खाताधारकों से हो रही ठगी के ज़िम्मेदार बैंक क्यों नहीं?

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निर्मल रानी
जहां एक ओर सरकार द्वारा नागरिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे अपना धन संग्रह बैंकों अथवा डाकघरों में ही करें वहीं आम नागरिक भी अपने धन व जमापूंजी की सुरक्षा तथा उसपर मिलने वाले ब्याज की ख़ातिर अपने पैसों को बैंकों अथवा डाकघरों में रखना ही पसंद करता है। प्रायः कोई भी व्यक्ति अपने पैसों को यहां जमा कर इस बात के लिए स्वयं को शत-प्रतिशत बेफिक्र समझ बैठता है कि उसका पैसा अमुक बैंक में उसके अपने खाते में सुरक्षित है और वह ज़रूरत पड़ने पर जब चाहे और जहां चाहे उन पैसों को एटीएम के माध्यम से निकाल सकता है। परंतु यदि किसी ग्राहक को यह पता चले कि वह जिस समय अपने किसी काम में व्यस्त था या रात में चैन की नींद सो रहा था उस समय उसके बैंक खाते से उसकी मेहनत व मशक़्क़त से कमाई गई मोटी रक़म किसी साईबर ठग द्वारा निकाल ली गई है तो उसके होश उड़ जाना स्वाभाविक है। ऐसी खबर सुनकर किसी कमजोर हृदय वाले व्यक्ति को तो दिल का दौरा भी पड़ सकता है। और सोने पर सुहागा तो उस समय होता है जबकि ठगी का शिकार ऐसा ही कोई व्यक्ति अपनी इस फरियाद को लेकर अपने बैंक पहुंचे और वहां मौजूद बैंक अधिकारी उसे यह जवाब देकर वापस कर दें कि उसके साथ हुई किसी प्रकार की ठगी का बैंक से कोई लेना-देना नहीं और इस विषय में बैंक उसकी कोई सहायता नहीं कर सकता उस समय तो खाताधारक स्वयं को और भी अधिक लाचार व असहाय महसूस करने लग जाता है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब किसी ग्राहक ने पूरे विश्वास व सुरक्षा के भरोसे पर किसी बैंक में अपने पैसे जमा कर दिए फिर आखिर उसके धन की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी बैंक की नहीं तो किस की है?
हालांकि गत् कई वर्षों से पूरे विश्व में साईबर व एटीएम की क्लोनिंग कर आर्थिक ठगी करने वाले गिरोह सक्रिय हैं। यह कभी ईमेल के माध्यम से तो कभी एसएमएस के द्वारा या कभी टेलीफोन कॉल कर के लोगों से झूठ बोलकर उनके विषय में जानने की कोशिश करते हैं। यह लोग कभी किसी व्यक्ति का इनाम निकला हुआ बताकर तो कभी किसी को अवार्ड मिलेगा, यह कहकर या किसी से कुछ और लुभावना बहाना बनाकर उसका पूरा नाम पता, उसका फोन नंबर, उसका खाता संख्या, बैंक विस्तार आदि पूछने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग जो एटीएम की ठगी में पारंगत हैं वे अपने ग्राहकों को सीधे फोन मिलाकर यह बताते हैं कि उसका एटीएम ब्लॉक हो गया है और यदि वह अपने एटीएम की सेवाएं आगे भी जारी रखना चाहता है तो अपने एटीएम पर दिए गए सोलह अंकों के नंबर को फोन पर फ़ौरन बताए अन्यथा उसका एटीएम काम करना बंद कर देगा। आमतौर पर सीधे-सादे लोग जो इन एटीएम ठगों की चाल से वाकिफ नहीं होते तथा वे यह भी नहीं जानते कि एटीएम कार्ड अथवा डेबिट या क्रेडिट कार्ड की क्लोनिंग भी कोई चीज होती है अथवा उनकी जेब में उनका अपना एटीएम कार्ड पड़ा होने के बाद भी कोई शातिर ठग उनके खाते से दूसरे क्लोनिंग किए गए एटीएम कार्ड के माध्यम से उनके पैसे चट कर सकता है। ऐसे लोग उन ठगों को फोन पर अपने कार्ड पर अंकित सोलह डिजिट के नंबर बता डालते हैं। और यह नंबर बताने के चंद मिनटों के भीतर ही उसके खातों से पैसे निकलने शुरु हो जाते हैं। हालांकि यह भी सच है कि विभिन्न बैंकों की ओर से समय-समय पर इस प्रकार की सार्वजनिक चेतावनी भी अपने ग्राहकों को सजग करने के लिए दी जाती रहती है जिसमें यह बताया जाता है कि वे अपने बैंक की विस्तृत जानकारी किसी भी ऐसे व्यक्ति को फोन पर न दें जो स्वयं को बैंक अथवा एलआईसी अथवा आईआरडीए का कर्मचारी बताकर आपसे बात कर रहा हो। बैंक यह चेतावनी भी देता है कि ईमेल के माध्यम से पूछे गए किसी भी ऐसे सवाल का कोई जवाब न दें जिसमें आपसे आपके बैंक खाते की जानकारी, नाम, खाता सं या आदि पूछा जाए। बैंक यह चेतावनी भी देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी कोई भी व्यक्तिगत सूचना ऑन लाईन न रखें। बैंक यह चेतावनी भी देता है कि यदि आपको फोन पर कोई व्यक्ति आपके बकाया प्रीमियम का भुगतान का लालच देकर आपका बैंक खाता अथवा अन्य बैंक संबंधी जानकारी हासिल करना चाहे तो उसे कोई जानकारी देने के बजाए उसके कार्यालय का पता पूछकर वहां स्वंय जाने की कोशिश करें। यहां तक कि बैंक अपने ग्राहकों से अपने इंटरनेट व एटीएम के पासवर्ड समय-समय पर बदलते रहने की हिदायत भी जारी करता है। परंतु बैंक की इन सभी बातों पर अमल करने के बावजूद भी यदि कोई खाताधारक ठगी का शिकार हो जाए फिर आखिर इसमें किसी खाताधारक का क्या दोष है?
आजकल एटीएम व साईबर ठगों द्वारा और भी तरह-तरह के तरीके खोजे जा चुके हैं जिससे बड़ी संख्या में लोग रोजाना ठगी का शिकार हो रहे हैं। कई साईबर ठग विभिन्न नंबरों से आपके फोन पर कॉल कर,कॉल के रिसीव होते ही आपके फोन में दर्ज सारी जानकारी यहां तक कि फोन बुक, कॉल रिकॉर्ड, वॉयस रिकॉर्ड आदि की जानकारी अपने फोन में पलक झपकते ही स्थानांरित कर लेते हैं। अब किसी आम आदमी को भला यह कैसे पता कि कॉल करने वाला व्यक्ति कोई साईबर ठग है? इसी प्रकार ऐसी सूचनाएं आती रहती हैं कि एटीएम मशीन के कीबोर्ड पर अथवा एटीएम कार्ड प्रवेश करने वाले विशेष स्थान पर एटीएम ठगों द्वारा कुछ ऐसी विशेष कारीगरी कर दी जाती है जिससे उन्हें कार्ड धारक का गुप्त पासवर्ड भी पता चल जाता है और उन्हें एटीएम कार्ड की क्लोनिंग करने में भी सफलता मिल जाती है। ठगों द्वारा इस प्रकार की कारीगरी इतनी चतुराई से की जाती है कि आम आदमी की नजर इनपर नहीं पड़ पाती। अब यहां सवाल यह है कि जिस एटीएम मशीन में छेड़छाड़ करने के लिए एटीएम ठग मशीन पर जाते हैं और उसमें अपनी मरजी से छेड़छाड़ करते हैं तो प्रत्येक एटीएम मशीन में लगे संवेदनशील कैमरे तत्काल ही ऐसे ठगों को दबोचने का उपाय क्यों नहीं करते? और दूसरी बात यह कि जब प्रायः सभी एटीएम मशीनों पर सिक्योरिटी व्यवस्था होती है तो उनकी मौजूदगी में यह ठग अपना काम कर पाने में कैसे सफल हो जाते हैं?
जहां तक खाताधारकों द्वारा ईमेल अथवा फोन के माध्यम से अपनी किसी प्रकार की बैंक अथवा एटीएम संबंधी कोई जानकारी देने के बाद उसके ठगी का शिकार हो जाने का प्रश्र है तो यह बात भी कुछ हद तक समझी जा सकती है कि अमुक व्यक्ति गलती से,अंजानेपन में या किसी लालच का शिकार होकर ठगों के बहकावे में आ गया है। परंतु यदि कोई ऐसा एटीएम धारक अपने खाते से पैसे गंवा बैठे जिसने न तो कभी किसी ठग व्यक्ति का फोन रिसीव किया हो न उसके पास कोई ईमेल आया हो न ही कभी उसने अपना एटीएम अथवा पासवर्ड किसी को दिया या बताया हो और फिर भी उसके खाते से पैसे निकल जाएं तो इसके लिए आखिर कौन ज़िम्मेदारी है? पिछले दिनों हरियाणा की ऐसी ही एक घटना प्रकाश में आई जो वास्तव में हैरान करने वाली थी। रात बारह बजे से कुछ मिनट पहले उसके मोबाईल पर एक के बाद एक चार एसएमएस आए कि उसके खाते से दस-दस हजार रुपये कर के चार बार में चालीस हजार रुपये निकाले जा चुके हैं। इसके पहले कि वह स्वयं को संभाल पाता और एटीएम ब्लॉक करने की सूचना दे पाता रात के बारह बजने के फौरन बाद पुनः एक-एक कर चार और मैसेज दो मिनटों के अंतराल में उसके मोबाईल फोन पर फिर से आ गए। इन संदेशों के अनुसार भी दस-दस हजार रुपये कर चार बार में चालीस हजार रुपये निकाले जा चुके थे। मात्र दस मिनट के भीतर 80 हजार रुपये इस व्यक्ति के खाते से निकाल लिए गए।
इस व्यक्ति ने मीडिया को बताया कि उसने कभी किसी को अपना कार्ड या पासवर्ड दिया या बताया नहीं। और जब ठगी का शिकार यह व्यक्ति अगले दिन अपने बैंक पहुंचा और उसने सूचित किया कि उसके मोबाईल पर दिल्ली के अमुक एटीएम से उसके खाते से पैसे निकालने संबंधी लगातार आठ संदेश आए हैं तो बैंक अधिकारियों ने उसकी किसी भी प्रकार की सहायता करने से या इस घटना की कोई जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया। निश्चित रूप से एटीएम या इंटरनेट बैंकिंग इस समय आम लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है। परंतु इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इसी दौर में आम लोगों को जितनी बड़ी संख्या में हर क्षण ठगी का शिकार होना पड़ रहा है उस स्तर पर बैंकों के खाताधारकों को ठगी का शिकार होते पहले कभी देखा व सुना नहीं गया। सवाल यह है कि यदि इस प्रकार किसी मेहनतकश व्यक्ति के खाते में जमा उसकी जमापूंजी ठगों द्वारा विभिन्न तकनीकों व तरकीबों के माध्यम से निकाली जाने लगी तो आखिर ऐसे में बैंक अथवा एटीएम कार्ड की सुरक्षा व गोपनीयता संबंधी विश्वसनीयता ही क्या रह जाती है? देश की जनता अभी इतनी चुस्त,सक्षम तथा होशियार नहीं है कि वह अपने-आपको ऐसे चालबाज ठगों से बचा सके। यह जिम्मेदारी तो बहरहाल बैंक तथा साईबर अपराध विशेषज्ञों को ही अपने ऊपर लेनी पड़ेगी और उन्हें ही साईबर व एटीएम ठगों द्वारा प्रयोग में लाए जा रहे माध्यमों को निष्क्रिय करना होगा। अन्यथा कोई आश्चर्य नहीं कि बैंकिग व्यव्स्था से धीरे-धीरे लोगों का विश्वास भी उठने लग जाए।

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  1. बचपन में मैं सोचा करता था कि भांति-भांति की मन लुभावनी स्वादिष्ट मिठाइयों से घिरा हलवाई अपने मन को मार कैसे सारी की सारी मिठाई स्वयं खाए बिना बैठा है| लेकिन स्वयं मेरे अभ्यास से दूसरों के पैसे में घिरा भारतीय बैंक कर्मचारी अवश्य ही अपने मन पर नियंत्रण न रख सकते हुए चोरी करने में कतई संकोच नहीं करता है| एक बार नहीं, दो बार नहीं, मैंने तीन बार अपने साथ ऐसा होते देखा है| जब मैं उन्नीस सौ साठ के दशक दिल्ली में एक बहु-देशीय कंपनी में काम करता था तो मेरी आय का भुगतान थाईलैंड से सीधा मेरे बैंक खाते में जमा होता था| क्योंकि तनख्वाह एक शुक्रवार छोड़ प्रत्येक दूसरे शुक्रवार बंटा करती थी, जुलाई के महीने में तीन भुगतान बैंक खाते में पहुँच गए जहाँ कर्मचारी या यूँ कहिये चोरों के टोले ने यह समझ कि कंपनी ने गलती से तीसरा भुगतान कर दिया है, तीसरे भुगतान को किसी निष्क्रिय लेखे में डाल दिया ताकि समय बीतते उसे निकाल जेब के हवाले करेंगे! दूसरी बार उन्नीस सौ सत्तर के दशक में मेरे विदेश में होते न जाने कैसे मेरे “अनिवार्य जमा” खाते में से थोड़े थोड़े करके लगभग सारी पूंजी निकाल ली गई| लेकिन बीस सौ के दशक में कुछ कर्मचारी आपके पैसे को अपना ही समझ उसे प्रयोग में लाते हैं| मैंने पंजाब स्थित बैंक जा कर अनिवासी खाता खोला और ५०० डालर मैनेजर के हाथ में थमा दिए| उस दिन के विनिमय-दर के हिसाब से मेरे लेखे में भारतीय रुपये से खाता तो खुल गया और मैं ख़ुशी ख़ुशी घर लौट आया लेकिन बाद में पता चला कि मेरे ५०० डालर को काले बाज़ार में ऊंची दर पर बेच वहां एक कर्मचारी ने शेष पैसे अपनी जेब में रख लिए थे! मुझे यह जान कतई अचम्भा न होगा के साईबर व एटीएम ठगों से इन धूर्त कर्मचारियों की सांठ-गाँठ हो|

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