दक्खिन का दर्द

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dakhinसंजय चाणक्य
‘‘ तेरा मिजाज तो अनपढ़ के हाथों का खत है!
नजर तो आता है मतलब कहां निकलता है!!’’

मेरी नानी बचपन में कहती थी कि दक्खिन की ओर मुह करके खाना मत खाओं,दक्खिन की ओर पांव करके मत सोओं। गांव में बड़े-बुजुर्ग कहते थे कि गांव के दक्खिन टोला में मत जाना। हमेशा सोचता था आखिर इस दक्खिन में है क्या! बचपन से इस दक्खिन की रहस्य को ढूढ़ता रहा। जब बड़ा हुआ पढ़ा-लिखा, समाजिक कार्यो में रूचि बढ़ी, पत्रकारिता के क्षेत्र मे आया, लोगों से मिलना-जुलना शुरू हुआ और बुद्विजीवी के सम्पर्क में आया तो पता चला कि हर गांव के दक्खिन में दलित बस्ती है। हर घर के दक्खिन में औरत है, दुनिया के दक्खिन में एशिया,अफ्रीका और लातीनी अमेरिका है। एशिया का दक्षिणी भाग दुनिया का सबसे ज्यादा गरीबों वाला क्षेत्र है। महाराष्ट के मराठवाड़ा क्षेत्र के दक्खिन टोले में बाबा भीमराव अम्बेडकर पैदा हुए। उनसे पहले ज्योति राव फूले भी उसी इलाके मे अपनी पत्नी सावित्री बाफूले के साथ जाति व्यवस्था और पितृसत्ता को तोड़ने का कार्य किये। इससे ब्राह्राणवाद व पितृसत्ता को जो संकट मराठवाड़ा में खड़ा हुआ उससे उसी इलाके में एक ब्राह्राण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की।
‘‘ जिनके दिल में दर्द है दुनिया का
वही दुनिया में जिन्दा रहेते है !!
जो मिटाते है खुद को जीते-जी !
वही मरकर जिन्दा रहते हो !!’

बेशक ! बसपा सुप्रिमो मैडम माया बाबा साहब को आगे कर दक्खिन टोला के कल्याण के नाम पर अपनी सियासत तो चटका ली किन्तु बाद में मनु को आदर्श मानने वालो से हाथ मिलाकर सत्ता पर ऐसे विराजमान हुई कि दक्खिन टोला का उत्थान धरी की धरी रह गई। दक्खिन टोला में दलितों में नवबाभन पैदा हो रहे है। दूसरी तरफ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि दुनिया के दक्खिन में बसे लातिनी अमेरिका,अफ्रीका,एशिया का भी भूबाजारीकरण व उसके हथियार जी-8,आईएमएफ विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन शोषण कर रहे है। भूबाजारीकरण का कलेक्टर बना बैठा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जो दक्खिन टोले का अस्तित्व मिटाने के फिराक में गिद्ध दृष्टि जमाये मौके की तलाश मे बैठा है। अमेरिका अगर आतंकवाद पर हमारा समर्थन करने की बात करता है तो इससे पता चलता है कि घर के दक्खिन में औरत,गांव के दक्खिन में दलित बस्ती व दुनिया के दक्खिन मं बसे देशों का भूबाजारीकरण की नव उपनिवेशवादी ताकतो द्वारा शोषण के बीच चोली-दामन का रिश्ता है। इसको पूरे परिदृश्य में रखकर जब तक घर के दक्खिन (औरत) गांव के दक्खिन टोला (दलित) की लड़ाई लड़ने वाले लोग अपनी नीति व रणनीति नही बनायेगे, तब तक बसपा की राजनीति हो या समाजिक संगठनों का आन्दोलन, दलितो की लड़ाई को भटकाने वाली होगी। जिसका अखिरी परिणाम होगा पूरे अभियान व पहल का चाटुकार हो जाना। इस लिए दक्खिन के दर्द को समझिए, तभी मानवता बचेगी और भूबाजारीकरण की जगह समता मूलक समाज की स्थापना होगी। जहां,जाति,रंग,लिंग के नाम पर कोई भेद-भाव और शोषण नही होगा।

‘‘ सिमटे बैठे हो बुजदिलो की तरह!
आओ मैदान में महारथियों की तरह!!’’

!! सत्यमेव जयते!!

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