महंगाई बढ़ने का सिलसिला जारी है। इस आलम में महंगाई कम कैसे होगी या फिर इस पर प्रभावी नियंत्रण कैसे लग सकेगा, इसे अब करके दिखाना होगा। प्रधान समस्या है, राष्ट्रीय सकल उत्पादन में कृषि का घटता योगदान। कृषि में भारत जब तक आत्मनिर्भर नहीं हो जाता तब तक आम जनता की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी और उपभोक्ता उत्पादन पर केंद्रित अर्थव्यवस्था मध्य वर्ग की जेब तक ही सीमित रहने के लिए अभिशप्त रहेगी। चुनाव के पहले ही अलनीनो के रूप में आने वाला संकट स्पष्ट था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अगर वाजपेयी सरकार महंगाई पर नियंत्रण कर सकती है तो इस बार फिर राजग सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती। लेकिन महंगाई पर नियंत्रण करना भाषण देने जितना आसान नहीं है। थोक मूल्य आधारित महंगाई दर मई में 6.01 फीसदी हो गई है। इससे पहले अप्रेल में यह 5.2 फीसदी थी। दिसम्बर 2013 के बाद यह सबसे अधिक है। मई में खाद्य महंगाई भी 8.64 से बढ़कर 9.5 फीसदी हो गई। यह तो थोक दाम है। आम उपभोक्ता पर महंगाई की मार इससे बहुत अधिक है। विशेषकर गरीब आदमी का तो जीवन दूभर हो गया है। इराक के संकट ने समस्या को और भी अधिक गंभीर कर दिया है। केन्द्र सरकार को जुलाई के दूसरे सप्ताह में बजट पेश करना है। लेखानुदान जुलाई तक के खर्च तक ही है। इससे पहले बजट पारित कराना होगा। यदि 7 जुलाई से संसद का सत्र प्रारंभ हो रहा है तो रेल बजट 8 जुलाई को पेश होगा। रेल किराया यात्रियों और माल ढुलाई दोनों का बढ़ने वाला है। इसके स्पष्ट संकेत रेल मंत्री सदानंद गौड़ा दे चुके हैं। कहा जा रहा है कि लंबे अर्से से रेल भाड़ा नहीं बढ़ा है और रेलवे का अर्थ संकट गले तक आ चुका है। पैसेंजर सब्सिडी का आंकड़ा 26 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इसे देखते हुए यात्री किराया और माल भाड़ा दोनों में बढ़ोत्तरी किए जाने की जरूरत है।
इस स्थिति का असर महंगाई पर अत्यंत गंभीर होगा। रेल भाड़ा, पेट्रोल एवं डीजल के दाम बढ़ने से हर चीज महंगी हो जाएगी। सूखे का खतरा भी मंडरा रहा है। 2009 में जब अलनीनो की स्थिति बनी थी तो लंबी अवधि में बारिश 22 फीसदी कम रही थी। ऐसे में खाद्य उत्पादन 7 फीसदी कम हो गया था। प्याज के दाम एक माह में लगभग तीन गुना बढ़ गए हैं। नासिक मंडी की हड़ताल समाप्त होने मात्र से समस्या हल नहीं होगी। इस दिशा में सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय (एमईपी) कर दिया है और आलू का दाम भी तय करने जा रही है। एमईपी वह दर होती है जिसके नीचे निर्यात की अनुमति नहीं होती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता महंगाई पर नियंत्रण है। जाहिर है ऐसी स्थिति में ब्याज दरों में किसी प्रकार की नरमी की गुंजाइश आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में भी कठिन ही नजर आ रही है। इसका औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल असर होगा।
पांडे जी,आपने जिस विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं,मेरे जैसा आम आदमी शायद उस विषय पर ज्यादा कहने की स्थिति में नहीं है,क्योंकि मैं अर्थशास्त्री नहीं हूँ.जब मैं आपका यह आलेख पढ़ रहा हूँ,यात्री किरायेऔर माल भाड़े में रेल बजट के पहले ही वृद्धि की जा चुकी है.यह उसी पार्टी की सरकार है और खासकर उन्ही नमो की सरकार है,जो पिछले दरवाजे से की हुई इस तरह की वृद्धि के सबसे कटु आलोचक थे.खैर समय बदलते और साथ साथ मानव स्वभाव बदलते देर नहीं लगता.
अब बात आती है,महंगाई रोकने की,तो ऐसा कोई भी कदम अभी तक तो नहीं उठाया गया है,जिससे लगे कि सरकार इस दिशा में गंभीर है.अब तो आम बजट की प्रतीक्षा है,उससे कुछ आभाष होगा कि आखिर नमो की सरकार क्या करना चाहती है?अभी तो बुलेट ट्रेन और गुजरात के मुख्य मंत्री के निजी जेट खरीदने की बात सामने आई है.ये शुभ लक्षण नहीं हैं.