कांग्रेस का ‘धृतराष्ट्रवाद’

महाभारत में द्यूत क्रीड़ा के समय हस्तिनापुर राज्य के राजभवन में कौरव पुत्र अपने कुटिल मामा शकुनि के नेतृत्व में पांचों पाण्डवों के खिलाफ छल व कपट से पूर्ण पासे फेंक रहे थे। राजभवन में महाराज धृतराष्ट्र और गण्यमान्य लोगों सहित मंत्री, नायक, सेनानायक व राज्यसभा के सभी सदस्य उपस्थित थे। द्यूत क्रीड़ा देखकर पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, कुलगुरू कृपाचार्य और प्रधानमंत्री विदुर सहित धर्म-कर्म के सैंकड़ों मर्मज्ञ महापुरुष स्तब्ध थे। सभी के चेहरे पर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था। सभी गंभीर चिंतन के कारण चिंतित नजर आ रहे थे। हालांकि स्थिति इतनी भी गंभीर नहीं थी कि कुछ बोला ही न जा सके। धृतराष्ट्र तो चुप थे ही, अपनी प्रतिज्ञा से इस पृथ्वी को हिला देने वाले भीष्म भी चुप थे। भई कोई बोले भी क्यों ? राजा का नमक जो खाया था, इसलिए किसी न किसी तरह उसका मूल्य तो चुकाना ही था। अतः चुप्पी साधकर सभी धुरंधर गण्यमान्य महापुरुष अपने-अपने नमक का कर्ज चुका रहे थे।

राजभवन में द्यूत क्रीड़ा चल रही थी। अंदर से छन-छनकर खबरें बाहर आ रही थीं। हस्तिनापुर की प्रजा हैरान थी और जानना चाहती थी कि अंदर हो क्या रहा है व आगे क्या होने वाला है ? लेकिन इतना सब होते हुए भी प्रजा को भीष्म पर भरोसा था। क्योंकि उनकी त्याग, तपस्या, पराक्रम और शौर्य से सभी भलीभांति परिचित थे। सब जानते थे कि जब तक राजभवन में भीष्म उपस्थित रहेंगे, तब तक कुछ भी ऐसा नहीं होगा जिससे राजतंत्र की महिमा और गरिमा को ठेस पहुंचे।

राज्य की प्रजा को जितना भीष्म पर भरोसा था उतना अपने महाराजा धृतराष्ट्र पर नहीं था। क्योंकि उन्होंने पाण्डु की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर की सत्ता पर एकाधिकार जमा लिया था और अभिषिक्त राजा की तरह व्यवहार करने लगे थे। उनका आचार-व्यवहार सत्ता उत्तराधिकार की “अग्रजाधिकार विधि” के अनुसार विधिसम्मत नहीं था। कुछ समय बाद वे अपने पुत्र दुर्बुद्धि दुर्योधन के मोह में पाण्डु पुत्रों को सत्ता का उचित हक देने से भी कतराने लगे थे। इसलिए राज्य की प्रजा उनको भरोसे के काबिल नहीं समझती थी। यहां तक कि राजभवन में उपस्थित द्रोणाचार्य, कृपाचार्य व अन्य ऋषि सदृश शूरवीरों पर भी जनता को भीष्म जैसा भरोसा नहीं था। चूंकि भीष्म उपस्थित थे, इसलिए प्रजा के चेहरे पर शांति का एक सुरक्षात्मक भाव था।

हस्तिनापुर की जनता को तब गहरा धक्का लगा जब भीष्म की उपस्थिति में ही सारी लोकमर्यादाएं तार-तार हो गईं। पाण्डव अपना खांडव प्रदेश सहित सारा राजपाट जुए के खेल में हार चुके थे। हारने के बाद राजपरिवार की बहू द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया गया था। द्रौपदी का चीरहरण तक हुआ। ये सब बातें जानकर प्रजा हैरान थी कि आखिर ऐसा कैसे हो गया। भीष्म उपस्थित थे फिर भी…? क्या भीष्म ने सत्तालोलुपों और भ्रष्टाचारियों को रोकने की जरा सी भी चेष्टा नहीं की ? ये सारी बातें प्रजा के मन में चल रही थीं।

यह सत्य है कि भीष्म के पास उस समय कोई राजकीय पद नहीं था, लेकिन वे कुरुवंश के सबसे वरिष्ठ, प्रभावशाली व पराक्रमी शूरवीर थे। वे अपने पिता शांतनु के शासनकाल से ही हस्तिनापुर की राजनीति के बारे में रग-रग से परिचित थे। सत्ता व राज्य की प्रजा में उनकी गहरी पकड़ थी। लेकिन कुरुवंश की प्रतिष्ठा पर कलंक लगते समय उनका मौन धारण किए रहना चिंताकारक था। यदि वे इस पापाचार के खिलाफ आवाज उठाते तो दुर्योधन, कर्ण और शकुनि की क्षमता नहीं थी कि वे उनकी मानहानि करते। इतना सब होते हुए भी वे चुप थे। यह मौन ही था जो महाभारत होने के प्रमुख कारणों में से एक गिना गया था। क्योंकि अपमानित द्रुपद-सुता द्रौपदी अपना केश खोलकर उसको दुःशासन के लहू से धोने तक, न बांधने का संकल्प ले चुकी थीं।

ठीक इसी प्रकार श्रीमती सोनिया गांधी भी चुप रहीं। वे सरकार में कुछ नहीं होते हुए भी उसकी सबकुछ हैं। सत्ता की सारी शक्ति उनमें निहित है। सारे संघीय मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी, उनकी बातों का अक्षरशः पालन करते हैं। इसी कारण विपक्षी दलों के नेता उनको ‘सुपर पी.एम.’ कहते हैं और डॉ. मनमोहन सिंह को ‘रबर स्टैंप पी.एम.’। यानी केंद्रीय मंत्रिपरिषद के नाम मात्र के प्रमुख डॉ. सिंह हैं, जबकि वास्तविक प्रमुख सोनिया। इसी कारण मंत्रिपरिषद के सदस्य मनमोहन की अपेक्षा सोनिया की बातों पर ज्यादा गौर फरमाते हैं।

जब ए. राजा ने सरकार को ब्लैकमेल करना शुरू किया तो ऐसा नहीं है कि सोनिया इससे बे-खबर थीं। राजा ने मनमानी करने के लिए मनमोहन पर लगातार दबाव बनाया। मनमोहन ने राजपाट जाने के डर से उनकी बातें मान ली। फलतः वर्ष 2006-07 में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन का मामला मंत्रिमंडल समूह के विषय से परे कर दिया गया। अब ए. राजा वास्तव में “राजा” बन गए थे। उन पर कोई बंदिश नहीं रह गई थी। वह 2जी स्पेक्ट्रम की बंदरबाँट करने के लिए स्वतंत्र हो गए थे। चूँकि, वह यू.पी.ए. सरकार की सहयोगी पार्टी के नेता थे, इसलिए उनकी स्वतंत्रता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। वह सरकार से भी मजबूत दिखने लगे थे। उनके क्रियाकलापों पर न तो ईमानदार कहे जाने वाले मनमोहन को चिंता थी और न ही सोनिया को।

दरअसल, सत्ता के वैभव में एक ऐसा आलोक होता है जिसके प्रचण्ड तेज में अनेक प्रतिभावान और ईमानदार व्यक्ति विलुप्त हो गए हैं। लगता है कि मनमोहन भी इसी के शिकार हो गए थे। हालांकि मनमोहन ने जब स्पेक्ट्रम का मामला मंत्रिमंडल समूह से परे रखने का फैसला किया, तो ऐसा नहीं था कि सोनिया को इसकी जानकारी नहीं थी। इस विषय पर मनमोहन ने अकेले निर्णय ले लिया होगा, यह बात भी आसानी से हजम होने वाली नहीं है। यानी भीष्म की तरह ‘राजमाता’ सोनिया भी पापाचार के दौरान मौन रहीं और सारा खेल-तमाशा देखती रहीं। फलतः राजा ने 1.76 लाख करोड. रुपए का चूना लगा दिया, जो देश का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध हो रहा है।

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि सोनिया इस पापाचार का विरोध करतीं तो सत्ता व संगठन का कोई भी व्यक्ति उनकी मानहानि करने की जुर्रत नहीं करता। फिर भी वे चुप रहीं, यह चिंताकारक है। साथ ही लोकमानस में कई प्रकार की आशंकाओं को भी जन्म देता है। इस घोटाले से भारत की जनता महाभारतकालीन हस्तिनापुर की प्रजा की तरह हैरान है। जैसे भीष्म की चुप्पी से द्रौपदी अपमानित हुई थीं, ठीक उसी प्रकार सोनिया के मौन से लोकतंत्र अपमानित हुआ है। प्रचलित लोक-मानदंडों के अनुसार, मौन होकर भ्रष्टाचार का खेल देखने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचारी के समान ही दोषी कहा जाता है। इसलिए लोक का धन लुटता हुआ देखने वाले सोनिया और मनमोहन लोक-अपराधी हैं। इसके लिए जनता उनको कभी माफ नहीं करेगी।

(लेखक : ‘वीएच वॉयस’ न्यूज वेब-पोर्टल से जुड़े हैं)

Previous articleनितीश एंड कंपनी की जय हो
Next articleबीहड़ से खत्म हो रहा डकैत राज
पवन कुमार अरविन्द
देवरिया, उत्तर प्रदेश में जन्म। बी.एस-सी.(गणित), पी.जी.जे.एम.सी., एम.जे. की शिक्षा हासिल की। सन् १९९३ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में। पाँच वर्षों तक संघ का प्रचारक। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्तीय मीडिया सेण्टर "विश्व संवाद केंद्र" गोरखपुर का प्रमुख रहते हुए "पूर्वा-संवाद" मासिक पत्रिका का संपादन। सम्प्रतिः संवाददाता, ‘एक्सप्रेस मीडिया सर्विस’ न्यूज एजेंसी, ऩई दिल्ली।

8 COMMENTS

  1. बड़े दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है की राजीव दीक्षित नहीं रहे राजीव दीक्षित आजादी बचाओ आन्दोलन के प्रणेता और स्वामी रामदेव के आन्दोलन भारत स्वाभिमान आन्दोलन के प्रमुख प्रचारक और राष्ट्रीय सचिव थे ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ये न केवल स्वामी रामदेव की बल्कि राष्ट्र की अपूर्णीय क्षति है मुझे ये मौत स्वाभाविक नहीं लगती जबकि स्वामी रामदेव अपने और अपने साथियों की सुरक्षा पर कई बार बोल चुके है
    https://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/Hindi.aspx#

  2. हिमवंत जी आपकी पैनी दृष्टी से किये विश्लेषण से सहमत हूँ और सोनिया को विष कन्या मानना बिलकुल सही व तर्क सगत है.

  3. ये तो सभी शकुनी मामा से भी सौ गुना शातिर हैं
    इनकी धृतराष्ट्र से तुलना भी बेमानी है..वह तो अँधा था ..ये शातिर हैं !
    भीष्म और मनमोहन की तुलना -?
    भीष्म अपनी ही प्रतिज्ञाओं से बंधे थे …
    केवल हस्तिनापुर से प्रतिबद्ध !!!!!!
    अरे ये तो सत्ता के दलाल हैं ..
    पैसे के लिए भारत माता को भी बेच देंगे !
    अरविन्द जी प्रभावशाली लेख के लिए साधुवाद ! उतिष्ठकौन्तेय

  4. सभी जानते हे की कोंन वास्तविक प्रधानमंत्री हे, सोनिया गाँधी को सब पता रहते हुआ भी कुछ नहीं बोलना ये कोई आच्छर्य वाली बात नहीं हे , कॉर्पोरेट जगत को फायदा पहुचना तो हमारे नेताओ का मूल उद्देश्य हे राजनीती में आने का , उनको देश हित की क्या पड़ी हे, अपनी पार्टी ,अपने नेता, अपने ऑफिस ,अपनी जाती, अपनी प्रोपर्टी ,इन सब से ऊपर उठ कर देश हित में सोचने का समय कहा हे हमारे नेताओ के पास!
    अब जब सब कुछ खुली किताब बना हुआ हे अब भी मानने को तयार नहीं की गलती हुई हे और इसकी जाच जे पि सी से हो जनि चाहिए उनको सब पता हे अगर जाँच इमानदारी से हुई तो सब पोल खुल जाएगी इसलिए अब नाटक हो रहे हे और देश का पैसा रोज संसद में पानी तरह बहा दिया जाता हे …… आम आदमी की चिंता कोंन करे ?

  5. दर असल यह धृत राष्ट्र का अपमान है. सोनिया की तुलना सिर्फ और सिर्फ विष कन्या से हो सकती है. जिसे चर्च ने भारतीय संस्कृति को डसने के लिए यहाँ भेजा है. पहले देवर संजय को, फिर सास इंदिरा को, फिर माध्वाराव सिंधिया को, और फिर पति राजीव को, दस चुकी सोनिया माइनो अब देश को डसने को बेताब है. मीडिया और कोंग्रेस भले ही उसे सोनिया माता/मदर टेरेसा/ की तरह महिमांडित करे लेकिन उसकी असली सचाई बड़ी कड़वी है.

  6. सोनिया की तुलना एक राजा से – यह जंचा नहीं. सोनिया की तुलना किसी विष-कन्या से की जाए तो ज्यादा उचित होगा. उसने इतर देश के राजकुमार को फासा और डस लिया. फिर सत्ता लोलुप पार्सदो की मदत से सत्ता हतिया लिया. देश को फिर से गुलाम बना लिया.

    फिर से लड़ना होगा. भुजाओं की फड़कन को सही समय पर पुरुषार्थ में रूपांतरित करना होगा. देश मिट्टी कुछ और बलिदान चाहते है. तैयार रहो वीर. शक्तियों को एकत्रित करो. मोर्चा खोला जाएगा शीघ्र. अगर हम आक्रमण नहीं करेगे तो वो हम परा आक्रमण करेगे. हमले से बढ़ कर हिफाजत की कोइ रणनीति नहीं है.

  7. भाड़े के टट्टू पर लोग अक्सर अधिक बोझ लाद देते हैं| यहाँ प्रस्तुत महाभारत का एक दृश्य भाड़े का टट्टू ही है| भारत में जन्मे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह स्वतंत्रता के प्रारम्भ से ही भारत में राजनीति के रग रग से परिचित थे| श्री पवन कुमार अरविन्द ने उन्हें अपने लेख में प्रधान मंत्री विदुर की भांति मूक बना दिया है| कोई दूसरा क्योंकर भीष्म पितामह बन भारत में होते दुराचार के विरुद्ध आवाज़ उठाएगा? सच तो यह है कि कांग्रेस में कोई भी भीष्म पितामह स्वरूप नहीं है|

  8. कांग्रेस का ‘धृतराष्ट्रवाद’ – by – पवन कुमार अरविन्द

    आपकी तुलना, सोनिया जी की धृतराष्ट्र से, – मुझे सहमत होने में बहुत कष्ट है.

    सोनिया-मनमोहन जी कोई लाचार बेचारा नहीं; नहले पे दस हैं; सारे मझे उस्ताद हैं.

    महाभारत की तुलना छोड़ दें.

    यह सोच समझ कर छल – कपट का आज तक का सबसे बड़ा खेल उस्तादी से खेला जा रहा है.

    2G Spectrem घौटाले में सभी बराबर के खिलाड़ी और हिस्सेदार हैं. कोई दूध का धुला नहीं है. कोई नापाक नहीं है. एक ही गिरोह के बराबर के चोर हैं.

    श्रीमान ऐ. राजा को तो महज ७-८ हज़ार करोड रूपये ही मिलने का अनुमान है.

    पौने दो लाख करोड तो सबने १० % – १० % के भाग में गबन किये जाने का बता रहे हैं.

    Sorry Sir, I do not concur to your line of analysis – they are gang of conspirators
    CVC भी चुन कर अपना ही बनाया है.

    – अनिल सहगल –

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here