सत्ता के लिए कांगे्रस की तड़पन

सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत की सत्ता एक अथाह सागर की तरह है, जिसमें कोई भी दल एक बार डुबकी लगा ले तब उसे छोटे छोटे तालाबों की डुबकी में वैसा आनंद कदापि नहीं मिलता। जबकि हर बार समय एक जैसा तो नहीं रहता, समय बहुत ही बलवान होता है, समय से आज तक न तो कोई जीत सका है और नही भविष्य में कोई जीत पाएगा। जिसने भी समय का दुरुपयोग किया या समय की करुण पुकार को अनसुना किया है, उसे समय ने नेस्तनाबूद ही किया है। समय की अपनी गति होती है, जो भी समय से आगे निकलने का प्रयास करता है या समय से पीछे रहता है, उनके साथ समय का कभी भी तालमेल नहीं रहा। इसके अलावा जो भी समय के साथ चला है, समय ने उसका साथ दिया है। देश में सर्वाधिक समय शासन करने वाली कांग्रेस के बारे में यह कहा जाये कि उसने समय की नजाकत को नहीं समझा तो सर्वथा उपयुक्त और समीचीन होगा।
वर्तमान में कांग्रेस नेताओं के बयानों से यह साफ परिलक्षित होता है कि उनके अंदर सत्ता प्राप्त करने की छटपटाहट है। मात्र छह महीने की कार्यावधि वाली नरेंद्र मोदी सरकार का कांग्रेस इस प्रकार से आंकलन कर रही है जैसे सरकार ने बहुत बड़े घोटाले कर दिये हों, इससे तो ऐसा ही जान पड़ता है कि कांग्रेस केंद्र सरकार को काम ही नहीं करने दे रही। जिस भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत प्राप्त करके सरकार बनाई हो, उसे अनुभव प्राप्त करने के लिए कांग्रेस को समय देना ही चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने अपना स्वार्थ दिखाकर सरकार को ऐसे मुद्दों पर घेरने का प्रयास किया है, जो वास्तव में मुद्दे हैं ही नहीं। कांग्रेस ने बेहद जल्दबाजी दिखाकर वर्तमान केंद्र सरकार पर यू टर्न लेने का आरोप लगाया है, और इस मुद्दे पर कांग्रेस ने धरना भी दे दिया, कांगे्रस के नेताओं ने यह भी अध्ययन नहीं किया कि कई मामलों में पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत सरकार ने भी कई बार यू टर्न लिया। यहाँ पर यह सवाल उठाना लाजिमी है कि क्या सरकार द्वारा यू टर्न लेना वास्तव में असफलता का परिचायक माना जा सकता है। अपनी सरकार के समय खुद कांग्रेस सरकार के नेता ऐसे मुद्दों पर यह कहते हुए नजर आते थे कि विपक्ष की तो आदत ही हो गई है हंगामा करने की, इससे बढ़ कर ये भी कहा जाता था कि भाजपा सरकार के कामकाज में अड़ंगा पैदा कर रही है। लेकिन आज कांग्रेस उन सब चीजों को भूलकर वही सब करने पर उतारू हो गई है, जिसका वे विरोध करते दिखाई देते थे। ऐसे में यह तो साफ है कि कांग्रेस के पास आज कोई सिद्धान्त ही नहीं बचे हैं। उन्हें तो बस विरोध के लिए विरोध ही करना है, चाहे वह मुद्दा विरोध के लायक है भी या नहीं। वास्तव में सरकार के कार्यों का कांगे्रस को पूरी तरह से अध्ययन करना चाहिए तभी विरोध करना चाहिए।
हम यह भली भांति समझ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश ने अदृश्य रूप से जो मुकाम हासिल किया है, वह स्वतन्त्रता के बाद पहली बार महसूस किया जा रहा है। विश्व के जो देश भारत की महत्वपूर्ण बात को भी अनसुना कर देते थे, आज वही देश भारत की बात पर ठप्पा लगाने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। यह हमारे देश के लिए महानतम उपलब्धि ही है और पूरे देश के साथ कांगे्रस को भी इस उपलब्धि पर सरकार को धन्यवाद देना चाहिए। लेकिन कांगे्रस द्वारा विरोध करना शायद इसी बात को उजागर करता है कि उसके नेता आज भी सत्ता की मलाई चखने का मंसूबा पाले बैठे हैं। कहा जा सकता है कि वर्तमान में सत्ताहीन कांगे्रस की हालत उस मछली की तरह होती जा रही है, जिसे जल से बाहर निकाल दिया हो। और वह पानी की चाहत के लिए तड़पती रहती है। कांगे्रस के बयानों में यह तड़प साफ देख जा सकती है। अगर कांगे्रस अपनी छटपटाहट पर अंकुश लगा सकती तो वह सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करती, लेकिन कांगे्रस ने तो आदर्श ग्राम योजना, स्वच्छ भारत अभियान और कालेधन के मुद्दे पर सरकार की सक्रियता पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए। कालेधन के मामले में सरकार ने जब वादा किया है तब यह माना जा सकता है कि कानून के दायरे में रहकर सरकार अवश्य इस पर उचित कार्यवाही कर रही होगी। हम यह जानते हैं कि पिछली सरकार के कारनामों के कारण ही आज कालाधन लाने में बहुत पेच बनते दिखाई दे रहे हैं। कांगे्रस अगर वास्तव में कालेधन के मुद्दे पर संजीदा है तो उन वैश्विक संधियों पर सरकार का साथ दे, जो उसने अपने शासन काल में की थीं।
वर्तमान में कांगे्रस पार्टी में गजब का अंतरविरोध दिखाई दे रहा है। कुछ लोग राहुल गांधी को सर्वमान्य नेता बनाने की कवायद करते दिखाई देते हैं तो कुछ राहुल की नाकामियों और खामियों को उजागर करते नजर आते हैं। जब कांगे्रस के वरिष्ठ नेता ही अपने नेतृत्व सवाल उठाने लगें तो कांगे्रस को इस गंभीरता दिखाकर पुन: चिन्तन की मुद्रा में आना चाहिए।
आज कांगे्रस की पूरी राजनीति तर्कों के सहारे ही चलती हुई दिखाई देती है। उसके राजनेता सोनिया और राहुल की नजरों में अपने नम्बर बढ़ाने का खेल खेल रहे हैं। लेकिन कांगे्रस ने इस बात पर कभी चिन्तन नहीं किया कि देश की जनता क्या चाहती है। आज की हालात को देखकर ऐसा लगता है कि देश का युवा वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में कुछ भी  सुनना नहीं चाहता। प्राय: देखा जा रहा है कि जो भी दल नरेन्द्र मोदी का जितना विरोध कर रहा है, उसे उतना ही खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सभाएं आज भी अपना प्रभावी असर छोड़ रहीं हैं, जबकि अन्य दलों को अपनी सभाओं के लिए भीड़ जुटाने के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है। कांगे्रस के राहुल गांधी ने तो लम्बे समय से सभाएं करना ही छोड़ दी हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का भय सताने लगा है कि मेरी सभाओं में भीड़ कम आ रही है। इन सब बातों से यह लगने लगा है कि देश की जनता भी चाहती है कि कांगे्रस में राहुल के अलावा किसी और को आगे आना चाहिए। इसे कांगे्रस के कुछ नेता खुले तौर पर जाहिर कर चुके हैं तो दबे स्वर में अपना दर्द सुनाते दिख रहे हैं।

1 COMMENT

  1. निराश कांग्रेस की यह हताशा है, विरोध करना अब उसने एक मात्र सिद्धांत बना लिया है,ममता ,मुलायम , लालू उसके पिछलगू हैं, क्योंकि इनको भी भा ज पा ने ज़मीन दिखा दी है। वास्तव में यह कोई काम होने नहीं देना चाह रहे ताकि सरकार को विफल घोषित कर सकें। लेकिन इसमें भी यह नुक्सान में रहेंगे क्योंकि जनता अब समझ ने लगी है ,इन हरामखोर नेताओं को बिना कुछ किये खाने की आदत पड़ गयी है , इनका बहिष्कार किया जाना जरुरी है

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