कंप्यूटर से साक्षर होती ग्रामीण महिलाएं

प्रमोद भार्गव

भारत सरकार निरंतर माहिला एवं पुरूषों को साक्षर करने के अभियान में जुटी है, लेकिन बात है कि शत प्रतिशत बनती नहीं। अब केवल ग्रामीण माहिलाओं को केंद्र्र में रखकर कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता की शुरूआत हुई है। इसकी औपचारिक शुरूआत राष्ट्र्रपति प्रतिभादेवी पाटिल ने की है। कार्यात्मक साक्षरता के मायने हैं कि काम करते हुए साक्षर होना। मसलन आम के आम गुठलियों के दाम। यह रही न मजेदार बात। महात्मा गांधी ने तो आजादी के वक्त ही रोजगार मूलक शिक्षा पर जोर दिया था। जिससे लोगों को डिग्री हासिल करने के बाद केवल सरकारी नौकरी पर निर्भर न रहना पड़े। आर्थिक स्वाबलंबन का यही सर्वोतम रास्ता था। किंतु गुलाम मानसिकता के शिकार बने रहने के कारण हम इस रास्ते से भटक गए।

अब मध्‍यप्रदेश में राज्य संसाधन केंद्र्र (इंदौर) प्रौढ़ शिक्षा के मार्फत प्रदेश के कई दूरांचलो में भारत की सभी माहिलाओं को साक्षर करने के नजरिए से कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता कार्यक्रम जारी है। लगातार 40 दिन चलने वाले ऐसे ही एक शिविर में इस लेखक का भी जाना हुआ। यह शिविर देवी पीतांबरा पीठ मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध दतिया जिले के इंदरगढ़ में चल रहा था। यहां माहिला साक्षरता 50 प्रतिशत से भी कम है। ये शिविर खासतौर से उन विकासखण्डो में लगाए जा रहे है, जो अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति बहुल हैं। इंदरगढ़ हरिजन बहुल इलाका है। इसी तरह से मण्डला में बैगा और मंदसौर में बांछड़ा बहुल क्षेत्रों में कंप्युटर कार्यात्मक साक्षरता शिविर चलाए जा रहे हैं।

20 साल की पूजा यहां सिलाई के काम के साथ कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रगट व लुप्त होते क,ख,ग, घ अक्षरों के माघ्यम से साक्षर भी हो रही है और सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का काम भी सीख रही है। स्वयंसेविका ज्योति उसे जहां कंप्यूटर पर बाल भारती पुस्तक के पाठ पढ़ा रही है, वहीं भारती कपडों की कटाई कराती हुर्ह सिलाई का काम सिखा रही हैं। इसके बावजूद पता नहीं पूजा कितना पढ़ पाएगी। पूछने पर वह कहती है, मम्मी जब तक पढ़ाएंगी, तभी तक पढ़ेंगे। फिर बंद कर देंगे। ग्रामीण स्त्रियों के साथ यह बड़ी विडंबना हैं कि वे पढ़ाई की प्रबल इच्छा रखने बावजूद पढ़ाई के लिए माता पिता की इच्छा पर निर्भर हैं। लेकिन विवाहित किरण झा पूजा की तरह लाचार नहीं है। वह बेवाकी से कहती है, दिन में खेती किसानी और घर गृहस्थी का काम देखने के साथ, रात को टीवी की बजाए किताब ही पढ़ेंगे। हमारी जिंदगी तो बरबाद हो गई बच्चों की तो सभांल लें। मसलन शिक्षा व साक्षरता के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। अच्छे व सफल जीवन के लिए शिक्षा की अनिर्वायता की जरूरत ग्रामीण माहिलाएं अनुभव करने लगी हैं।

भारत में महिला साक्षरता के आंकडे अभी भी लज्जाजनक हैं। यह आंकडा 48 फीसदी पर अटका है। ग्रामीण माहिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत तो अभी 33 प्रतिशत के करीब है। हिन्दी भाषी क्षेत्र के सभी प्रदेशों की कमोवेश यही स्थिति है। अभी भी श्रम और घरेलू कार्यों में दिन भर की भागीदारी के कारण माहिलाएं पढ़ नही पा रही हैं। यही करण है कि 45 फीसदी माहिलाएं कक्षा 5 तक पहुंचने से पहले ही पाठशाला छोड़ देती हैं। पंचायती राज में माहिलाओं की 50 फीसदी भगीदारी तय हो जाने के बाद उम्मीद बंधी थी कि शिक्षा व साक्षरता में गुणात्मक सुधार आएगा और अशिक्षा का अंधकार दूर होगा। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में गा्रम स्तर पर चलने वाली प्रथमिक व माघ्यमिक शिक्षा का ढर्रा जिस तरह से बैठा है, उससे भी ग्राम स्तरीय शिक्षा जबरदशत ढ़ंग प्रभावित हुर्ह है। इसे सुधारने के प्रयोग तो कई चल रहे हैं, लेकिन शिक्षकों द्धारा रूचि न लेने के कारण अध्‍ययन अध्‍यापन का पूरा ढांचा ही चटकता जा रहा है। हालांकि राष्ट्र्रीय शिक्षा नीति के पुरोधाओं ने तो यह बात 1968 में ही जान ली थी कि माहिला शिक्षा का महत्व न केवल समानता के लिए बल्कि सामाजिक विकास की प्रकिया को तेज करने की दृष्टि से भी जरूरी हैं। यही कारण है कि पंचायती राज में माहिलाएं कम पढ़ी लिखी अथवा निरक्षर होने के बावजूद अच्छा नेतृत्व कौशल दिखा रही है। कई गा्रमों में शराबंदी के सिलसिले में सफल अंदोलन चलाकार उन्होंने यह जता दिया कि वह भी किसी से कम नहीं हैं। ये माहिलाएं जब छात्रा थीं, तब शिक्षकों ने दायित्वहीनता का परिचय न दिया होता तो शायद इनके नेतृत्व में और प्रशानिक कसावट तो होती ही, ग्रामीण विकास को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से भी इनकी दक्षता और लाभकारी साबित होती। इसलिए सर्वेक्षणें से सामने आया है माहिला को शिक्षा देने से जहां जन्म और मृत्यु दर में कमी आती है, वहीं जानलेवा बीमारियों के नियंत्रण और पर्यावरण सुधार व सरंक्षण की दिशा में इनका अमूल्य योगदान भी सामने आता है। माहिला शिक्षा के इन लाभों से न केवल परिवार बल्कि पूरा समाज समृद्धशाली बनता है। लिहाजा शिविर का संचालन कर रहे कुमार सिद्धार्थ का कहना है कि कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता की मुहिम रोजगार परक होने के कारण शिक्षा और रोज्रगार दोनों के लिए हित साधक है। लिहाजा इसके बढ़े पैमाने पर विस्तार की जरूरत हैं।

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