चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को RSS एजेंट साबित करना चाहती है कांग्रेस?

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डॉ मनीष कुमार

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना कोई मजाक है क्या? क्या अभी विपक्ष के नेताओं को डा. भीमराव अंबेडकर की बातें याद नहीं आती? हो सकता है विपक्ष में बैठे बैठ चार सालो में इनकी यादाश्त कमजोर हो गई लेकिन क्या बुद्धि भी मारी गई है. क्या उन्हें पता नहीं है कि इस प्रस्ताव का मतलब संसद और सुप्रीम कोर्ट में सीधी टक्कर है? क्या ये संवैधानिक संस्थानों पर हमला नहीं है? अगर नहीं तो क्या राहुल गांधी देश के सारे जजों को ये धमकी दे रहे हैं कि अगर हमारे खिलाफ फैसला दिया तो बेइज्जत होने के लिए तैयार रहो.

जस्टिस लोया के मामले में कांग्रेस पार्टी का काला चेहरा दुनिया के सामने आया तो कांग्रेस पार्टी बिलबिला उठी. आनन फानन सारी विपक्षी पार्टियों की मीटिंग बुलाई और चीफ जस्टिस को इम्पीच करने का फैसला ले लिया. हालांकि ये फैसला बहुत पहले ही हो चुका था जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कांफ्रेस की थी. सासंदों के दस्तखत पहले ही करा लिए गए थे.. इसमें छह ऐसे महान सासंदों का दस्तखत है जो अब सासंद नहीं है. उनका टर्म पूरा हो चुका है. चुंकि, ये चारो जज इनकी राजनीति में सीधे तौर से जुड़ना नहीं चाहते थे तो इसे जस्टिस लोया के फैसले आने तक टाल दिया गया था. अब जब फैसला आया तो कांग्रेस ने विपक्षी एकता का स्वांग रचा. मीटिंग बुलाई. लेकिन नोट करने वाली बात ये है कि मीटिंग में सिर्फ छह पार्टियां ही पहुंची. सीपीआई, सीपीएम, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, शरद पवार की एनसीपी और मुस्लिम लीग. जबकि आरजेडी, तृणमूल, बीजेडी, डीएमके, टीडीपी, नेशनल कांफ्रेस जैसी पार्टिया इसमें शामिल नहीं हुई. क्यों.. ये एक राज है जिसे हम आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले संसद के अंकगणित को समझते हैं.

अगर देश की सारी विपक्षी पार्टियां एक भी हो जाए फिर भी चीफ जस्टिस मिश्रा का बाल भी बांका नहीं कर सकते. महाभियोग प्रस्ताव को पास करने के लिए राज्यसभा और लोकसभा में दो तिहाई बहुमत की जरुरत पड़ती है. राहुल गांधी इतने भी मूर्ख नहीं हैं कि उन्हें ये पता नहीं हो? लोकसभा तो दूर राज्यसभा में भी ये प्रस्ताव किसी भी कीमत पर पास नहीं होगा. कांग्रेस की हार निश्चित है फिर भी राहुल गांधी ने चीफ जस्टिस के खिलाफ इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? कांग्रेस द्वारा बुलाई मीटिंग से एक बात और साफ हो गई कि बड़ी बड़ी विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ नहीं है. इतना ही नहीं, सदैव मौन रहने वाले मनमोहन सिंह, सलमान खुर्शीद, अश्विनी कुमार और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कई कांग्रेसी नेताओं ने साफ साफ कहा कि निजी तौर पर वो इस फैसले का समर्थन नहीं करते हैं. सवाल ये है कि इनकी बातों को नजरअंदाज करने की राहुल गांधी की क्या मजबूरी थी?

दरअसल ये मजबूरी नहीं बल्कि राहुल गांधी की ‘अतिबुद्धिमान’ होने का सबूत है. चाहे मामला हिंदू आतंकवाद का हो. असीमानंद का हो. या फिर कर्नल पुरोहित का या फिर कोई और हर दिन कांग्रेस पार्टी के झूठ का पुलिंदा बेनकाब होता जा रहा है. कोर्ट से ये लोग बरी हो रहे हैं. इतना ही नहीं, कांग्रेस पर आरोप भी लग रहे हैं. ये ठीक वैसा ही है जब 2011 के बाद से लगातार कांग्रेस के नग्न-भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होता था. उस वक्त कांग्रेस की काली करतूत का पर्दाफाश हो रहा था तो इस बार कांग्रेस की साजिश का सच सामने आ रहा है. लेकिन जस्टिस लोया के केस में कांग्रेस पार्टी और उसकी सोशल-मीडिया के भाड़े के टट्टूओं ने बड़ी मेहनत की. लेकिन अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जब करारा तमाचा मारा तो कांग्रेस बिलबिला उठी. राहुल गांधी के समर्थनविहीन सलाहकारों ने यही सलाह दी कि यही मौका है जब मुसलमानों को एक बार फिर से बरगलाया जा सकता है. मुस्लिम वोटबैंक? ये पूरा खेल ही वोटबैंक का है.

चीफ जस्टिस मिश्रा तो उसी दिन से कांग्रेस और वामपंथियों के निशाने पर आ गए जब से उन्होंने राम मंदिर के मामले में जज बने. इसका फैसला आने वाला है. हर पार्टी में एक से एक वकील मौजूद हैं. सबको पता है कि अयोध्या के रामजन्मभूमि मामले में मुस्लिम पक्ष के दावे बेहद कमजोर हैं. इतना ही नहीं, जस्टिस मिश्रा ने आंतकवादी याकुब मेनन के मामले में इन्हें कोई राहत नहीं दी थी. ये वही गैंग है जो रात के अंधेरे में आंतकवादी याकूब मेनन को फांसी रोकने के लिए एड़ीचोटी एक कर दी थी. दूसरी तरफ कांग्रेस के हिंदू टेटर का गुब्बारा भी फूट चुका है. वो लोग अब बाइज्जत बरी हो चुके हैं जिन्हें एक साजिश के तहत बिना किसी सबूत के अरेस्ट किया गया था. जिन्हें हिंदू आतंकवादी बता कर कांग्रेस पार्टी राजनीति करती थी, जिनके नाम पर ‘मुस्लिम एक्सपर्ट्स’ टीवी चैनलों पर गाल बजाते थे. ये सब अब खत्म हो गया है. मतलब ये कि फर्जी-सेकुलर पॉलिटिक्स की बलि चढ़ चुकी है. ऐसे में कांग्रेस के सामने बड़ा सवाल ये है कि मुसलमानों को हासिल करने का क्या तरीका बचा है?

मुसलमानों का गुस्सा कोर्ट से है.. इसलिए कांग्रेस पार्टी ने इसके मुखिया को ही निशाने पर ले लिया. अब जरा कांग्रेस को इस मुद्दे पर समर्थन देने वाली पार्टियों पर नजर घुमाइये. दरअसल, जस्टिस लोया के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन करने वाली वो पार्टियां हैं जो बिना मुस्लिम वोट के नगन्य हैं. इनका अस्तित्व ही मुसलमानों को वोट से है. गौर करने वाली बात ये है कि जिन विपक्षी पार्टियों का मुस्लिम वोटबैंक अक्षुण्ण है वो इस पचड़े से बाहर हैं. जैसे कि आरजेडी और तृणमूल आदि. लेकिन समाजवादी, बीएसपी, एनसीपी, कांग्रेस, वामपंथी पार्टियां इस बात को जानती है कि अगर मुसलमानों का वोट नहीं मिला तो उनकी हालत 2014 से बदतर होने वाली है. यही वजह है कि ये लोग एक गैंग बनाकर जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहते हैं.

हकीकत ये है कि कांग्रेस और इनके सहयोगी पार्टियों का मकसद जस्टिस मिश्रा को इम्पीच करना नहीं है. वो जानते हैं कि वर्तमान स्थिति में ऐसा करना असंभव है. वो सिर्फ ये चाहते हैं कि ये प्रस्ताव स्वीकार हो जाए ताकि जस्टिस मिश्रा को लेकर संसद में बहस हो सके. ये बहस सिर्फ इसलिए करना चाहते है क्योंकि ये मुसलमानों को बताना चाहते हैं कि जस्टिस मिश्रा आरएसएस के एजेंट हैं. ये मुस्लिम विरोधी हैं. राहुल गांधी को इससे दो फायदे नजर आ रहे हैं पहला ये कि मुसलमानों के बीच ये साबित करना चाहते हैं कि उनके लिए ये सुप्रीम कोर्ट से भी लड़ सकते हैं दूसरा ये कि इससे रामजन्मभूमि मंदिर केस में जस्टिस मिश्रा पर दबाब बन सके. इतना ज्यादा इनकी बेइज्जती करो को ये खुद ही इस्तीफा दे दें.

सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ बयानबाजी सिर्फ संसद के सुरक्षित सदनों में ही की जा सकती है. संसद के अंदर दिए गए बयानों पर कभी कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का मामला नहीं बनता सकता है. और अगर बहस चीफ जस्टिस के इम्पीचमेंट पर हो तो कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को जस्टिस मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अनर्गल आरोप और बयानबाजी करने का खुला मौका मिल जाएगा. नोट करने वाली बात ये है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. क्या साबित हो गए हैं? कांग्रेस पार्टी ने जिस आधार पर इस प्रस्ताव को तैयार किया गया है कि वो तर्कसंगत नहीं है. जो मामले कपिल सिब्बल ने गिनवाए हैं ये सारे मामले जस्टिस मिश्रा के चीफ जस्टिस बनने से पहले के हैं. रही बात उन चार सुप्रीम कोर्ट के जजों की तो उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए. हो सकता है कि एक दो दिन में इनमें से कोई जज सामने आए और इस बात को कह दें. तब कांग्रेस पार्टी क्या कहेगी?

अगर उपराष्ट्रपति विपक्ष के प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो देश में ये पहली बार ऐसा होगा जब चीफ जस्टिस की इज्जत के चिथड़े संसद में उड़ाए जाएंगे. संसद और सर्वोच्च न्यायालय के बीच टकराव होगा. देश की दो सर्वोच्च संस्थाओं का आपस में इस तरह से टकराना प्रजांतत्र के लिए काफी खतरनाक है. ये प्रस्ताव प्रजातंत्र-विरोधी, संविधान-विरोधी और वोट बैंक पॉलिटिक्स से प्रेरित है. इस मामले में सदन में बहस होने की अनुमति नहीं देना, संविधान की रक्षा और उपराष्ट्रपति का कर्तव्य है. सबसे बड़ी बात ये कि देश की जनता जस्टिस मिश्रा के साथ है. प्रजातंत्र में जनभावना का सम्मान करना हर संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारी की ड्यूटी है. इस लिहाज से भी कांग्रेस के महाभियोग प्रस्ताव को कचड़े के डब्बे में फेंक देना चाहिए.

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