरवादी हिन्दुओं का दल है, जिसे आप घर का भेदी लंका ढाए मान सकते हैं. कांग्रेस अपने वोट बैंक पर से आतंकवादी का ठप्पा हटाने के लिए ये चाल चल रही है.
    विपक्ष इस रावन रुपी सेना की करतूतों को उजागर करने मैं नाकाम हो रहा है. जिस दिन भगवा क्रांति का बिगुल बजा उस दिन ये गला फाड़ने वाले चूहे अपनी आत्महत्या कर लेंगे.

  6. श्रीमान जाफरी जी, पी. चिदंबरम जी कोई आम इंसान नहीं है,वो हमारे देश के वित्त मंत्री है,उनकी जुबान से निकला एक एक शब्द मायने रखता है अतः उन्हें सोच समझ के बोलना चाहिए.

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