देख लिया न दादू!

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advani carदादू! देख लिया न अपनी जिद का नतीजा ! अपनी तो फजीहत करवाई ही, हमारी भी बची खुची नाक कटवा कर रख दी। लुटिया डुबोते तो सुना था पर आपने तो लोटा ही डुबो दिया! अब देखो न,  हमारे जैसे – कैसे परिवार का  गांव में क्या मैसेज गया ! खैर,  इज्जत तो हमारी पहले भी गांव में थी ही कहां ? कभी घर से ये अलग होने की धमकी देता रहता है तो कभी वह! ये घर जैसे घर न होकर कोई सराय हो ! घर के जितने मेंबर, उतने ही स्वार्थ ! पर सच तो यह है कि हमारा ही क्या ,  हमारे गांव का कोई भी परिवार किसी को सिर ऊंचा कर मुंह दिखाने लायक नहीं, किसी के  पास  नाक नाम की चीज नहीं, पर फिर भी पूरे गांव वाले शान से नाक ऊंचा किए अकड़ कर चल रहे हैं।

दादू! सच कहूं, आपसे इस उम्र में ऐसी उम्मीद कतई न थी। जवानी में यों डराते तो परदादा को अच्छा लगता! मैंने तो सोचा था अब आप  समझदारी दिखाते हुए अपनी पारी खत्म कर किसी भी दमदार चाचू वाचू के हाथ में थमा खुद काशी, मथुरा की ओर कूच कर लोगे ! पर आपने तो हद ही कर दी !अपने किसी बेटे के सिर पर घर की पगड़ी खुद रख दुनिया दारी से मुक्ति पाने के बदले  पगड़ी समारोह में उन्हें आर्शीवाद देना तो दूर, उल्टे नाराज हो इस्तीफा दे गए।

दादू! हूं तो मैं आवारा सा पर अगर आपकी जगह मैं दादू होता न तो हंस कर लाख बीमार होने के बाद भी  बिन एंबुलेंस  पगड़ी हंसकर उनके सिर रख देता जिसके सिर पगड़ी रखने को पूरा परिवार कह रहा था।  दादू! पगड़ी  जिनके सिर धरनी थी  धर दी गई। पर आप भी उस वक्त साथ होते तो मुझे अपने दादू पर गर्व होता!

दादू! पता नहीं हमसे क्यों ये मोह नहीं छूटता? पता नहीं हमें क्यों यह भ्रम सा रहता है कि  मेरे बिना यह घर नहीं चलेगा। मेरे बिना यह देश नहीं चलेगा! अरे दादू! किसी के बिना यहां कुछ रूका है क्या!

दादू ,तुमने कहा तुम अस्वस्थ हो! ये तो तुम ही जानो ये बहाना था कि तुम सच्ची में  बीमार थे ? पर दादू ! इन दिनों तुम ही क्या, पूरा देश ही अस्वस्थ है। भैया अस्वस्थ है, रूपैया अस्वस्थ है।  दादू! आपकी जिद देख कर मैं तो डर गया था कि मेरे दादू ये क्या कर रहे हैं? ये तो शुक्र मनाओ वो लाजपत अंकल बीच में आ गए, वरना आप न घर के रहते न…….! इतने बरसों की कमाई पल में  मिट्टी में मिल गई होती!

दादू! अब आपको कौन समझाए कि सबका अपना अपना दौर होता है। एक समय के बाद भगवान भी आउट डेटिड हो जाते हैं और हम तो उसके बनाए बंदे हैं।  अभिशप्त हो जीने से तो भला बेकार में पंगा क्यों लेना!  वक्त रहते वक्त की धार को पहचानो और मौज करो दादू!

देखो न दादू! अब आपसे अपने सहारे चला भी नहीं जाता। सहारा देने वाली लाठी तक आपसे संभाले नहीं जाती! पर आप हैं कि घर को संभालने की जिद पाले हैं। देश को चलाने के सपने देख रहे हैं। जबकि आंखों से अपने सपने भी कूच कर गए हैं।

माना दादू आपने इस घर को अपनी खून पसीने की कमाई से बनाया है। आप ही क्या, हर दादू ऐसा ही करता है। उसे करना भी चाहिए। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि आपकी जगह कोई और न ले। बल्कि चाहिए तो आपको यह था कि आप हंस कर कहते कि अब मैं इस घर को चलाने लायक नहीं रहा इसलिए  चाचू को इस घर का मुखिया घोषित करता हूं।

अरे दादू! आपको कितनी बार कहा कि अब छोड़ो ये मोह माया! आपको क्या लेना घर के फैंसले चाचू ले या बापू!  दादू! अब ये बच्चे नहीं रहे! सब घर के फैंसले लेने लायक हो गए हैं। उनको घर के फैंसले लेने दो। भलाई आपकी और घर की इसी में है। आप मजे से जाओ, तीर्थ करो, व्रत करो! चारों धाम करो! बीते दिनों को याद करते मौज करो आराम करो! इस उम्र तो दादू औरों के दादू हरि भजन करने का चाहे मन भी न करे, तब भी दिखावे को ही सही हरि भजन में गांव वालों को गालियां देते हुए लीन रहते हैं।

दादू! छोड़ो ये फेका गुस्सा! बेकार में क्यो हाइपर होते हो! चलो, बीती बिसार, लोक लाज के लिए ही सही, चाचू की पीठ थप थपाओ  और तोड़ा पुण्य कमाओ!! जनता के गुस्से के बदले उससे तनिक सहानुभूति पाओ!  चैपाल पर बैठ बच्चों को अपनी जवानी के समय के देश के  किस्से सुनाओ! बीते दिनों को याद कर खुद भी हंसों और गांव के बच्चों को भी हंसाओ! दादू का काम इस उम्र में कुढ़ना नहीं, गुनगुनाना है, अपने बच्चों को अपने अनुभवों से चांद के पार ले जाना है।

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