मनमोहन कुमार आर्य,
आज भारत माता के वीर, निर्भय साहसी और अद्भुद देशभक्त शहीद पं. चन्द्रशेखर आजाद जी का बलिदान दिवस है। चन्द्रशेखर आजाद जी का देश की आजादी में प्रमुख योगदान था। उन्होंने देश को आजाद कराने का सही रास्ता चुना था और उसके लिए देश की स्वतन्त्रता के पावन यज्ञ में प्राणों की आहुति देकर अपने मनुष्य जीवन का बलिदान किया। उन्होंने अंग्रेजों की प्रसशा कर अन्यों की तरह सुख सुविधायें प्राप्त नहीं की थी। उनका उद्देश्य अपने कार्य से दूसरों की तरह राजनीतिक लाभ उठाना भी नहीं था। उनके परिवार का भी कोई उत्तराधिकारी उनके इस कार्य से लाभान्वित नहीं हुआ। उनके कार्य से देश को सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से भी कोई हानि नहीं हुई। अतः उनका बलिदान देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं अविस्मरणीय है। पं. चन्द्रशेखर आजद ने देश से कुछ भी लिया नहीं अपितु इतना कुछ दिया है कि देशवासी किसी भी रूप में उनका ऋण अदा नहीं कर सकते। हम उनके बलिदान की घटना व देशभक्ति के कार्यों को पढ़कर अभिभूत होते हैं।
आज की युवा पीढ़ी का आदर्श पं. चन्द्रशेखर आजाद को होना चाहिये था। जिन लोगों ने देश पर राज किया उन्होंने उन्हें उनका उचित स्थान न देकर देश को भोगवाद में डाला। आज देश की युवापीढ़ी के आदर्श न देशभक्त शहीद हैं न भारतीय सेना के वह सिपाही होते हैं जो हमारी रक्षा व सुख के लिए अपना जीवन बलिदान करते हैं अपितु वे हैं जो क्रिकेट खेलते हैं या जो फिल्मी कलाकार हैं। यह सभी करोड़ों अरबो में स्वामी है। देश के सुधार में शायद ही कोई अपना धन किसी रूप में दान करता हो। सभी देश विदेश में सैर सपाटे करते और सुख भोगते हैं। इन्हें हमारे शहीद, देशभक्त किसान व मजदूर शायद ही कभी याद आते होंगे? इस विचारधारा व भावना से देश का कल्याण होने के स्थान पर हम देश को पराधीनता की ओर ले जा रहे हैं, ऐसा हम अनुभव करते हैं।
हमारी दृष्टि में देश के सबसे पूजनीय व आदर्श हमारे आजादी के शहीद व सेना के बलिदान की भावना रखने वाले सैनिक व शहीद ही हैं। हम सभी देशवासी अपने देश के किसानों व मजदूरों के भी आभारी व ऋणी है जिनके द्वारा हमारा यह जीवन व प्राण चल रहे हैं। हम इन लोगों की पदे पदे उपेक्षा करते व इनका शोषण करते हुए प्रतीत होते हैं। किसान हमारे लिए ही ऋण लेकर खेती करते हैं और अच्छी फसल न होने व ऋण न चुका पाने के कारण उन्हें आत्महत्या तक करनी पड़ती है। मजदूर भी सारी जिन्दगी अभाव व बदहाली का जीवन बिताते हैं। महर्षि दयानन्द ने लिखा किसान को राजाओं का राजा कहा है और वस्तुतः वह है भी। ऋषि ने कहा है कि ईश्वर की इस सृष्टि में अन्याय व शोषण की व्यवस्था अधिक समय तक नहीं चल सकती। इसके लिए हमें सत्य मार्ग का अनुसरण करना होगा और सत्य को जानकर अपने जीवन को सत्यमय व सत्यगुणों से विभूषित करना होगा।
सत्य ज्ञान हमें केवल वेदों में मिलता है। सत्य ज्ञान से दूर आज की जनता सुख भोग के पीछे भाग रही है जबकि वेद कहते हैं कि मनुष्य का जीवन ईश्वर, जीवात्मा व सृष्टि के सत्य स्वरूप को जानकर न्यायपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना है। ऋषि दयानन्द इस विषय में अनेक सबल तर्क देते हुए संसार से जा चुके हैं परन्तु हमने उनके सन्देश पर कभी संजीदगी से विचार ही नहीं किया। ऐसा न करने पर हमारा भविष्य अर्थात् परजन्म में क्या हाल होगा, हम कल्पना भी नहीं कर सकते। ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे जिससे हम जीवन में सत्य को जानकर उस मार्ग पर चल सकें और दूसरों को भी प्रेरणा देकर उन्हें भी सत्यमार्गानुयायी बना सकें।
हम पं. चन्द्रशेखर आजाद जी के बलिदान दिवस पर उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह सभी मनुष्यों को असत्य मार्ग का त्याग कर सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा करें। सभी मनुष्यों के कल्याण में ही हमारा कल्याण है, यह हमें विश्वास होना चाहिये।
हम यह भी अनुभव करते हैं कि आज की स्कूली शिक्षा ने युवा पीढ़ी में से देश भक्ति की भावना को समाप्त नहीं तो अतिक्षीण किया ही है। युवाओं में देशभक्ति का वह जज्बा दिखाई नहीं देता जो नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, वीर सावरकर, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, पं. चन्द्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह आदि में था। पं. रामप्रसाद बिस्मिल जी की यह पंक्तियां भी आज के समाज को देखकर असफल हुई लगती हैं।
पं. चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भारवां गांव में माता जगरानी देवी जी और पिता सीताराम तिवारी जी के यहां 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था। आजाद जी क्रान्तिकारी थे और उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किया था। उन्होंने ऋषि दयानन्द भक्त क्रान्तिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन को पुनर्गठित कर हिन्दुस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) बनाई थी। शहीद भगत सिंह एवं अन्य क्रान्तिकारी उनके सहयोगी थे। पं. चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी, 1931 को अंग्रेजी पुलिस से लड़ते हुए स्वयं की पिस्तौल की आखिरी गोली से शहीद हुए थे। उन्होंने ब्रिटिश शासकों के अपवित्र हाथों से अपने शरीर को दूषित न कराकर स्वयं को ही अपनी पिस्तौर की आखिरी गोली मार ली थी और शहीद हो गये थे।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले।
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।।