क्रिकेट और राष्ट्रवाद

यह एक सुखद संकेत है कि राष्ट्रीय समाचार चैनल “जी न्यूज” ने आईसीसी के चैंपियन ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट में भारत-पाक मैच का विरोध करके राष्ट्रवाद की सर्वोपरिता का परिचय कराया है । बर्मिंघम ( इंग्लैंड ) में 4 जून को खेलें गये दो चिरप्रतिद्वंदी टीमों के मैच का अपनी सभी चैनलो पर सीधा प्रसारण न करके जी न्यूज ग्रूप ने मीडिया जगत को आश्चर्यचकित कर दिया है। आज जब क्रिकेट का जनून पूरे देश मे बढ़-चढ़ कर छाया हुआ है और आधुनिक समाज में प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है, ऐसे वातावरण में “जी न्यूज” ने शत्रु देश पाकिस्तान के साथ खेलें गए मैच का प्रत्यक्ष विरोध करके एक आदर्श प्रस्तुत करा है।
वैसे भी क्रिकेट जो वर्षो पुराना एक सभ्य समाज का खेल कहलाता था पिछले कुछ वर्षो से वह एक अरबो-खरबों का अवैध धंधा भी बनता जा रहा है।इस धंधे में देश की भावी पीढ़ी अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों से विमुख हो कर भोगवादी संस्कृति में धँसती जा रही है।जिसके परिणामस्वरुप भटका हुआ युवा वर्ग बिना परिश्रम के करोड़पति बनने की लालसा में अपने स्वयं के सामर्थ को भुला कर सकारात्मक कार्यो से पृथक हो रहा है। जिससे क्रिकेट का उद्योगीकरण होने के कारण लाखो लोगों के स्वार्थ इससे जुड़ गए है। शत्रु देश पाकिस्तान के साथ खेलने का विरोध राष्ट्रीयता के भाव का ही मुख्य बिंदू है। परन्तु जब स्वार्थ आ जाते है तो राष्ट्रीयता का बोध अपनी प्राथमिकता खो देता है। क्रिकेट को मात्र मनोरंजन व व्यापार बनाने वाले क्या राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता के भाव को कभी समझ पायेंगें ?
सामान्यतः हमारे यहां कई वर्षो से देखा जाता आ रहा है कि जब भी भारत व पाकिस्तान का क्रिकेट या अन्य कोई मैच होता है तो जब पाक जीतता है तो प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए ये कट्टरपंथी पटाखे आदि छोड़ते है और जब पाक टीम हारती है तो अपनी कुंठा को ठंडा करने के लिए साम्प्रदायिक दंगे भड़का कर उसकी आड़ में लूटमार व आगजनी भी करते है।क्या यह उचित है कि खेल की आड़ में पाकपरस्त तत्व पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये और अपनी घृणास्पद मानसिकता का प्रदर्शन करके साम्प्रदायिकता भड़कायें।
अधिक विस्तार में विवरण न देते हुए केवल पिछले वर्ष के ही समाचार पत्रो के अनुसार कोलकत्ता (19 मार्च 2016) में पाक की भारत से क्रिकेट में हार के बाद विभिन्न स्थानों व शिक्षा संस्थानों में साम्प्रदायिकता भड़की व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तो फायरिंग भी हुई थी । इसके अतिरिक्त क्रिकेट प्रेमियों को समझना होगा कि 23 मार्च 2016 की रात को विकासपुरी, दिल्ली में जो घटित हुआ क्या वह अकस्मात था ? नहीं, वह जिहादी मानसिकता की उपज थी। जिसके परिणामस्वरुप ही भारत बंग्ला देश के बीच हुए क्रिकेट मैच में भारत की जीत पर दिल्ली निवासी डॉ.पंकज नारंग द्वारा जश्न बनाये जाने के बाद उपजे एक छोटे से विवाद पर कुछ धर्मान्धों ने उनको दर्दनाक मौत दी। क्या खेल की आड़ में ऐसे धर्मान्धों का हिंसा करना उचित था ? क्या यह शत्रुभाव हिन्दू-मुस्लिम मानसिकता का बोधक नही ? यह भी एक जिहाद का भाग है, ऐसा नही है कि केवल बम विस्फोटो द्वारा ही आतंकी जिहाद करते है ? इसलिये यह कहा जा सकता है कि क्रिकेट जो एक सभ्य समाज का खेल कहलाता है वह आपसी सौहार्द बनाये रखने के स्थान पर कट्टरपंथियों को उकसाने का काम अधिक कर रहा है। लेकिन इससे देश में छुपे इन आस्तीनों के सापों व पाकपरस्त जिहादियों का पर्दाफाश अवश्य हो रहा है।अतः सभी राष्ट्रवादियों को इन देशद्रोहियों से सतत् सर्तक रहना होगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह विचार करना होगा कि क्रिकेट ,सांस्कृतिक व फ़िल्मी संबंधो के बहाने आने वाले विभिन्न पाकिस्तानी भारत में अपने प्रदर्शन के साथ साथ आई. एस. आई. के लिए भी सक्रिय रहें तो उनपर क्या संदेह नही करना चाहिये ? वर्षो से विभिन्न समाचारों द्वारा पता चलता आ रहा है कि हमारे देश में विभिन्न बहानों से आये हज़ारो पाकिस्तानी लापता हो चुके है और पाक गुप्तचर एजेंट भी समय समय पर पकडे जाते रहे है।ऐसे में शत्रु से सावधान रहना व उनसे क्रिकेट आदि द्वारा संबंध बनाने का विरोध करने वाले राष्ट्रवादियों की आलोचना करना क्या अनुचित नही है?
निसंदेह आज क्रिकेट पूर्णकालिक खेल के साथ साथ धनोपार्जन का मुख्य साधन बनता जा रहा है ।यहाँ यह कहना भी अत्यंत उचित होगा कि यह खेल कम रोजगार अधिक का माध्यम बनने से ही अधिक प्रसिद्ध हो रहा है । जिसके कारण लगभग 30 वर्षो से क्रिकेट का जनून बिना बाधा के एकतरफा बढ़ता ही जा रहा है। मुख्य रुप से पहले पांच दिवसीय टेस्ट मैच फिर बहुत वर्षो बाद एक दिवसीय 50 ओवर के मैच और फिर एक नया अल्पावधिय 20 ओवर के मैचो की श्रंखलाओ से जब जी नहीं भरा तो फिर आईपीएल क्रिकेट श्रृखलाओं का संस्करण स्थापित किया। इसप्रकार क्रिकेट के बाजारीकरण को अधिक बढ़ाने के लिए अनेक संस्करण परोसे जाने के अतिरिक्त लोगों को लुभाने के लिये विशेष कन्याओ के अश्लील नृत्यो के प्रदर्शन को भी जेन्टलमैन खेल का एक भाग बना दिया गया है।
आज बालक-बालिकाओं , युवा वर्ग व प्रौढ़ समाज के अलग अलग क्षेत्रो में कार्य करने वाले छोटे -बड़े सभी वर्गों के लोग इस खेल में अत्यधिक रुची लेकर अपना अधिकतम समय देते है। परंतु इसमें मनोरंजन व गैरकानूनी सट्टा के अतिरिक्त क्या कोई उपलब्धि होती है ? बड़ा खेद है कि इस खेल को सट्टेबाजो ने लाखो करोडो युवाओ को जल्दी धनवान बनने का खेल बना दिया जिससे वे एक जुआरी की भाँति इसमें घिरते जा रहे है। जब देश का युवा वर्ग ही सट्टे जैसे व्यसन में उलझ कर रह जाएगा तो क्या आतंकवाद, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि राष्ट्रीय समस्याओं पर कोई अंकुश लग सकेगा ?
इसप्रकार भ्रमित हो रहें समाज के अधिकांश वर्ग को जब देशभक्ति व देश के महान पुरुषों के बारे में कुछ ज्ञान ही न हो तो वे समाज व देश के लिए जीये या मरें का भाव सहज कैसे समझेंगे ? क्या इससे ‘स्वछता अभियान’, ‘मेक इन इंडिया ‘ व ‘विश्वगुरु भारत ‘ आदि को कोई सहयोग मिलेगा ? क्या इससे समाज में देश के प्रति अपने अपने कर्त्तव्य के पालन में कोई जागरुकता आयेगी ? राष्ट्रवाद की अवहेलना करते हुए क्रिकेट के बहाने या किसी कलाकार की कला के प्रदर्शन से शत्रु देश से शत्रुता के भाव को ही नष्ट किया जायेगा तो सीमाओँ पर जवानों के कटने वाले सिरो पर कौन आंसू बहायेगा ? क्या हमारी राष्ट्रभक्ति कभी क्रिकेट न खेलने वाले रुस, अमरीका, चीन,जापान व जर्मनी आदि देशो के लोगों के सामान हो पायेगी ? यहाँ यह ध्यान रखने की अति आवश्यकता है कि (ब्रिटिश कॉलोनी) कामनवेल्थ या गुलाम देशो के अतिरिक्त विश्व के अधिकतर विकसित देश अमरीका,चीन,जापान,रुस,जर्मनी,फ्रांस आदि में इस अधिकतम समय लेने वाले खेल में कोई रुची नहीं है । उनका ध्यान कम समय में अधिक मनोरंजन व स्वास्थ बढ़ाने वाले खेलो में ही रहता है। उनका मुख्य ध्येय अपने राष्ट्र के विकास में अधिक होता है।
अतः अनेक आंतरिक व बाहरी समस्याओं से घिरा हुआ हमारा देश अपने नागरिको से आज यही उपेक्षा करता है कि वह समय का सदुपयोग करके विकराल समस्याओं पर विजय पाकर अपने हजारो वर्ष पुराने अतीत के स्वर्ण युग से पूर्व की भाँति पुनः विश्व को आलोकित करें। क्रिकेट को महान बनाने वालों के लिए क्या राष्ट्र की अस्मिता व सुरक्षा सर्वोपरि नहीं ? इसलिए आज आवश्यक यह है कि क्रिकेट के अंध प्रेम से राष्ट्रवाद को बचाया जायें।

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