अमानवीय व्यवहार को बढ़ावा देता कोरोना वायरस(कोविड-19)

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कोरोना वायरस(कोविड-19) जैसी वैश्विक महामारी से हम भयभीत है, सशंकित है. जिसके कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं और यह जरुरी भी है. लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर मजदूरों और गरीबों के साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है, जो भारत जैसे लोकतान्त्रिक और गंगा-जमुनी तहजीब वाले देश में अपराध की श्रेणी में आता है. कोरोना वायरस(कोविड-19) ने मानवीय मूल्यों को ध्वस्त करने का काम किया है. कोरोना वायरस(कोविड-19) की मार से सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग प्रभावित हुआ है. शहर से लेकर गाँव तक कोरोना की वजह से मजदूर वर्ग को आर्थिक तंगी और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के वजह से हुए लॉकडाउन में कई मजदूरों की नौकरी चली गयी है. नौकरी जाने के बाद भूखे पेट सोने की नौबत आ गयी तब मजदूर वर्ग गाँव के तरफ रुख किया है, जहाँ उसके गाँव के लोगों द्वारा कोरोना के डर के वजह से उनको उसके घर में अकेले रहने नहीं दिया जा रहा है. गाँव से बाहर रहने पर विवश किया जा रहा है. कमोवेश सभी राज्यों में मजदूरों के साथ यहीं बर्ताव किया जा है. जातीय के आधार पर असमानताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरल शब्दों में कहें तो सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है. यह स्थिति सभ्य समाज में कतई स्वीकार करने योग्य नहीं है.

कई गांवों में कोरोना वायरस के बारे में कम जानकारी होने के वजह से भी इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ कोरोना वायरस महामारी में कई सामंती लोगों को अपना हित साधने का मौका मिल गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों का नेगेटिव रिपोर्ट होने के बाद भी उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. जातीय वर्चस्व के आधार पर भी गाँव में रहेगा या बाहर रहेगा यह तय किया जा रहा है. कई गांवों में बाहर से आये मजदूरों को कोरोना उपनाम दे दिया गया है. उनके परिवार के लोगों के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है. कई परिवार भी घर से बाहर रहने पर मजबूर हो गए हैं. कोरोना काल में बाहर से आए मजदूरों के परिवार को बहिष्कृत परिवार की श्रेणी में डाला जा रहा है. आने वाले समय में यह वायरस जातीय संघर्ष का कारण बन सकता है. इस महामारी में इस तरह की समस्या पर सरकारों को जल्द से जल्द ध्यान देने की जरुरत है. तथा साथ ही सामाजिक स्तर पर इस समस्या पर बहस करने की तत्काल जरुरत है.

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