अस्तित्व के लिए छटपटाती कांग्रेस

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-प्रवीण दुबे-
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‘रस्सी जल गई परन्तु बल नहीं गए’ कांग्रेस पर यह कहावत पूरी तरह सही साबित होती है। एक तरफ वह लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव बना रही है तो दूसरी ओर रेल बजट के बाद उसके नेताओं का उग्र प्रदर्शन करना आखिर क्या संदेश देता है? इसे बशर्मी नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जाए कि जिस कांग्रेस को देश की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया, कई राज्यों में जो अपना खाता भी नहीं खोल पाई, जिसके अधिकांश बड़े नेता चुनाव हार गए और जो देश का शासन चलाने में बुरी तरह असफल रही, उसी कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी यह कह रही हैं कि लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस को ही मिलना चाहिए।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस अध्यक्षा ऐसा कहकर क्या भारतीय संविधान की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर रही? संविधान विशेषज्ञों की राय पर गौर किया जाए तो कोई भी दल तब तक लोकसभा में विपक्ष का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता जब तक कि उसके सांसदों की संख्या 55 या इससे अधिक न हो। साफ है कांग्रेस के सांसदों की संख्या 37 है जो कि विपक्ष के नेता के लिए संविधान में निहित संख्या से काफी कम है।
सरकार ने भी कांग्रेस की मांग पर कहा है कि कांग्रेस के सांसदों की संख्या लोकसभा की कुल सीटों की 10 फीसदी भी नहीं है। संकेत साफ है कांग्रेस अपनी दुर्गति के कारण लोकसभा में विपक्ष का पद प्राप्त करने का अधिकार स्वत: ही खो चुकी है। यदि सोनिया गांधी में तनिक भी नैतिकता होती और भारत की जनता द्वारा दिए गए जनमत के प्रति उनके मन में थोड़ा भी श्रद्धाभाव होता तो वह यह मांग नहीं करती और स्वत: ही चुपचाप बैठ जातीं।

वैसे भी यह कोई पहली बार नहीं है कि लोकसभा में ऐसी स्थिति निर्मित हुई है 1977 और 1984 भी विपक्ष की दुर्गति के चलते वह विपक्ष के नेता पद हेतु निर्धारित संख्या प्राप्त नहीं कर सका था। यही वजह थी कि उस समय लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं था बावजूद इसके संवैधानिक प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चलती रही थीं। अत: कांग्रेस अध्यक्ष का नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर सरकार पर दवाब बनाने की रणनीति सरासर गलत है।
अब दूसरे मुद्दे पर भी कांग्रेसी चरित्र की चर्चा बेहद आवश्यक है। कांग्रेस नेताओं द्वारा रेल बजट के बाद रेलमंत्री सदानंद गौड़ा के घर के बाहर जो बेहूदा और बेशर्मी भरा प्रदर्शन किया गया वास्तव में आज की परिस्थिति में क्या कांग्रेस नेताओं को यह शोभा देता है। इस बात पर कांग्रेस का सरकार से मतभेद हो सकता है कि रेल किराया क्यों बढ़ाया गया, लेकिन जिस तरीके से रेलमंत्री के आवास को कांग्रेसियों ने निशाना बनाया वह यह सिद्ध करता है कि अपनी दुर्गति से बौखलाई कांग्रेस की हालत ‘खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे’ जैसी हो गई है।

देश में शायद ही ऐसा कभी हुआ जब किसी राजनीतिक दल के लोगों द्वारा केन्द्रीय मंत्री के घर धावा बोलकर उनकी नाम पट्टिका को पैरों से कुचला हो। कांग्रेस नेताओं को इस निर्लज्ज हरकत करते समय यह भी ध्यान नहीं रहा कि कुछ समय पूर्व तक केन्द्र में लगातार 10 वर्षों तक कांग्रेस ही सत्तासीन थी। इस दौरान पूरा देश महंगाई, भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि करता रहा। वास्तव में मोदी सरकार को कांग्रेस ने जिस हालात में देश की बागडोर सौंपी है उससे निपटना ही बेहद कठिन है और इसी कारण मोदी सरकार को रेल किराया बढ़ाना पड़ा है। यदि देश के खजाने की और रेल मंत्रालय की आर्थिक स्थिति ठीक होती तो मोदी सरकार ऐसा नहीं करती। नेता प्रतिपक्ष का मामला हो या फिर रेल किराया बढ़ाए जाने का मामला हो कांग्रेस नेताओं को संवैधानिक मर्यादाओं और शालीनता को दृष्टिगत रखकर कोई भी बात करना चाहिए। सोनिया गांधी हो या उनके पुत्र राहुल गांधी उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है। ऐसी स्थिति में अब मां-बेटे सहित खासकर उन नेताओं को पदलोलुपता की मानसिकता छोड़ पश्चाताप करने की जरूरत है। यह समय कांग्रेस के लिए चिंतन-मनन का है।

यह पता लगाने का है कि आखिर कांग्रेस की ऐसी दुर्गति क्यों हुई कि वह 50 का आंकड़ा भी नहीं छू सकी। जिस समय लोकसभा चुनाव चल रहे थे और चुनाव प्रचार जोरों पर था तब नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की बात कही थी। भले ही चुनाव परिणामों के बाद यह बात सच नहीं हुई लेकिन कई प्रदेशों में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो ही गया। अत: इस देश की राजनीति कांग्रेस मुक्त भारत की ओर अवश्य बढ़ चली है।
लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के लिए आवश्यक सांसद संख्या तक न पहुंच पाना भी इसी बात का प्रमाण है। निश्चित ही यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बेहद शर्मनाक है। दुख इस बात का है कि इस शर्मनाक स्थिति के बावजूद सोनिया-राहुल सहित उनकी मंडली में शामिल तमाम चारण भाट कांग्रेसी कहीं से भी अपराध बोध से ग्रसित नजर नहीं आ रहे उल्टा लोकसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा प्राप्त करने के लिए लॉबिंग की जा रही है। कैसी विडंबना है कि कांग्रेस नेता इस असंवैधानिक मांग को लेकर राष्ट्रपति के पास तक जा पहुंचे। इस कृत्य के लिए आखिर सोनिया-राहुल को शर्म क्यों नहीं आई? जरा सोचिए नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की इस बात को मान भी लेते हैं तो इससे कांग्रेस को खासकर सोनिया-राहुल को क्या हासिल होने वाला है? कांग्रेस के भाग्य का फैसला तो इस देश की जनता ने पहले ही कर दिया है। उन्हें सत्ता से नकार दिया है और इतना संख्याबल भी नहीं दिया कि वह लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में भी रह सकें। ऐसी स्थिति में कांग्रेस द्वारा विपक्ष के नेता का पद प्राप्त करने के लिए जो छटपटाहट दिखाई जा रही है वह बेहद अफसोसजनक और निंदनीय है।

5 COMMENTS

  1. सबसे दिलचस्प बात यह है की बजट पर अपनी प्रतिकिर्या देते हुए सोनिया गांधी कहती हैं की बजट में वाही सब कुछ है जो हमने बना कर रखा था। यदि ऐसा था तो इस बजट को पूरा समर्थन देना चाहये और प्रसन्न होना चाहिए की उन के ही प्रस्ताव मान लिए गए और फिर गत १० वर्षों में ये प्रस्ताव क्यों नहीं लए गए। अब खुर्दबीन लेकर इस बजट में कमियां देख रहें हैं।

  2. अपना वजूद बचाने के लिए यह सब करना पड़ रहा है , कहीं पांच साल में लोग भूल न जायें , क्योंकि अभी पांच साल केंद्र में तो वह सत्ता के निकट आ नहीं सकती ,और भा ज पा ने यदि ढंग से काम किया तो बाकी राज्यों में भी होने वाले चुनावों में कहीं सूपड़ा साफ़ न हो जाये इसलिए अब लाइम लाइट में बने रहने के लिए ऐसी ओछी हरकतों पर आ गए हैं

  3. Shri Dubejee you have put the facts nicely but Indian National Congress is far from the ground reality .Time has come to destroy the roots of Congress and I would request people like you to analyse the works and policies of Congress and its leaders particularly since independence and if possible since its conception.
    Ithink this party must be declared the party of traitors and banned and its leaders like Nehru must be declared anti India because most of the chronic problems o
    like Kashmir , Hindu -Muslims ,border problems are due to Congress.

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