दरिंदगी आतंक की

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आज पूरा विश्व आंतकवाद की समस्या से जूझ रहा है। हर तरफ आतंक का कहर है। धर्म, जाति मजहब से खेलना इनके आका बखूबी जानते है। आखिर ये चाहते क्या हैं? इनकी सोच क्या है? मासूमों का कत्ल करना। बस यही इनका पेशा है। इन्हें समर्थन देने वाला पाकिस्तान भी इस समस्या से ग्रस्त होता जा रहा है। कहते हैं जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। 15 दिसम्बर सोमवार को ईरानी मूल के हारून मोनिस ने लगभग 40 लोगों को एक कैफ़े के अंदर बंधक बना लिया था। बड़ी मशक्कत के बाद करीब 16 घंटे के बाद सिडनी पुलिस ने एक कमांडो ऑपरेशन किया। कैफ़े में बंधक बनाए गए लोगों को कमांडो ऑपरेशन के बाद छुड़ा लिया गया था। लेकिन इस ऑपरेशन में हमलावर समेत तीन लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। इस हमले में एक पुलिसकर्मी समेत चार लोग घायल भी हुए। सिडनी के कैफ़े में लोगों को बंधक बनाने वाले ईरानी मूल के हारून मोनिस राजनीतिक शरण पर 1996 में ऑस्ट्रेलिया गए थे। मोनिस पर कई हिंसक अपराधों के लिए ऑस्ट्रेलिया में मुक़दमा चल रहा है। उन पर अपनी पूर्व पत्नी की हत्या का भी आरोप है। सिडनी क़ैफे की वारदात को देखते हुए एक बार फिर मुम्बई में 26/11 आतंकवाद हमले का याद ताजा हो गई। लोगों को ऐसे बंदूक की नोक पर बंधक बनाकर रखना। क्या बीतती होगी उनके दिलों पर जो बंधक बनाए जाते हैं। इन दहशतगर्दों को इससे क्या मतलब। इंसानियत भूल गए हैं ये हैवान बन गए। मामला आस्ट्रेलिया का शांत नही हुआ था कि आंतक का जन्मदाता कहे जाने वाले पाकिस्तान के पेशावर में आतंकियों ने 16 दिसम्बर एक प्रसिद्ध आर्मी स्कूल में बड़ा हमला कर दिया है। इस हमले में हमले में लगभग 120 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई है। बहुत सारे बच्चे हमले घायल हो गए । आखिर इन बच्चों ने उनका क्या बिगाड़ा था। जो उन बेचारे मासूमों पर इतना बड़ा कहर बरपा दिया। अपने बचेचों का भी ख्याल नही आया उन जल्लादों को। आएगा भी कैसे? अपने बच्चों को तो कलम की जगह बंदूक पकड़ने की शिक्षा देते हैं। इस साल बच्चों के खिलाफ यह अब तक का सबसे बर्बर हमला है। ये तालिबानी अर्धसैनिक फ्रंटियर कॉर्प्स की वर्दी में आए आठ से 10 आत्मघाती हमलावर वरसाक रोड स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल में घुस गए और अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे जिसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए। सिर्फ बच्चों की संख्या 100 से ज्यादा बताई जा रही है। पूरा विश्व जब आतंक पर बात करता है। तब पाक के मुंह में दही जमी होती है। भारत को अपना जानी दुश्मन समझते है। भारत में दहशत का खेल–खेलना चाहते है। लेकिन सच्चाई ये है जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता वही उसी में गिरता है। बच्चों पर किया गया ये हमला बहुत ही निंदनीय है। लेकिन क्या इस वारदात के बाद इनके नेता चेतेगे। दो तीन दिन बाद फिर से कश्मीर का राग गाने लगेगें। अगर आस्तीन में सॉप पालोगे तो कभी न कभी घूम कर काट ही लेगें। एक महीने पहले 2 नवम्बर को पाकिस्तान में वाघा सीमा के नजदीक हुए आत्मघाती हमला हुआ था। है। इस हमले में 70 लोगों की मौत हो गई है। विस्फोट वाघा सीमा से 500 मीटर दूर हुआ था। इस हमले में 200 से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। दिसम्बर में ये दूसरा हमला फिर भी इनकी आंखे बंद रहेगी। विश्व के साथ खड़े होकर ये आतंक के खिलाफ नही लड़ेगें। उन परिवार वालों को जाकर देखों जिनके जिगर के टुकड़े इस हमले में मारे गए और घायल हुए हैं। उनके परिवार वालों पर गम़ का पहाड़ टूट पड़ा है। घर से बच्चों को भेजने वाले माता-पिता के दिलों पर सॉप लोट गया। जैसे ही आतंक के इन दरिंदों ने इस वारदात को अंजाम दिया। भारत के लिए आंतकवाद समस्या बन गया है। पाक के लिए भी । तो मिलकर इस समस्या को दूर क्यों नही करते। पाकिस्तान आर्मी को भी सोचना चाहिए। जम्मू कश्मीर की सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करके आतंकवादियों की मद्द कर भारत की सीमा के अंदर प्रवेश दिलाना कहा तक उचित है। उन हैवानों ने आप के बच्चों को निशाना बना लिया है। ऐसे में ये बात तो साफ़ हो जाती है कि ये किसी के नही है। अपने आका की बातों को सिर्फ मानते हैं। अगर आका ने कह दिया कि अपने बेटे को मार दो तो जन्नत मिलेगी। तो बेटे का क़त्ल करने में ज़रा सा परहेज नही करेगें। हर तरफ से आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए हाथ बढ़ाए जा रहे हैं । पाकिस्तान को भी अब इसमें शरीक हो जाना चाहिए। वरना दूसरों को मिटाने की चाह में खुद का शर्वनास कर डालेंगें।

1 COMMENT

  1. रो उठता है दिल जब…..
    —पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री…

    रो उठता है दिल जब भी दहिशतगर्दी की वारदात होती है मगर,
    सोचता था कुछ मसले होंगे जिस की वजह से दहिशतगर्द बनते हैं,
    उनके के भी कुछ अरमान होते होंगे क्यूँ कि वो भी तो इंसान हैं मगर,
    सौ से ज़ियादा बच्चों को मौत के घाट उतार देना इंसानियत तो नहीं,
    क्या गुज़रेगी बच्चों के माँ बाप के दिल पर ज़रा सा भी सोचा नहीं,
    किस किस्म के इंसान हैं क्या वो इंसान हैं या इंसान हैं ही नहीं,
    लगता है दहिशत गर्द कोई भी हों उनमें इंसानियत होती नहीं,
    अगर उनमें इंसानियत होती तो यूं ही मासूमों की जाने जाती नहीं,
    कितना भी हम लिखते रहें उनको कोई फ़र्क पड़ता नहीं,
    जिनसे हम कहना चाहते हैं वो तो शायद यह सब तो पड़ते नहीं,
    दिल ही दिल में आँसूँ बहा कर चुप हो जाता हूँ मैं,
    क्यूँ कि इसके इलावा कुछ और तो कर नहीं पता हूँ मैं,
    सब मुल्कों के हुकूमरानो से हाथ जोड़ कर इलतजा करता हूँ मैं,
    मिलकर कुछ करो मासूमों की जाने जाते ना देख पता हूँ मैं,
    क्या सोच कर मासूमों की जाने ली हैं नहीं समझ पता हूँ मैं,
    सही समझ दे सबको दिल से इलतजा परवर्दीगार से करता हूँ मैं,
    सही समझ दे सबको दिल से इलतजा परवर्दीगार से करता हूँ मैं,

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