जम्मू कश्मीर में विस्थापितों के सांविधानिक अधिकार-डा० कुलदीप चंद अग्निहोत्री

 rightsफ़रवरी के अन्तिम सप्ताह में एक सैमीनार में भाग लेने के लिये मैं जम्मू गया था । सैमीनार का आयोजन जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र ने किया था । सैमीनार जम्मू कश्मीर की स्थिति पर चर्चा करने के लिये ही आयोजित किया गया था , लेकिन इसमें जम्मू कश्मीर के उस हिस्से को केन्द्रित किया गया था , जो १९४७ के आक्रमण में पाकिस्तान ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया था और अब तक भी उसी के क़ब्ज़े में है । २२ फ़रवरी १९९४ को संसद ने एक संकल्प पारित करके इस क्षेत्र को मुक्त करवाने का संकल्प लिया था , लेकिन उस संकल्प की पूर्ति हेतु भारत-पाक में यदा कदा होती रहने वाली द्विपक्षीय वार्ताओं में भारत ने कभी इस प्रश्न को नहीं उठाया । उसी संकल्प को याद करने के लिये अध्ययन केन्द्र ने अपने इस सैमीनार को पाकिस्तान द्वारा हथियाए गये भाग पर केन्द्रित किया था । रियासत का लगभग एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है । इसमें जम्मू संभाग के पंजाबी भाषी क्षेत्र , गिलगित और कारगिल तहसील को छोड़ कर पूरा बलतीस्तान शामिल है ।

सैमीनार से एक अलग यथास्थिति से सामना हुआ, जिसकी अभी मीडिया में ज़्यादा चर्चा नहीं हुई है लेकिन जो अन्दर ही अन्दर आग बन कर सुलग रही है और कभी भी ज्वालामुखी फट सकता है । वह समस्या है राज्य में विस्थापितों के सांविधानिक अधिकारों की । १९४७ में राज्य के जिन हिस्सों पर पाकिस्तान ने क़ब्ज़ा कर लिया था , वहां रह रहे बहुत से हिन्दु सिक्खों को आक्मणकारियों ने मार दिया था , लेकिन इसके बावजूद बहुत से हिन्दु सिक्ख परिवार अपनी जान बचा कर राज्य के उन स्थानों , जिन्हें या तो पाकिस्तानी सेना अपने क़ब्ज़े में नहीं ले सकी , या फिर भारतीय सेना ने उन क्षेत्रों को पाक के क़ब्ज़े से मुक्त करवा लिया था , आ गये थे । जम्मू, श्रीनगर, उधमपुर ,कठुआ इत्यादि इलाक़ों में अब इन विस्थापितों की संख्या लाखों में है । गिलगित व बलतीस्तान से आने वाले कुछ शरणार्थी लेह में भी हैं । जम्मू कश्मीर की विधान सभा में कुल सदस्य संख्या १११ हैं लेकिन चुनाव केवल ८४ स्थानों के लिये ही करवाये जाते हैं , क्योंकि २४ सदस्यों बाला शेष क्षेत्र अभी भी पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है ।

ख़ाली पड़े इन २४ क्षेत्रों के लाखों लोग जो जम्मू श्रीनगर या अन्य स्थानों पर रहते हैं वे एक लम्बे अरसे से मांग कर रहे हैं उनकी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से इन २४ क्षेत्रों में से कुछ सीटों के चुनाव करवायें जायें और उन्हें भी राज्य के संविधान में प्रदत्त राजनैतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अवसर दिया जाये । राज्य सरकार और भारत सरकार दोनों ही उनकी इस मांग की अवहेलना करती रहीं हैं । लेकिन जब आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित हिन्दुओं को देश के किसी भी हिस्से में रहते हुये भी , जम्मू कश्मीर की विधान सभा के चुनावों में अपने अपने विधान सभा क्षेत्र में मत देने का अधिकार दिया गया है तो मुज्जफराबाद , मीरपुर , पुँछ,गिलगित, बलतीस्तान से विस्थापित होने वाले नागरिकों को यह अधिकार क्यों नहीं मिल सकता ? विस्थापित उस व्यक्ति को माना जाता है जिसे , उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ बलपूर्वक स्थान छोड़ने के लिये विवश किया जाता है । जम्मू कश्मीर के अब लाखों विस्थापित जो अपने ही राज्य के एक हिस्से से निकलकर दूसरे हिस्से में रह रहे हैं , अपने राजनैतिक अधिकारों के लिये मुखर हो रहे हैं । युवा पीढ़ी में विशेष रोष देखा जा सकता है । ऐसे अनेक विस्थापित सैमीनार में अपना क्रोध प्रकट कर रहे थे । ताज्जुब की बात है कि चौबीस घंटे कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की बात करती रहती राज्य सरकार इन विस्थापितों के राजनैतिक अधिकारों के प्रति आँखें मूँदे हुये है ।

विस्थापितों का ग़ुस्सा अभी तो अन्दर ही अन्दर सुलग रहा है , लेकिन यदि इन विस्थापितों को ज़्यादा देर राज्य की राजनीति में हाशिए पर रखा गया तो यक़ीनन यह दावानल किसी भी समय फट सकता है । राज्य सरकार का कहना है कि अभी भी इन विस्थापितों को वोट देने और विधान सभा के चुनाव में खड़े होने का अधिकार है । लेकिन असली प्रश्न तो यह है कि उनको उन विधान सभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिये जो उन के लिये ही सुरक्षित रखे गये हैं । राज्य सरकार का कहना है कि वे क्षेत्र पाक के क़ब्ज़े में हैं ,इसलिये वहाँ पोलिंगबूथ कैसे स्थापित किये जा सकते हैं । लेकिन विस्थापितों का कहना है कि जिस प्रकार भारत सरकार ने राज्य की इसी विशेष स्थिति को देखते हुये संविधान में धारा ३७० का समावेश किया था , उसी प्रकार विशेष स्थिति को देखते हुये ये पोलिंगबूथ जम्मू , कंश्मीर व लद्दाख में स्थापित किये जा सकते हैं । असली प्रश्न तो मतदाता का है । इन २४ विधानसभा क्षेत्रों के काफ़ी संख्या में मतदाता भी तो जम्मू व श्रीनगर में ही रहते हैं । फिर जब श्रीनगर कीविधान सभा सीटों के लिये विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के लिये पोलिंगबूथ दिल्ली में बनाये जा सकते हैं तो मुज्जफराबाद व मीरपुर के विस्थापितों के लिये जम्मू श्रीनगर में क्यों नहीं बनाये जा सकते ?

इससे दुनिया भर में एक और संदेश भी जायेगा कि भारत जम्मू कश्मीर के पाक द्वारा क़ब्ज़ाये इलाक़े को वापिस लेने के प्रस्ताव से ही संतुष्ट नहीं है बल्कि उसके लिये प्रयत्नशील भी है । भारत सरकार को जम्मू कश्मीर राज्य की विधान सभा की ख़ाली पड़ी इन २४ सीटों के आनुपातिक हिस्से पर विस्थापितों के अधिकार को मानने की प्रक्रिया प्रारम्भ करनी चाहिये , नहीं तो पहले से ही समस्याओं से घिरे राज्य में एक और समस्या विकारों रुप धारण कर लेगी ।

 

1 COMMENT

  1. Srkar me smvednsheelta ki kmi se logon ke manv aur smvedhanik adhikaron ka ullnghn हो रहा है, शायद सरकारको किसी उग्र आन्दोलन का इंतज़ार है.

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