खतरनाक स्तर पर प्रदूषण

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-अरविंद जयतिलक-  polution new
यह विडंबना है कि तमाम जागरुकता के बाद भी दीपावली की रात करोड़ों रुपए के पटाखे फोड़ वायुमण्डल को खतरनाक प्रदूषण से भर दिया गया। यह जानते हुए भी कि यह प्रदूषण सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों की तकलीफें बढ़ाने के साथ कैंसर जैसी घातक बीमारियों को जन्म देने वाला है, के बावजूद भी किसी तरह की समझदारी और संवेदना का परिचय नहीं दिया गया। उचित होता कि पटाखों से वायुमण्डल को दुशित करने के बजाए दीपों के जरिए उत्सव मनाया जाता। इससे वायुमण्डल में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता और करोड़ों रुपए भी बर्बाद नहीं होते। एक अरसे से पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक देश-दुनिया को प्रदूषण और उससे उत्पन होने वाले खतरों से आगाह कर रहे हैं। लेकिन आष्चर्य कि इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि लोगों में पर्यावरण को स्वच्छ रखने की चेतना का विस्तार नहीं हुआ है। लेकिन बात तब बनेगी जब प्रदूषण को रोकने की दिषा में कारगर पहल होगा। अभी पिछले दिनों ही एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल के एक शोध से खुलासा हुआ है कि दुनिया भर में प्रदूषण से तकरीबन छब्बीस लाख लोगों की मौत होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट के अध्ययन के मुताबिक इनमें से ज्यादतर मौतें दक्षिण और पूर्व एषिया में हुई हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से तकरीबन चार लाख सत्तर हजार और औद्योगिक इकाइयों से उत्पन प्रदूषण से इक्कीस लाख लोग दम तोड़ते हैं। शोध में यह भी कहा गया है कि अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो भविष्य में विश्व की बड़ी जनसंख्या प्रदूषण की चपेट में होगी। चंद रोज पहले वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने भी दूषित हवा को कैंसर का बड़ा कारण माना है। जबकि अभी तक कैंसर के लिए तंबाकू और रेडिएशन जैसे कारणों को ही जिम्मेदार माना जा रहा था। शोधों से यह भी खुलासा हुआ है कि भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं। उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत का सिलिकॉन वैली बंगलुरु विश्व के शहरों में प्रदूषण स्तर में वृद्धि के मामले में अमेरिका के पोर्टलैंड शहर के पश्चात दूसरे स्थान पर है। यहां वर्ष 2002-10 के बीच वायु प्रदूषण स्तर में चौंतीस फीसद की वृद्धि दर्ज की गयी है। 2010 में आयी सरकार की पोल्यूशन वॉचडॉग संस्था सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता और दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर हैं। आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2009 से 2011 के बीच फेफड़े के कैंसर के सबसे अधिक मामले दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में ही सामने आए हैं। सीएसई यानी सेंटर फॉर साइंस का आंकलन है कि देश में 2026 तक चौदह लाख लोग किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने सरकार को आगाह किया है कि पल्यूषन कम करने के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने सुझाव दिया है कि हर शहर में वाहनों के लिए यूरो-4 नियम लागू करना चाहिए। लेकिन विडंबना है कि इसे लेकर सरकार अभी गंभीर नहीं दिख रही है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि जब भी वायुमण्डल में गैसों का अनुपात संतुलित नहीं रह जाता है, प्रदूषण की संभावना बढ़ जाती है। हाल के वर्षों में वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योग-धंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। इनके जलने से सल्फर डाई ऑक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है। भारत समेत दुनिया में हर दिन करोड़ों मोटरवाहन सड़क पर चलते हैं। इनके धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूशित कण मानव षरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाई ऑक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग, और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और श्वांस संबंधी रोग होते हैं। कारखाने और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाडि़यों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाषक कारखानें से विशैली मिक गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुंह में चले गए और हजारों लोग अपंगता का दंष झेल रहे हैं। इसी प्रकार 1986 में अविभाजित सोवियत संघ के चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में रिसाव होने से रेडियाऐक्टिव प्रदूषण हुआ और लाखों लोग प्रभावित हुए। इन घटनाओं के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है। वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदुशित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाषयों और मृदा को प्रदुशित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समश्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नार्वे, स्वीडन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। यूरोपीय महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नश्ट हो चुके हैं। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमण्डल के दूशित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है। ध्रुवों पर इस परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है जिससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनीं किरणें भू-पृष्ठ पर पहुंचकर ताप में वृद्धि कर रही है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है। नए शोधों से जानकारी मिली है कि गर्भवती महिलाएं जो वायु प्रदूषण क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है। यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्रॉस्पेक्टिव द्वारा 9 देशों में 30 लाख से ज्यादा जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं के अध्ययन से हुआ है। शोध के मुताबिक जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यानी इनमें मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। पिछले दिनों देश के 39 षहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। पाया गया कि षिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टयम और मदुरै जैसे विरासती षहरों में पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूषन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक है। कुछ स्मारकों के निकट तो यह 4 गुना से भी अधिक पाया गया। सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आसपास है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शहरों के स्मारकों के आसपास रासायनिक और धूल प्रदूषण की जानकारी के बाद भी उसके बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ताजमहल को छोड़कर देश के अन्य स्मारकों के आसपास यातायात का समुचित प्रबंध नहीं है। ऐसा नहीं है कि प्रदूषण के इन दुश्प्रभावों से निपटने और उस पर रोकथाम के लिए कानून नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि कानून का पालन नहीं हो रहा है। सरकार ने प्रदूषण में कमी लाने के उद्देश्य से तेरह बड़े शहरों समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चार पहिया और दो पहिया वाहनों के लिए भारत स्टेज-चार और भारत स्टेज-तीन उत्सर्जन नियम 2010 लागू किए। प्रदूषण में कमी लाने के लिए परिष्कृत डीजल और गैसोलिन की आपूर्ति बढ़ायी गयी। साथ ही कमप्रेस्ड नेचुरल गैस यानी सीएनजी का इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। दिल्ली समेत देश के अन्य बड़े शहर भी मेट्रो की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण तब लगेगा जब आमजनमानस प्रकृति और मानवता के प्रति संवेदनशील होगा। जब इससे होने वाले घातक बीमारियों को लेकर सतर्क होगा। जब सरकार भी इसे रोकने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देगी।

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  1. लोगो को दीपावली में पठाखे फोड़ना खलता हैं, ३१ दिसम्बर की रात व क्रिकेट मैच के दोरान चलने वाले पठाखो से भी पर्यावरण को और अधिक हानि होती हैं. दीपावली में पठाखे फोड़ना हमारे धरम व संस्कृति के वैभव के उत्कर्ष का प्रदर्शन है. हाँ यह हो सकता हैं की कम मात्रा में प्रयोग हो अथवा वर्तमान technology के युग में इस प्रकार के पटाखों का निर्माण हो जिससे प्रदूषण न हो. ‘दीपावली में पठाखे फोड़ना से प्रदुषण होता है’- का प्रयोग बंद होना चाहिए.

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