असम के कोकराझाड़ में लगी आग धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में फ़ैल गयी |यह सब कैसे हो गया ? आम तौर पर गुटीय हिंसा और राजनैतिक संघर्षों से दूर, पूर्वोत्तर को क्या हो गया ? असम में उल्फा और नक्सलवाद के बाद ये गुटसंघर्ष को किसने पैदा कर दिया ? ऐसे जाने कितने ही सवाल आम आदमी के दिमाग को मथ रहे हैं |पहले ही देश आर्थिकआतंकवादियों ( घोटालेबाजों ) के हमलों से बेज़ार है ऊपर से आतंरिक कलह ,लगता है देश को तोड़ ही डालेगी ! पूर्वोत्तर की इस घटना को कथित सांप्रदायिक पार्टियों से जोड़ने ही कोई कोशिश न किया जाना भी हैरानी भरा है ! शायद इसका एक यही कारण रहा हो कि पूर्वोत्तर में कांग्रेस प्रभावी है और हाँ असम में तो उसी की सरकार है | केंद्र से लेकर प्रदेश तक सब कुछ हाथ में होते हुए भी हिंसात्मक घटनाओं का बढ़ते जाना कांग्रेस की प्रत्यक्ष हार है |नए गृहमंत्री बोल तो कुछ भी जाते हैं , लेकिन कर कुछ भी नहीं पाते | जिसकी ताजपोशी धमाके के साए में हुई हो उससे उम्मीद भी बेईमानी है |
पूर्वोत्तर के नागरिकों के प्रति भारत के हिंसात्मक रुख को देखकर लोकतंत्र के डूब जाने का अहसास होता है |हिंदुस्तानियों का हिंदुस्तान में ही क़त्ल हो रहा है |आखिर इस मानव निर्मित आपदा का मूल क्या है कभी सोचा गया है ? सरकार ने भी इस त्रासदी के कारणों का पता लगाना उचित नहीं समझा |एक तरफ हम स्वतंत्रताप्राप्ति की वर्षगांठ मना रहे हैं लेकिन दूसरी ओर देश राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं में जल रहा है | अभी एक दिन मेरे एक मणिपुर के दोस्त ने मुझे फोन किया , उसने कहा क्या मैं घर चला जाऊं यहाँ दिल्ली में मुझे बहुत डर लग रहा है ? उसकी बातें सुन मेरा मन आशंकाओं के सागर में डूबने लगा | जिस दिल्ली ने हजारों विदेशियों को अपने दिल पनाह दी हो उसकी सहिष्णुता पर प्रश्नचिन्ह लगना मुझे नागवार लग रहा था |मैंने उस दोस्त को तो समझा दिया , लेकिन कितनों को समझाया जा सकता है |
उत्तर , दक्षिण , पश्चिम हर जगह से पूर्वोत्तरी पलायन करने पर मजबूर हैं क्योंकि वह महफूज़ नहीं हैं |वैसे यह आज नया नहीं है इससे पहले भी असम में उल्फा और असम गण परिषद ने बांग्लादेशियों के साथ देश के अन्य हिस्सों से आये हुए लोगों का विरोध किया था |मुम्बई में उत्तर भारतीयों के साथ घटी घटनाएँ अभी ताजा है |इससे एक बात तो सीधी साबित होती है कि राजनैतिक दृष्टिकोण शून्य है |लोकतंत्र अंधा हो गया है |उल्फा पर अंकुश लगाकर और असम गण परिषद को कमजोर कर कांग्रेस असम में सत्तासीन तो हो गयी लेकिन असम जलता रहा |कभी किसी ट्रेन विस्फोट में तो कभी बोडो समुदाय के कथित संघर्ष में | सिर्फ असम ही नहीं मणिपुर में भी नागा और कुकीज के बीच का संघर्ष कम भयावह नहीं रहा |प्राकृतिक सौंदर्य के धनी पूर्वोत्तर को भारत ने खुद हाशिए पर डाल रखा है |केंद्रीय राजनीति से दूरी ,भाषा , भूषा ,रंग, रूप में विविधता ने तो इसे अलग करनेमे महती भूमिका निभायी है | लेकिन कई बार भारत का सिर गर्व से ऊँचा करने वाली ऍम.सी.मैरीकाम पूर्वोत्तर की ही बेटी है |
अब उन कारणों पर नज़र दौड़ाते हैं जिनसे असम में आग लगी |पहला यह कि बंगलादेशियों ने अनाधिकृत रूप से असम में घुसकर वहाँ बसेरा बना लिया | दूसरा राजनातिक लाभ के लिए इस मुद्दे को दबाया गया | तीसरा राजीव गाँधी द्वारा १९८५ में किये गये समझौते को लागु नहीं किया गया |इसके अलावा बोडो समुदाय की उपेक्षा भी इसका अहम कारण बनी |माना कि सोशल साइट्स ने खून खराबे को हवा दी , लेकिन माहौल तो हमने ही पैदा किया |इंडिया अगेंस्ट करप्शन को भी इसी सोशल मीडिया ने प्रोत्साहित किया , इसने भारी जनमत और सरकार के प्रति रोष के बावजूद भी सरकार को नहीं गिरा दिया ! किसी भी अफवाह के लिए एक धरातल की ज़रूरत होती है जिसे हमने अपनी गलतियों से निर्मित किया |सोशल साइट्स के सिर हिंसा का ठीकरा फोड़ कर सरकार बच तो सकती है , लेकिन उसे अपने गिरेबान में झांककर देखने की ज़रूरत है | आखिर किसी भी राष्ट्र में सरकार की आवश्यकता क्या है ? वो सजावट का सामान नहीं जिससे श्रृंगार किया जाए |
रही बात भारत सरकार के कुछ करने की तो वह पाकिस्तान में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार को देखकर भी मौन है , शायद उसे डर है कहीं उसके सेकुलर होने पर प्रश्नचिन्ह न लग जाए ? जो भी हिंदू भारत आकर बसना चाहते हैं उन्हें कानून के हथियार से डराकर वापस नर्क में जाने पर विवश किया जाता है |जो हिंदू ,सिक्ख यहाँ आकार पहले ही बस गये उन्हें यहाँ की नागरिकता ही नहीं दी गयी | लेकिन बांग्लादेशियों को सिर माथे बिठाया गया |अब इस ऊछेपन को क्या कहा जाए ?दोगली राजनैतिक मानसिकता भारत को एक भयंकर त्रासदी की ओर लिए जा रही है |पूर्वोत्तर विवाद तो महज शुरुआत भर है |भारत ,भारतीयता , हिंदू और हिन्दुस्तानी की बात कहने वाली भाजपा इस मुद्दे पर ठण्डी दिखाई पड़ रही है , शायद वह खुद आतंरिक कलह से जूझ रही है |इससे पहले इस सरकार में भी अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा उठा है , क्या किया इस पार्टी की सरकार ने , यही न कि चंद अमीरों की जिंदगी के लिए हजारों आम भारतीयों की जिंदगी दांव पर लगाते हुए आतंकवादियों से सौदा कर डाला | असम में हिंसा प्रभावित लोगों के लिए भाजपा के सांसदों द्वारा एक माह के वेतन दान का एलान स्वागतयोग्य है |धन से भूख तो मिट सकती है लेकिन दर्द नहीं जो उन्हें इस त्रासदी ने दिया है | अगर इन लोगों के लिए कुछ करना ही है तो कोई ऐसी पहल की जाए जिससे बोडो समुदाय को उसका हक मिले और साथ ही मुख्य रूप से प्रयास किया जाए जिससे पूर्वोत्तर के लोग असल में अपने से लगे | क्योंकि पूर्वोत्तर को आधे से ज्यादा भारत अपना नहीं समझता | यह दुष्कर ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं |किन्तु जब तक देश के आका कठपुतलियों की तरह डोर के सहारे रहेंगे देश गर्त की ओर खिसकता रहेगा |दुर्दिन सारे जहाँ से अच्छे हिन्दोस्तान को नफरत और ज़लालत के शिकंजे में कस लेंगे |