विचारधारात्मक संघर्ष की नहीं मात्र कम्युनिकेशन की जगह है फेसबुक

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

फेसबुक के 85 करोड़ यूजर हैं और इसने पिछले साल 3.7 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया है। कंपनी का मानना है कि वह आगामी दिनों में बाजार से 5बिलियन डॉलर शेयर बेचकर उठाएगी। इस कंपनी की हैसियत 100 बिलियन से ऊपर आंकी जा रही है।

फेसबुक महज एक कंपनी नहीं है वह नए युग की कम्युनिकेशन, सभ्यता-संस्कृति की रचयिता भी है। यह बेवदुनिया की पहली कंपनी है जिसके एक माह में 1 ट्रिलियन पन्ने पढ़े जाते हैं। प्रतिदिन फेसबुक पर 2.7बिलियन लाइक कमेंटस आते हैं। किसी भी कम्युनिकेशन कंपनी को इस तरह सफलता नहीं मिली ,यही वजह है कि फेसबुक परवर्ती पूंजीवाद की संस्कृति निर्माता है। वह महज कंपनी नहीं है।

गूगल के सह-संस्थापक सिर्गेयी ब्रीन ने इंटरनेट के भविष्य को लेकर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इंटरनेट की अभिव्यक्ति की आजादी को अमेरिका और दूसरे देशों में जिस तरह कानूनी बंदिशों में बांधा जा रहा है उससे मुक्त अभिव्यक्ति के इस माध्यम का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा।

फेसबुक पर यदि कोई यूजर कहीं से सामग्री ले रहा है और उसे पुनः प्रस्तुत करता है और अपने स्रोत को नहीं बताता तो इससे नाराज नहीं होना चाहिए। यूजर ने जो लिखा है वह उसके विचारधारात्मक नजरिए का भी प्रमाण हो जरूरी नहीं है।

फेसबुक तो नकल की सामग्री या अनौपचारिक अभिव्यक्ति का मीडियम है। यह अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति या कम्युनिकेशन का कम्युनिकेशन है। यहां विचारधारा, व्यक्ति, उम्र,हैसियत,पद. जाति, वंश, धर्म आदि के आधार पर कम्युनिकेशन नहीं होता। फेसबुक में संदर्भ और नाम नहीं कम्युनिकेशन महत्वपूर्ण है। फेसबुक की वॉल पर लिखी इबारत महज लेखन है। इसकी कोई विचारधारा नहीं है। फेसबुक पर लोग विचारधारारहित होकर कम्युनिकेट करते हैं। विचारधारा के आधार पर कम्युनिकेट करने वालों का यह मीडियम ” ई” यूजरों से अलगाव पैदा करता है।

फेसबुक विचारधारात्मक संघर्ष की जगह नहीं है। यह मात्र कम्युनिकेशन की जगह है। इस क्रम में मूड खराब करने या गुस्सा करने या सूची से निकालने की कोई जरूरत नहीं है। हम कम्युनिकेशन को कम्युनिकेशन रहने दें। कु-कम्युनिकेशन न बनाएं। फेसबुक कम्युनिकेशन क्षणिक कम्युनिकेशन है। अनेक बार फेसबुक में गलत को सही करने के लिए लिखें ,लेकिन इसमें व्यक्तिगत आत्मगत चीजों को न लाएं। दूसरी बात यह कि फेसबुक मित्र तो विचारधारा और पहचानरहित वायवीय मित्र हैं। आभासी मित्रों से आभासी बहस हो।यानी मजे मजे में कम्युनिकेट करें। असल में ,विचारधारा का कम्युनिकेशन में अवमूल्यन है फेसबुक।

एक अन्य सवाल उठा है कि क्या फेसबुक और ट्विटर ने अकेलेपन को कम किया है या अकेलेपन में इजाफा किया है ? यह अकेले व्यक्ति को और भी एकांत में धकेलता है। संपर्क तो रहता है ,लेकिन संबंधों का बंधन नहीं बंधने देता। दोस्त तो होते हैं लेकिन कभी मिलते नहीं हैं।

फेसबुक ने मनुष्य की मूलभूत विशेषताओं को कम्युनिकेशन का आधार बनाकर समूची प्रोग्रामिंग की है। मनुष्य की मूलभूत विशेषता है शेयर करने की और लाइक करने की। इन दो सहजजात संवृत्तियों को फेसबुक ने कम्युनिकेशन का महामंत्र बना डाला। इसमें भी फोटो शेयरिंग एक बड़ी छलांग है। यूजर जितने फोटो शेयर करता है वह नेट पर उतना ही ज्यादा समय खर्च करता है। आप जितना समय खर्च करते हैं उतना ही खुश होते हैं और फेसबुक को उससे बेशुमार विज्ञापन मिलते हैं । विगत वर्ष फेसबुक को विज्ञापनों से 1 बिलियन डॉलर की कमाई हुई है। असल में फेसबुक सामुदायिक साझेदारी का माध्यम है।यदि कोई इसे घृणा का माध्यम बनाना चाहे तो उसे असफलता हाथ लगेगी। फेसबुक में धर्म,धार्मिक प्रचार, राजनीतिक प्रचार आदि सब सतह पर विचारधारात्मक लगते हैं लेकिन प्रचारित होते ही क्षणिक कम्युनिकेशन में रूपान्तरित हो जाते हैं। विचारधारा और विचार का महज कम्युनिकेशन में रूपान्तरण एक बड़ा फिनोमिना है। जिनकी तरीके से देखने की आदत है वे इस तथ्य को अभी भी पकड़ नहीं पा रहे हैं।

इंटरनेट के समानान्तर सैटेलाइट टीवी और मोबाइल कम्युनिकेशन का भी तेजी से विस्तार हुआ है। नई पूंजीवादी संचार क्रांति समाज को स्मार्ट मोबाइल क्रांति की ओर धकेल रही है। स्मार्ट मोबाइल के उपभोग के मामले में चीन ने सारी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है। भारत में बिजली की कमी के अभाव में रूकी संचार क्रांति निकट भविष्य में स्मार्ट मोबाइल फोन से गति पकड़ेगी । स्मार्ट फोन के जरिए हम पीसी-लैपटॉप को भी जल्द ही पीछे छोड़ जाएंगे ।

1 COMMENT

  1. लेखक के विचारों से मै सहमत हूँ रही बात अकेलापन को मिटाने की तो यह बात भी उतनी ही सही है पर इसका उपयोग यही तक सीमित नहीं है इसका काल जयी प्रभाव हम अन्ना आन्दोलन में अपने देश में और बाहर के देशो में हो रहे आन्दोलन में देख सकते है
    बिपिन कुमार सिन्हा

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