पानी पीते नए ढंग से

  कौए को थी प्यास लगीं,
   दिख पड़ा घड़े में पानी।
   किसी तरह से चाहा उसने,
   अपनी प्यास बुझानी।

   पानी था नीचे पैंदे में ,
   चोंच पहुंच न पाई।
  एक स्ट्रा मिली सड़क पर, 
  पानी तक पहुंचाई।

   उस स्ट्रा के द्वारा उसने,
   अपनी प्यास बुझाई।
   अपने  सभी मित्र कौओं को ,
   यह तरकीब सुझाई।

  घड़ा देखकर अब ये कौए,
  नहीं ढूंढते कंकड़।
  ढूंढ -ढूंढ स्ट्रा ले आते,
  पानी पीते सुड़ -सुड़।
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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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