सियासत ने बोया तो भीड़ ने काटा मालदा और पूर्णिया

हिमांशु तिवारी आत्मीय

जहरीली जुबां के साथ सियासत दां अपनी महफिलें सजाते हैं, माहौल की सरगर्मियां बढ़ाते हैं लेकिन जुबानी जहर के कष्टदायक फफोले जिनके हिस्से आते हैं उसे जनता कहते हैं. जो कलामों में लिखी उन तमाम गुजारिशों, इबारतों को भूल जाते हैं जिसमें चैन ओ अमन का जिक्र है और भेड़चाल में चलकर इंसानियत की हत्या करने को उतारू हो जाते हैं उसे भी जनता कहते हैं. दरअसल इसके दो जीते जागते उदाहरण हैं. एक को मालदा के तौर पर अपने जहन में तस्वीर बनाकर सीखचे में ठूंस ठूंस कर सेट कर लीजिए और दूसरा बिहार के पूर्णिया के रूप में समझ लीजिए. महज बयान या कहिए एक बहाने ने खुद को इंसानियत से अलग एक धर्म में फिट करते हुए मालदा तैयार कर दिया. निश्चित तौर पर बयान बेवकूफाना ही नहीं बल्कि आस्थाओं के साथ खिलवाड़ था. लेकिन सियासत के चंद प्यादों के चक्कर में बिरादरियों में मतभेद….कुछ असहज सा है. मालदा के थानों ने मुंह पर डर की उंगली रखकर सरकारों की हकीकत बता दी. मजहबों में असल में कितनी मुहब्बत या सामंजस्य है इसको आग की तपन से खाक हो चुकी गाड़ियों ने समझा दिया. इन सबके इतर जो समझाया गया वो थी जिम्मेदारों की असलियत. प्रशासन की ऐसे मामलों के प्रति गंभीरता, पूर्व तैयारी लगभग सभी की कलई खोल कर रख दी. maldaधर्म का खंजर मालदा में ही नहीं बल्कि बिहार के पूर्णिया को भी बंजर कर मंजर शब्द को परिभाषित कर गया.

जहरीले बयानों ने सुपुर्दे खाक कर दी इंसानियत

क्या हुआ मालदा में-

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश तिवारी के एक आपत्तिजनक बयान के चलते करीबन ढ़ाई लाख मुसलमानों ने बयान की खिलाफत करते हुए रैली निकाली. रैली के दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी. भीड़ ने दर्जन भर से ज्यादा गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. इन सबके इतर मालदा जिले के कालियाचक पुलिस स्टेशन पर हमला किया. जिसके बाद प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए धारा 144 लगा दी. जानकारी के मुताबिक पूरे मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार कर उन पर गैरजमानती धाराएं लगाई गई हैं.

बिहार के पूर्णिया में हिंसा या कहें मालदा पार्ट- 2

पूर्णिया में गुरूवार को ऑल इंडिया इस्लामिक काउंसिल की अगुवाई में मुस्लिम समुदाय के करीब 30 हजार लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. दरअसल मालदा की आग की चंद चिंगारियों को हवा देते हुए कहीं न कहीं पूर्णिया में सामंजस्य को फूंकने की कोशिश की जा रही थी. इन सबके बीच मुद्दा फिर से कमलेश तिवारी का पैगंबर मुहम्मद साहब पर की गई वो आपत्तिजनक टिप्पणी थी. प्रदर्शन में शामिल हुए नारेबाज बुलंद आवाजों में कमलेश तिवारी को फांसी दो की मांग कर रहे थे. इस दौरान कमलेश तिवारी का पुतला फूंका गया और भीड़ हिंसक हो चली. पुलिस थाने पर हमला हुआ, कंप्यूटर, फर्नीचर को तोड़ डाला. पुलिस की गाड़ियों को भी आग के सुपुर्द कर दिया गया.

इन दोनों घटनाओं के जरिए बता दिया गया कि सियासी बयानों के आगे कितना बौना है प्रशासन. खाकीधारी एक बार फिर से लाचार नजर आए. सरकार और अधिकार के बीच खुद को खुद से रूबरू कराते दिखे.

किसने रचा खौफनाक मालदा और बिहार का पूर्णिया

कभी कारगिल के जवानों को धर्म के झंडे में लपेटकर जीत पर हक नहीं बल्कि देश की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश की जाती है तो कभी पेरिस में हुए हमले को एक्शन का रिएक्शन बताकर मृतकों के परिवारवालों के दर्द को फिर से जीवित कर दिया जाता है. दरअसल हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के कद्दावर मंत्री आजम खां की. 29 नवंबर 2015, एक ऐसी तारीख जब आजम ने गे राइट्स के संदर्भ में बताते हुए कहा कि आरएसएस वाले ऐसे ही हैं इसीलिए तो शादी नहीं करते. जिसके बाद प्रतिक्रिया में कमलेश तिवारी ने पैगंबर मोहम्मद साहब पर विवादित बयान दिया.

सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुई टिप्पणी

हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश तिवारी का पैगंबर मुहम्मद साहब पर दिया गया विवादास्पद बयान सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होता रहा वहीं आजम खां का बयान तमाम विवादित बयानों की फेहरिस्त में खो गया. मुस्लिम धर्म गुरूओ का ध्यान भी कमलेश तिवारी के बयान के ऊपर गया, दूसरी ओर उर्दू मीडिया में तिवारी का बयान भी प्रमुखता से छापा गया. 2 दिसंबर को सहारनपुर के देवबंद में बयान के विरोध में एक बड़ा प्रदर्शन किया गया. दरअसल यह पहली प्रतिक्रिया थी. लोगों की भावनाओं को आहत करने एवं लोगों के गुस्से के मद्देनजर कमलेश तिवारी को अरेस्ट कर लिया गया. सूबे के मुखिया अखिलेश यादव ने कमलेश तिवारी पर कड़ी कार्यवाही करने का मुस्लिम धर्मगुरूओं को आश्वासन भी दिया.

आजम को क्यों भूल गए

निश्चित तौर पर कमलेश तिवारी को पैगंबर मुहम्मद साहब के अपमान के लिए सजा मिलनी चाहिए. सजा के रूप में तिवारी को अरेस्ट भी कर लिया गया. लेकिन सवाल ये भी उठता है कि जहां से इस मामले को पहली चिंगारी मिली कार्यवाही तो उस सिरे से लेकर आखिरी कोने तक होनी चाहिए. फिर सूबे की सरकार क्यों कानून नियम, कायदों में असफल साबित हो रही है. या फिर एकतरफा व्यवहार कर रही है. क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि आजम सपा के कद्दावर मंत्री हैं. या फिर इसलिए कि अल्पसंख्यकों के वोटों का कहीं ध्रुवीकरण न हो जाए.

खुलेआम सिर कलम करने का किया गया ऐलान

क्या इस पर नहीं होनी चाहिए थी कार्यवाही

लोगों का मानना है कि कमलेश तिवारी ने आस्था पर प्रहार कर उनके ह्दय को चोट पहुंचाई लेकिन लोकतंत्र की दुहाई देने वाले इस देश में सिर कलम करने का फरमान जारी कर दिया जाता है. जिसके बाद भी प्रशासन चुप्पी साधे रहता है. क्या यही है न्यापालिका, कानून का असल चेहरा. सीधे सीधे खुलेआम धमकी दी गई जान से मारने की. पर क्या हुआ. अब जान से मारने की धमकी पर किसी को धाराएं क्यों नहीं याद आ रही हैं. बहरहाल न्याय को हर तरह से पूर्ण होना जरूरी है. कहने का आशय यही है कि बिंदुवार हर आरोपी पर कार्यवाही होनी चाहिए, जिसके साथ ही उन्हें पता चल जाए कि अब ऐसी गलती नहीं दुहरानी है अगर दुहराई गई तो भारत का कानून उनको उचित सजा जरूर देगा. जहां कोई सिफारिश नहीं चलेगी.

सिर कलम और 51 लाख

बिजनौर में कलेक्ट्रेट के बाहर हुई सभा में जमीअत शबाबुल इस्लाम के वेस्ट यूपी महासचिव और जामा मस्‍जिद के इमाम मौलाना अनवारुल हक ने कहा कि बिजनौर जिले के उलेमाओं ने निर्णय लिया है कि अगर कमलेश तिवारी को सजा नहीं मिलती है तो वे उसे खुद सजा देंगे. उन्होंने कहा कि कमलेश तिवारी का सिर कलम करके लाने वाले व्यक्ति को बिजनौर के मुसलमान 51 लाख रुपए का इनाम देंगे. धरना प्रदर्शन के बाद सीएम के नाम संबोधित एक ज्ञापन मजिस्ट्रेट को सौंपा गया, जिसमें कमलेश तिवारी को फांसी दिलाए जाने की मांग की.

कैसे हो सकती है कार्यवाही
· खुलेआम मौत का ऐलान करने पर 506 IPC के तहत कार्यवाही की जा सकती है.

· किसी पर निजी टिप्पणी करने पर 504 IPC के तहत कार्यवाही की जा सकती है.

· जाति, धर्म पर टिप्पणी करना 295 IPC के अंतर्गत आता है.

पश्चिम बंगाल के मालदा और बिहार के पूर्णिया में हुई घटना के बाद चंद सवाल उठने लगने लगते हैं. पहला तो ये कि कौन सी वजह है कि भीड़ हिंसक हो उठी ? किन लोगों ने अपने अनैतिक हितों को साधने के लिए भीड़ का इस्तेमाल किया ? इन सारे सवालों पर जब हमने जानकारों से बात की तो कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आईं.
1. भीड़ का न तो कोई चेहरा होता है और न ही खुद का दिमाग. असंवेदनशील दिमागों के साथ भीड़ खुद को जोड़कर गलत सही का निर्णय नहीं कर पाती.

2. भेड़चाल में चलने वाले लोग हिंसक घटना में खुद को शामिल करने में बिलकुल भी नहीं हिचकिचाते.

3. शांतिपूर्वक तरीका उत्पात से हर मायने में बेहतर है, समाधान होने के अवसर के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो जाती है.

4. निजी जीवन में बेहद शांत रहने वाले लोग भीड़ में शामिल होकर हिंसक हो जाते हैं.

मालदा में हो चुकी घटना के बाद बिहार के पूर्णिया में प्रदर्शन की इजाजत प्रशासन की सोच पर सवाल खड़े करती है. दूसरी ओर हिंसा जैसी स्थिति पर नियंत्रण पाने की तैयारियों में कमी को भी साफ तौर पर दर्शाती है. पर कार्यवाही को हर उस बिंदु से छू कर गुजरना होगा जो इस हिंसा की वजह बना. फिर उसमें क्या नेता और क्या कार्यकारी अध्यक्ष. इन सबके इतर हत्या का ऐलान करने वालों पर भी सख्त से सख्त कदम उठाने होंगे. ताकि सांप्रदायिकता जैसे अल्फाज को अस्तित्व से खत्म कर सामंजस्य के खुले आसमान में सभी गलबहियां करते हुए कह सकें कि ये है भारत और हमारा धर्म भी हमारा देश है क्योंकि हम सब एक हैं. जिसमें समाज, सरकार को आगे आकर हिस्सेदारी दिखानी होगी. तब हम, आप और हम सभी इंसानियत को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे. जरूरी है, पहल कीजिए. साथ ही भड़काने और उकसाने वालों की बातों से खुद को बचाते हुए, लोगों को समझाते हुए कानून का सहारा लीजिए ताकि फिर कभी मालदा सरीखे हिंसा न हो, पूर्णिया की तर्ज पर दहशत न पसरे.

हिमांशु तिवारी आत्मीय

 

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