प्रवासी भारतीय क्रांतिकारियों का स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान

   " जो भरा नहीं है भावों से , बहती जिसमें रसधार नहीं ।
     वो हृदय नहीं है पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।।"
                      विदेश में रहते हुए भी देशभक्ति की अन्त:सलिला जिन के हृदयों में निरन्तर प्रवाहित होती रही , पराधीनता का भाव जिनके मन को प्रतिक्षण कचोटता रहा , जो स्वदेश को स्वतंत्र कराने की समस्या से सतत जूझते रहे , जिन्होंने अन्तत: अपने जीवन को देश के लिये बलिदान कर  दिया - उन्हीं प्रवासी भारतीय सेनानियों  को हम आज स्मरण कर रहे हैं । मातृभूमि  आज भी उनके प्रति श्रद्धापूर्वक अपनी कृतज्ञता प्रगट करती है ।
सैन फ़्रांसिस्को ( अमेरिका ) में ग़दर मेमोरियल हॉल -
 ग़दर पार्टी और  ग़दर मैमोरियल हॉल ने भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम में एक यादगार भूमिका निभाई है । ग़दर मैमोरियल भवन का लम्बा इतिहास है । २३ अप्रैल , १९१३ ई. को एस्टोरिया ओरेगॉन  में - कैलिफ़ोर्निया , कनाडा और ओरेगॉन के कुछभारतीय प्रतिनिधियों ने  " हिन्दी एसोसिएशन ऑफ़ द पैसिफ़िक कोस्ट ऑफ़ अमेरिका " की नींव डालने पर विचार किया । इसका मुख्य कार्यालय सैन फ़्रांसिस्को को चुना । सर्वप्रथम " युगान्तर आश्रम " के नाम से ४३६ हिल स्ट्रीट , सैन फ़्रांसिस्को में भवन बना -जिसकी प्रेरणा कलकत्ता से निकलने वाली क्रांतिकारी पत्रिका " युगान्तर " से मिली थी । यहीं से प्रवासी भारतीयों ने क्रांति की मशाल  जलाई थी और  " ग़दर " नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका को आंदोलन के प्रचार एवं प्रसार का माध्यम बनाया गया । कुछ वर्षों बाद ही यहाँ ५ वुड स्ट्रीट  में स्थायी भवन का निर्माण कराया गया ।
          लाला हरदयाल  , जो सन् १९१२ में  स्टैनफ़र्ड  यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर थे, उन्होंने बर्कले यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित किया । वहाँ उन्होंने भारतीय छात्रों को - ब्रिटिश साम्राज्य से अपने देश को मुक्त कराने के लिये क्रांति का आह्वान किया।  स्वतन्त्रता-सेनानी  बनने को ललकारा । उनके साथ जुड़कर कतिपय भारतीय छात्रों ने  " नालंदा-छात्रावास " की स्थापना की  थी । इनमें एक  थे - करतार सिंह सराभा , जो सन् १९१२ में  उच्चशिक्षा हेतु  कैलिफ़ोर्निया  आए थे । लाला हरदयाल को,उनके क्रांतिकारी विचारों  के लिये , २५ मार्च १९१४ को हिरासत में ले लिया गया। ज़मानत पर छूटने  पर वे स्विट्ज़रलैंड चले गए और वहीं से क्रांति की मशाल जलाते रहे । प्रथम महायुद्ध के समय  - करतार सिंह सराभा , बाबा सोहन सिंह , लाला हरदयाल और रामचन्द्र  आदि ने  एक दीन , एक धर्म होकर, " वन्दे मातरम् " का नारा उठाया था । उन्होंने देशभक्ति के गीतों से जन जन में जोश भर दिया । इसकी एक झलक देखिये  -
               " मुसल्माँ हैं कि हिन्दू , सिक्ख हैं या किरानी हैं ।
                 देश के जितने निवासी हैं , सब हिन्दुस्तानी हैं।।
                                  इधर हमको शिकायत है,भरपेट रोटी न मिलने की ।
                                                    उधर इंग्लैंड वाले ऐश जादवानी हैं ।।
                कोई नामो निशाँ पूछे, तो। ग़दरी उनसे कह देना ।
                वतन हिन्दोस्ताँ अपना , कि हम हिन्दोस्तानी हैं ।।"
                                                     - करतार सिंह सराभा 
साहसी स्वतंत्रता-सेनानी करतार सिंह सराभा केवल १५ वर्ष की अल्पायु में ही देश के लिये  समर्पित हो गए थे । उन्होंने     क्रांतिकारियों से मिलकर   पंजाब के युवकों को  क्रांति हेतु उकसाया था । करतार सिंह  सराभा १९ वर्षीय आयु में १६ नवंबर, १९१६ को फाँसी पर चढ़कर शहीद हो गए थे । शहीदे आज़म भगतसिंह  ने  भी उनसे प्रेरणा पाकर , उनके अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प लिया था ।  कैलिफ़ोर्निया प्रांत के  स्टॉक्टन नगर में स्थित  गुरुद्वारे में भी अनेक स्वतन्त्रता सेनानियों के बृहदाकार  चित्र लगे हैं , जिन्होंने  आज़ादी  के इस यज्ञ में अपने जीवन की आहुति  दे दी थी ।
          अब  " ग़दर हॉल " के संग्रहालय , पुस्तकालय , स्वतन्त्रता-सेनानियों के चित्र , ग़दर-पार्टी के काग़ज़ात , फ़ाइलें  और ग़दर के गीतों की गूँजें हैं । भारत सरकार  एवं स्थानीय भारतीयों ने मिलकर इस स्मारकों बनाया है ।  इस नये भवन के शिलान्यास के लिये  सन् १९७४ में  भारत सरकार के विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह यहाँ आए थे । इसके उपरान्त सन् १९७५ में भारतीय राजदूत श्री टी.एन.कॉल ने इसका उद्घाटन किया था ।  आजकल भारतीय कॉन्सुलेट , सैन फ़्रांसिस्को की ओर से होने वाले सभी उत्सव भी इसी भवन में मनाए जाते हैं । स्वतन्त्रता-दिवस , गणतन्त्र-दिवस और हिन्दी-दिवस आदि  समारोह यहीं पर धूमधाम से मनाए जाते हैं।
           विदेशों में अन्यत्र भी प्रवासी भारतीयों ने आगे बढ़कर बड़े उत्साह एवं साहस से क्रांतिकारी क़दम उठाए थे । लंदन  से  क्रांति का बिगुल बजाया था - श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा ने । श्री रासबिहारी बोस ने जापान में , नेताजी सुभाष बोस ने  सिंगापुर  में , जर्मनी में मैडम भीकाजी कामा ने  इस मशाल को जलाए रक्खा । इंग्लैंड में साम्राज्यवाद  के प्रतीक सर कर्ज़न वायली को सरेआम गोली मार कर वीर मदनलाल ढींगरा ने इस आज़ादी के आन्दोलन का विश्व भर में सिर ऊँचा कर दिया था ।  दंडस्वरूप  उनको  वहाँ १८ अगस्त सन् १९०९ को फाँसी दे दी गई थी । बर्लिन में राजा महेन्द्रप्रताप सिंह सक्रिय रहे थे । 

बर्लिन-समिति ” के माध्यम से वे क्रांतिकारियों की सहायता करते रहे । मैक्सिको में श्री मानवेन्द्रनाथ राय प्रयत्नशील रहे । श्री रिषिकेश लट्टा भी लाला हरदयाल के सहयोगी रहे थे , जो ” ग़दर-पार्टी ” के संस्थापक सदस्य थे । उनके भारत आने पर रोक लगी हुई थी । सन् १९३० में ईरान में उनका स्वर्गवास हो गया ।
इस प्रकार विदेशों में रहते हुए भी अनेकों भारतीयों ने भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाने के संघर्ष में अनेकों यातनाएँ सहते हुए स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर अपने प्राण निछावर कर दिये थे । इस स्वातन्त्र्य – पर्व पर उन सभी वीर क्रांतिकारियों को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित है , जो नींव के पत्थर बने , जिनके बलिदानों ने हमें स्वतन्त्र-भारत में साँस लेने का अवसर दिया । महाकवि श्री गुलाब खण्डेलवाल जी के शब्द मुझे उनके लिये उपयुक्त लगते हैं –
” गन्ध बनकर हवा में बिखर जाएँ हम ,
ओस बनकर पँखुरियों से झर जाएँ हम ,
तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या ,
तेरा आँगन तो ख़ुशबू से भर जाएँ हम ।।
-०-०-०-०-०-
– प्रो. शकुन्तला बहादुर

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