अशोक गौतम
….वे गुजरे तो अच्छा लगा कि चलो एक दिमाग खाने वाला तो गया। असल में आदमी तभी तक अच्छा लगता है जब तक वह खिलाता रहे। कोई खाने लगे तो बंदा दूसरे दिन ही उसके जाने की कामना करने लगता है।
और भगवान ने मेरी सुन ली। उनके जाने के बाद मैंने ही नहीं उनकी पत्नी ने भी आशा है राहत की सांस ली होगी॥ पर उनके जाने के बाद पता चला कि वे गए तो गए ,पर साथ में फ्री वाला सिम भी लेते गए।
और कल उनका फोन आ गया,’और भाई, क्या हाल हैं? दीवाली की तैयारियां कैसी चल रही हैं? त्योहार के अवसर की स्कीमें तो बाजार में आ ही गई होंगी! सच कहूं! माइक्रोवेव ओवन खरीदने की तमन्ना तो दिल मे ही रह गई। वे स्कीम में आए कि नहीं! त्योहार के चलते कैसे सजे हैं बाजार? घर बनाने के लोन पर बैंक वालों ने ब्याज दर घटाई कि नहीं?’ उनकी आवाज पहचानने के लिए मुझे अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी। उन्होंने पूछा तो परेशानी हो गई। अब पूछेंगे कि मेरी पेंशन का क्या हुआ! गे्रच्युटी उनकी घरवाली को मिली कि नही! उनके घर में चार दिन से गैस खत्म है और मैं कोई जुगाड़ नहीं कर रहा हूं क्यों? उनके प्राण नहीं निकल रहे थे तो मैंने उनका मन रखने के लिए कि उनको इस रोमेंटिक पीड़ा से मुक्ति मिले, उनके घर की सारी जिम्मेवारी अपने ऊपर ली थी कि मित्र अब जाओ! यहां की चिंता मत करो! मैं सब संभाल लूंगा। और मजे की बात! बंदे अपने घर की जिम्मेवारी मुझ पर डाल मजे से रूखस्त हो लिए, हंसते हुए।
पर उन्होंने अपने घर की समस्याओं के बारे में कुछ नहीं पूछा तो मैं डरते डरते डर से उबरा। मैंने खुद को संभालते कहा,॔ ठीक हूं। और आप?क्या चल रहा है ऊपर! हिसाब किताब हो गया क्या! स्वर्ग मिला या …. संवाद जारी रखनी था सो यों ही पूछता रहा तो वे बोले,॔ यार, एक मुश्किल है!’ मैं चौंका, हद है! ये साली मुश्किलें तो मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़तीं तो लोग समय से पहले मुश्किलों से निजात पाने के लिए आत्महत्या क्यों करते हैं?॔ क्या, अब क्या हो गया!’
॔ यार, महीना हो गया लाइन में लगे हुए। अब तो खड़े खड़े टांगें भी दुखने लगी हैं। इन टांगों की किस्मत में तो जैसे खड़े रहना ही लिखा है। नीचे था तो गैस, बिल , अस्पताल , बस की ,राशन के डीपू की लाइन में खड़ा रहता था। सोचा था मरने के बाद तो कम से कम लाइनों में खड़ने से मुक्ति मिलेगी, पर आम आदमी को मरने के बाद भी लाइनों से मुक्ति कहां मेरे दोस्त!’ उन्होंने जिस लहजे में कहा तो सच कहूं मन की बड़ा धक्का लगा,॔ तो????’
॔ तो क्या! मेरा बैंक अकाउंट अभी बंद तो नहीं किया न?’ तो मैंने गुस्साते कहा,॔ उसमें था ही क्या जो उसे बंद करवाने के लिए अर्जी लिखनी पड़ती,’ मेरे घूरने के तुरंत बाद उन्होंने फोन पर ही हाथ जोड़ते कहा,॔यार! आप लोगों का अहसान जिंदा जी तो भूला नहीं पाया, मरने के बाद भी नहीं भूला पाऊंगा,’ मतलब अब फिर पंगा, ‘ तो उसमें कुछ पैसे डाल दो। यहां भी पिछले दरवाजे से ही सब हिसाब हो रहे हैं। सोचा था, मरने के बाद तो चैन मिलेगा पर लगता है मरने के बाद मुश्किलें और ब़ गई हैं। जो महायात्रा पर खाली हाथ निकले हैं वे कह रहे हैं कि महीनों से लाइन में ज्यों के त्यों हैं। क्या है न कि चित्रगुप्त के इलाज हेतु अमेरिका जाने पर यमराज के पास अपने शहर से कोई अत्री नाम का हेड क्लर्क डेपुटेशन पर आया है। उसने तो तबाही मचा कर रख दी है। सारे काम पांच बजे के बाद ही कर रहा है। तुम्हारे विभाग का बता रहे हैं। उससे जान पहचान हो तो प्लीज!’ उन्होंने मरने के बाद भी जिस पीड़ा से कहा तो सच कहूं मेरा कलेजा ही नहीं , और भी बहुत कुछ मुंह से बाहर आ गया। कुछ देर तक सोचने के बाद मैंने पूरी आत्मीयता से कहा, ‘अच्छा वही! यहां खून पीकर उसका मन नहीं भरा जो अब …..पर वह तो बिन लिए अपने बाप का काम तक नहीं करता ! कब तक है वह वहां पर?’ तो वे और भी उदास होते बोले,’राम जाने! लग रहा है चित्रगुप्त का इलाज लंबा खिच जाएगा। हो सके तो प्लीज! उसका नंबर देता हूं। अब तो टांगें लाइन में खड़े खड़े जवाब देने लगी हैं।’
‘कोई फायदा नहीं! कहो ,आपके बैंक अकाउंट में कितने डालूं?’ मैंने अपनी जेब पर हाथ रखते पूछा तो वे मेरे अहसानों के नीचे दबते ऐसे बोले जैसे जिंदा जी भी किसी के अहसानों के नीचे नहीं दबे नहीं बोले होंगे,’तो कम से कम दो चार हजार तो डाल ही दो! आगे भी पता नहीं कहां कहां देने पड़ें। मेरा जब पुनर्जन्म होगा तो वादा करता हूं सबसे पहले तुम्हारा ही कर्ज लौटाऊंगा!’
अशोक गौतम