बेटे को दें स्वर्ग सुख, बेटी भोगे नर्क |
लानत ऐसी सोच पर, करती इनमे फर्क ||
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कम अकलों की वजह से देश हुआ बरबाद |
बेटी को जो समझते, घर का एक अवसाद ||
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बेटी हरेक सुलक्षणी, बेटे अधिक कपूत |
बेटी घर को पालती, अलग जा बसे पूत ||
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रहती है ससुराल में, मन भटके निज ग्राम |
माँ-पापा के हाल ले, किसी तरह अविराम ||
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अधिक पुत्र उद्दण्ड हैं, बेटी ढकती पाप |
किन्तु पुत्र की चाहना, रखते क्यों माँ- बाप ||
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घर में भाई मारता, बाहर लुच्चों से तंग |
घर बाहर दोनों जगह, बेटी बनी पतंग ||
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क्या माता और पिता भी, दोनों होते एक |
कन्या हो यदि कोख में, देते दुर्जन फेंक ||
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जिस माँ के वात्सल्य का,गाते गान पुराण |
माता से डायन बने, ले बेटी के प्राण |
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झूठे मान – विधान पर, बेटी तोली जाय |
कन्या भ्रूणविनाश की, परम्परा की जाय ||
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कन्या आती कोख में, लेते हैं जंचवाय |
माँ-बापू एकराय से, देते कत्ल कराय ||
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बंद करो अपराध यह, बेटी है हर नेक |
बेटी प्रेम प्रसाद है, हीरा है हर एक ||
TO DEAR WRITER——PAKKA TERE LADKE NE TUJHE JOOTE JOOTE MARA HOGA TABHI AISI KAVITA LIKHI.
बेटी हरेक सुलक्षणी, बेटे अधिक कपूत |
बेटियों की तरीफ़ करते करते अक्सर लग जोश मे बेटो को लोग ग़लत साबित करने लगते है, ये भी उतना ही ग़लत है जितना बेटियों को कोसना।बेटे भी पराये नहीं होंगे यदि उनसे इतनी उम्मीदे न बाँधें और बहू के आते ही असुरक्षा की भावना मे न बह जायें।