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दम्भ -पाखंड की जद में क्यों आ गए हम ? - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
निकले थे घर से जिसकी बारात लेकर , उसी के जनाजे में क्यों आ गए हम ? चढ़े थे शिखर पर जो विश्वास् लेकर , निराशा की खाई में क्यों आ गिरे हम ? गाज जो गिराते हैं नाजुक दरख्तों पै , उन्ही की पनाहों में क्यों आ गए हम ? फर्क ही नहीं जहाँ नीति -अनीति का , उस संगदिल महफ़िल में क्यों आ गए…