धन धरती का चीज बेटी कोख में उगती

—विनय कुमार विनायक
बेटा पतोहू ठुकराए तो बेटी काम आती,
बेटा गेहूं की बाली है तो बेटी धान होती!

वह मौत भी क्या जो आंखें नम न हो,
कोई रोए ना रोए जनाजे पर बेटी रोती!

बेटा है कि सबकुछ बांट लेता, डांट देता,
बेटी खामोश हो के मन मसोस के रहती!

बेटी को बेदखलकर नाम मिटा देते घर से,
बेटी बिन नेमप्लेट बाबुल के दिल में होती!

बहन को जो बेटी घर की ना समझे भाई,
वही बहन बेटी बनकरके तेरे दर में आती!

बेटा बांटने आता है, लड़का लड़ाई करता है,
बहन बेटी मैके पर जान छिड़कने आती!

कबतक कहते रहोगे बेटी को पराया धन,
धन धरती का चीज, बेटी कोख में उगती!

बेटियों के सिर पर आफत सदा से होती
बेटी जन्मते खतरे, जान जोखिम में होती!

बेटी को कुछ मिले ना मिले किन्तु चाहिए
पिता सा आसमां, मां सी जमीं,दुआ रब की!
—विनय कुमार विनायक

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